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Updated: 29 अगस्त, 2015 04:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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"मंगल, मंगल, मंगल हो... मंगल मंगल मंगल हो..."

बड़ा ही भव्य मंच था. गीत, संगीत और रिकॉर्डेड करतल ध्वनि के बीच एक थ्री-डी पोर्ट्रेट सामने आता है. हाथ जोड़े, सिर नवाए प्रणाम की मुद्रा में - एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर बढ़ता हुआ - फेड आउट - और फिर ब्लैक से फेड इन होता है...

ऊपर से एक बार फिर स्टेज पर तेज रोशनी होती है - पहले ब्लू, फिर येलो और उसके बाद गोल्डन. फोकस धीरे धीरे मूव और शिफ्ट करता है और सेंटर प्वाइंट पर आकर स्थिर हो जाता है. इस बार धरती के प्रधानमंत्री साक्षात् रोशनी के बीचों-बीच प्रकट होते हैं.

मित्रो...

आज मैं आपके सामने दोबारा हाजिरी लगा रहा हूं. इससे पहले हम स्योनसेत्तु विलक्षणम् में मिले थे. याद है ना.

"ज्ड़ीं-ज्ड़ीं, ज्ड़ीं-ज्ड़ीं"

[साउंड कंवर्टर डिस्प्ले पर स्क्रोल चल रहा था - हां-हां, हां-हां.]

मित्रो, मुझे यहां आए कुछ ही दिन हुए, लेकिन लगता है बरसों से मैं यहीं हूं. कहीं गया ही नहीं.

गोलावासियों आप लोग टेक्नोलॉजी में भले ही आगे हो लेकिन हमारी संस्कृति और इतिहास आप से बहुत आगे है. दुख की बात ये है कि हमारे इतिहास को लोगों ने तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया.

जहां तक इतिहास की बात है तो अब तक यही प्रचारित किया जाता रहा कि भारत कई साल तक ब्रिटेन का गुलाम रहा. लेकिन सच्चाई हकीकत से कोसों दूर है. सही बात तो ये है कि ब्रिटेन भारत का गुलाम रहा. असल में भारत का कुछ हिस्सा ब्रिटेन का गुलाम जरूर रहा.

फिर 1947 के तीसरे विश्व युद्ध में हमने जीत कर एक नया मुल्क पाकिस्तान बना दिया. इतना ही नहीं 1971 में हमने एक और लड़ाई लड़ी और एक और मुल्क बांग्लादेश बना दिया. हमें अभी और भी लड़ाइयां लड़नी हैं - और कुछ और मुल्क बनाने हैं.

मैं आपसे वादा करता हूं कि कुछ नए मुल्क बनाकर मैं आप लोगों को भी भिजवाउंगा. देखना आप लोग - हम लोग कितना अच्छा मुल्क बनाते हैं.

इतिहास की यही बातें जब हमारे एक भाई ने ऑक्सफोर्ड जाकर अंग्रेजी में समझाई तो लोग हैरान हो उठे. हमारे भाई ने तो बकाया लगान भी मांग लिया जिसे बाद के दिनों में उन लोगों ने देना बंद कर दिया था.

कुछ लोगों को तो इतनी मिर्ची लगी कि हमारे उस भाई को ही टारगेट पर ले लिया. भरी सभा में डांट फटकार की. उन लोगों ने तो यहां तक कह डाला कि वो हमेशा ऐसा ही करता है.

जबकि ऐसा नहीं था. वो शख्स सिर्फ सच बोल रहा था. मैंने तो ट्वीट करके सबको बताया भी. अब मैंने कहा है कि इतिहास को सही तरीके से लिखना जरूरी हो गया है. मैंने इसके लिए एक टीम इंडिया बनाई है. जल्द ही वो इतिहास की पूरी एक सीरीज रिलीज करने वाली है.

हां, तो मित्रो... मैं उस भाई की बात कर रहा था. उस भाई कि सिर्फ इतनी सी गलती थी कि उसने भाषण अंग्रेजी में दिया था - और उन्हें अंग्रेजी आती नहीं. अब भला अंग्रेजी नहीं आएगी तो अर्थ का अनर्थ तो होगा ना. होगा कि नहीं?

[सामने बैठी भीड़ कुछ बोल तो रही थी लेकिन ऑडियो मिसिंग था.]

अरे भई, मैं तो कहता हूं - जो चीज नहीं आती उसे सीख लो.

गोलावासियों, मैं तो हमेशा सीखने में यकीन रखता हूं. मैं हमेशा सीखता रहता हूं. हमारे यहां एक लोकल लीडर है. मैंने उससे भी बहुत बातें सीखी हैं. जल्द ही आप लोगों को 'मैं भी मोदी' वाली टोपी पहनाउंगा. मैंने ये बात उसी से सीखी है.

इसी तरह मैंने एक महान व्यक्ति से भी एक बड़ी बात सीखी. जो लोग हमारे उस भाई को डांटते फटकारते रहते हैं - वे ही उस महान शख्सियत को 10 साल तक इशारों पर नचाते रहे. उस इंसान का सिर ऐसा घूमा कि वो हमेशा के लिए खामोश हो गया. मैंने उससे भी दो बातें सीख लीं. एक - अच्छे दिन आएंगे - और दूसरा '...तोबे तुम चुप्प रोहो रे...'

मैंने इसी नवरात्र में इसका अच्छे से अभ्यास भी किया. उस भाई को डांटने फटकारने वालों ने खूब शोर मचाया. हमारी तपस्या और यज्ञ में विघ्न डालने की भरपूर कोशिश की. फिर वे खुद ही खामोश हो गए.

तो गोलावासियों, आपके भीतर जो प्रकाश है उसको पहचानिये. अपनी ऊर्जा को समझिए. अब चिंता छोड़ दीजिए. अब यहां अच्छे दिन आने वाले हैं.

तो अब मेरे साथ बोलिए...

मैं बोलूंगा 'अच्छे दिन...' और आपने बोलना है 'आएंगे...'

आइए साथ में बोलते हैं...

'अच्छे दिन...'

भीड़ का मुंह चल रहा था लेकिन आवाज फिर गायब थी. दरअसल, टीम मोदी के जुगाड़िस्टों ने पोर्नबैन के दौरान मंगलवासियों की कुछ बातों को न्यूट्रलाइज कर दिया था - और उसी के चलते उनकी आवाज़ गायब थी.

मोदी के भाषण के बाद मीडिया से मुखातिब एक प्रवक्ता ने बताया कि अच्छे दिन का ये जुमला असल में राहु ग्रह के लिए था क्योंकि वहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. ज्योतिष में महादशाओं की गणना में मंगल से पहले चंद्रमा और उसके बाद राहु का नंबर आता है जहां मोदी पांच साल बाद यानी 2020 में जाने वाले हैं.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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