व्यंग्य: पोर्नबैन पर बीजेपी में बगावत, संघ ने आडवाणी को सौंपी कमान
केंद्र सरकार के पोर्न बैन के फैसले ने विपक्ष को ही एकजुट नहीं किया है, बल्कि बीजेपी के भी ज्यादातर सांसदों को बागी बना दिया है.
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केंद्र सरकार के पोर्न बैन के फैसले ने विपक्ष को ही एकजुट नहीं किया है, बल्कि बीजेपी के भी ज्यादातर सांसदों को बागी बना दिया है. दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी के बागियों को संघ यानी आरएसएस का भी समर्थन हासिल है. इसी दबाव के चलते सरकार को बैकफुट पर भी आना पड़ा लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.
जमाने के साथ संघ
जिस तरह जातीय भेदभाव को खत्म करने के लिए संघ ने बड़ी पहल की थी, उसी तरह गे मामलों और पोर्न को लेकर भी उसने अपने रुख में बदलाव किया है. संघ के इस अप्रोच का सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी ने ही सपोर्ट किया था. जिन्ना को लेकर बयान देने के बाद से ही आडवाणी और संघ के बीच खाई बन गई थी, लेकिन इस मुद्दे ने वो खाई पाट दी है. दूसरी तरफ, इसी मुद्दे ने संघ और मोदी के बीच की दूरी बढ़ा दी है.
ताजा गतिविधियों से साफ हो गया है कि इमरजेंसी पर बयान देकर आडवाणी चुप नजर आ रहे थे लेकिन ये सब ऊपरी तौर पर था. अंदर तो गहरी सियासी चाल चल रही थी.
केजरीवाल को उल्टा पड़ा दांव
वैसे तो इसकी नींव तभी पड़ गई थी जब अरविंद केजरीवाल ने आडवाणी के घर जाकर उनसे मुलाकात की. केजरीवाल ने इमरजेंसी को लेकर उनके बयान को तपाक से लपक कर री-ट्वीट कर दिया था.
बताते हैं कि मुलाकात के दौरान केजरीवाल ने आडवाणी को सरकार बनाने की गणित समझाई. बीजेपी सांसदों की बगावत से पहले से ही उत्साहित आडवाणी को केजरीवाल की रणनीति जल्द ही समझ आ गई. आडवाणी को अंदाजा लग गया कि बीजेपी के बागियों, आप और विपक्षी दलों के सांसदों को मिलाकर बहुमत का आंकड़ा मैनेज किया जा सकता है. हालांकि, इसमें एक पेंच था, लेकिन आडवाणी ने केजरीवाल का ऑफर ठुकराने की जगह समझौता करना बेहतर समझा. असल में आडवाणी और राहुल गांधी दोनों ही केजरीवाल की राजनीतिक शैली का कायल बताए जाते हैं.
केजरीवाल चाहते थे कि आडवाणी भी सिसोदिया की तरह डिप्टी पीएम के रूप में मान जाएं और वो खुद एक्स-ऑफिशियो प्राइम मिनिस्टर बन जाएं. असल में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को निकालने के बाद आप ने पार्टी संविधान में तब्दीली करते हुए चीन की तरह ऐसी व्यवस्था बनाई है कि पार्टी का मुख्य संयोजक ही सत्ता का प्रमुख होगा. फिलहाल दिल्ली में यही व्यवस्था लागू है. अपने चार सांसदों के साथ केंद्र में सत्तारुढ़ दल का नेता होने के नाते केजरीवाल पदेन प्रधानमंत्री बन जाते.
जैसे ही संघ को अंदर ही अंदर पक रही इस खिचड़ी का पता चला वो हरकत में आ गया.
संघ ने दी दखल
दरअसल संघ को बाकी बातों से तो कोई प्रॉब्लम नहीं थी, लेकिन प्रधानमंत्री पद पर किसी और दल के नेता का नाम उसे मंजूर न था. इसके साथ ही संघ को ये बात भी मंजूर नहीं थी कि मोदी के तूफानी विदेशी दौरों से दुनिया भर में भारत की जो छवि उभरी है उस पर किसी तरह से आंच आए.
संघ को मोदी की जो सबसे अच्छी बात लगती है वो है अमेरिकी राष्ट्रपति को बगैर लाग लपेट के 'बराक' कह कर बुलाना. यही वजह है कि मोदी की नागवार गुजरनेवाली बातें भी वो खुले दिल से बर्दाश्त कर लेता है.
ताजा विवाद में संघ ने बीच का रास्ता निकाला जिसके तहत आडवाणी का पद तो डिप्टी पीएम का ही रहेगा, लेकिन मोदी की देश के किसी मामले में कोई दखलंदाजी नहीं होगी. मोदी प्रधानमंत्री पद पर बने रहेंगे लेकिन उनका कार्यक्षेत्र देश से बाहर ही रहेगा. संघ के इस फॉर्मूले पर किसी ने भी एतराज नहीं जताया क्योंकि मोदी को आंतरिक मामलों से अलग कर दिया गया था. संघ के साथ साथ हर कोई फिलहाल नई व्यवस्ता की तैयारियों में जुट गया है.
ऊपर से तो यही लग रहा है कि विपक्षी दल संसद का बायकॉट 25 सांसदों को सस्पेंड किए जाने के खिलाफ कर रहे हैं, लेकिन अंदर की बात ये है कि गुस्सा फूटा है पोर्न बैन को लेकर. यही वजह है कि विपक्षी सांसद बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. जिन बीजेपी सांसदों को गांधी प्रतिमा के पास देखा गया था वो विपक्षी सदस्यों का हाल चाल लेने नहीं बल्कि उन्हें समर्थन देने पहुंचे थे.
संसद में भगवंत मान ने अच्छे दिन के वादों को लेकर कविता सुनाई थी, जिस पर उन्हें खूब वाहवाही मिली थी. मान के साथियों ने अब उनसे 'अच्छी रातों' को लेकर कविता लिखने का आग्रह किया है क्योंकि उनका मानना है कि अच्छे दिन आने तो आने से रहे अब तो अच्छी रातें भी हाथ से निकलने वाली हैं.

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