व्यंग्य: अरे... लालू स्टाइल में ये क्या-क्या कह गए अमित शाह
अचानक से अमित शाह के सिर के बाल लालू की तरह खड़े हो गए. फिर उन्होंने कहा - धत्त बुड़बक. ढोकला कोई खाने की चीज है, जाओ एक गिलास सतुआ घोर के लाओ. और मकईया के रोटियो ले आना...
-
Total Shares
कहां पीके, कहां लालू प्रसाद! भला दोनों में क्या कॉमन हो सकता है? फौरी तौर पर दोनों की बोली और करीब करीब एक जैसा लहजा.
नहीं. एक बात और कॉमन है, जो अब तक रहस्य बना रहा. दुनिया की सबसे बड़ी इस मिस्ट्री के खुलासे का वाहक बने हैं अमित शाह.
फिल्म पीके में तो आमिर खान जिसका हाथ पकड़ ले रहे थे उसका सारा ज्ञान अपने पास ले लेते थे. लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही थी.
अमित शाह ने जैसे ही मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया लालू ने भी आगे बढ़कर जोर से पकड़ लिया. पकड़ क्या लिया छोड़ने का भी नाम नहीं ले रहे थे. अमित शाह का पूरा शरीर झनझना रहा था - और लालू खड़े खड़े मुस्कुरा रहे थे.
मुश्किल से 10 मिनट हुए होंगे. अमित शाह के भीतर लालू की पूरी स्टाइल ट्रांसफर हो गई. थोड़ी देर के लिए अमित शाह को लगा उनके सिर पर भी कुछ बाल लालू की तरह खड़े हो गए हैं.
![]() |
"कइसा लग रहा है अमित बाबू?" लालू ने यूं ही मजे लेने के लिए पूछा.
"धत्त बुड़बक." अमित शाह के मुंह से निकला ये तकिया कलाम लालू के लिए कंफर्मेटरी टेस्ट था. "अपना काम तो हो गया." लालू ने मन ही मन सोचा.
अमित शाह अपने आप में काफी बदलाव महसूस कर रहे थे. उन्हें सीबीआई की पूछताछ से लेकर तिहाड़ जेल के दिन याद आने लगे थे. अमित शाह अब वो सब महसूस करने लगे थे जो मौजूदा दौर में लालू प्रसाद करते रहे हैं.
कानूनी अड़चनें, राजनीतिक मजबूरियां, सर पर चुनाव, काट खाने को तैयार विरोधी और कदम कदम पर जहर का घूंट पीने की मजबूरी.
तभी एक क्षण के लिए अमित शाह के सामने बिल क्लिंटन का चमचमाता चेहरा घूम गया. उन्हें वो किस्सा याद आ गया. एक बार लालू को अंग्रेजी सिखाने की जिम्मेदारी क्लिंटन को दी गई थी. कई घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद पसीने से तरबतर क्लिंटन जब बाहर निकले तो बोले, "ई ससुरा ना सुधरी."
एक क्षण के लिए अमित शाह को लगा कि ये तो लेने के देने पड़ गए. साहेब ने क्या करने के लिए भेजा और यहां क्या हो गया. असल में मोदी ने शाह को कहा था कि वो लालू की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखें और उनका बारीकी से अध्ययन करें. फिर उसी के हिसाब से चुनावी स्ट्रैटेजी बनाई जाएगी.
अमित शाह तो यहां पूरी तरह लालू के रंग में रंग गए थे. वही चाल ढाल. हाथ में लाठी, गले में गमछा. और भी ऐसी तमाम चीजें.
शाम को जब गेस्ट हाउस लौटे तो लोगों को सरकार बदले बदले नजर आ रहे थे. लेकिन किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
चंपकलाल जब ट्रे में एक गिलास छाछ और पानी लेकर पहुंचे तो अमित शाह घूर कर देखने लगे. घूरने का अंदाज भी ऐसा था जैसा पहले कभी नहीं देखा गया था.
"ई का है? ई का है रे चंपकवा?"
अमित शाह ऐसे भी बोल सकते हैं ऐसा तो कोई सोचने की भी नहीं सोच सकता था. एकबारगी तो उन्हें लगा कि अमित शाह नहीं बल्कि उनका कोई डुप्लीकेट आ धमका है. चुनावी माहौल में क्या पता. चंपकलाल ने सोचा मोदी जी को फोन कर बताएं. लेकिन चंपकलाल जैसे ही दूसरे कमरे की ओर जाने लगे अमित शाह ने आवाज दी.
"कहां रे चंपकवा, ऊ साहेब को फोन करने जा रहा था. हम सब समझते हैं. ई तुम लोग का एक एक चीज हम बुझ जाते हैं." अमित शाह ने चंपकलाल को वापस बुला लिया.
फिर बोले, "ई का है?
"छाछ सरकार.
"ई छाछ का होता है रे. हम तो मट्ठा पीते हैं ना.
"जी सरकार. अभी लाते हैं सरकार."
चंपकलाल अंदर गए और शीशे की जगह फुल के गिलास में वही छाछ लेकर हाजिर हो गए. अमित शाह एक ही झटके में पूरा गिलास गटक गए.
"हूं. देख चंपकवा. हमको बहुत भूख लगी है. जल्दी से कुछ लाओ. का बनाए हो?
"सरकार... ढोकला है और जलेबी-फाफड़ा... जो आपको पसंद है सरकार. कहें तो कुछ और बना दें."
"धत्त बुड़बक. ई सब कौन खाता है रे. अब एही सब खिलाएगा हमको. चल छोड़. जा... सातू घोर के ए गिलास लाओ."
एक गिलास सत्तू का घोल पीने के बाद चंपकलाल ने फिर से गिलास भर दिया और अमित शाह ने उसे भी एक ही झटके में साफ कर दिया. गेस्ट हाउस में नौकर चाकर से लेकर कार्यकर्ता तक सभी अमित शाह का बदला हुआ रूप देख रहे थे. कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था.
"देखो हम निकल रहे हैं. देर से लौटेंगे. रात को खाने में क्या बनाओगे?"
वही जो आपको सबसे ज्यादा पसंद है सरकार. गट्टे की सब्जी, थेपला और गुड़ और राबड़ी का पराठा."
"धत्त बुड़बक. तुमको किसने बताया हम ई सब खाते हैं."
"जो बताएं वही बना दें सरकार..."
"ठीक है. एक काम करो..."जी..."
"मकई का रोटी और ओल का चोखा बना दो. ठीक है?"
"जी सरकार."
अमित शाह उठे और बाहर निकल गए. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था. कोने में खड़ा मंगरू मन ही मन मुस्करा रहा था.
मंगरू को सभी मूर्ख समझते थे और हमेशा मजाक उड़ाया करते थे. आज वही एक ऐसा शख्स था जो अमित शाह की हर बात ठीक से समझ पा रहा था.
मंगरू का बड़ा भाई सोमारू एक बार लालू के यहां काम छोड़ कर सूरत चला गया था. वहां बीमार पड़ गया. उस दौरान अमित शाह ने उसकी बहुत मदद की थी. जब अमित शाह पटना आए तो वो मिलने आया. चूंकि सोमारू लालू के यहां फिर काम करने लगा था इसलिए उसने अपने छोटे भाई मंगरू को सेवा के लिए अमित शाह के पास भेज दिया. तब से मंगरू गेस्ट हाउस की पहरेदारी का काम दे दिया गया था.
रात में थोड़ा जल्दी ही लौट आए. संयोगवश खाना तैयार हो गया था. खाना खाकर अमित शाह खूब खुश हुए.
अमित शाह को जब खाना बहुत बढ़िया लगता है तो वो कुक को इनाम देते हैं. जब इनाम लेने की बारी आई तो चंपकलाल चुपचाप सिर झुकाए खड़े थे. मंगरू भी पास में खड़ा था. अमित शाह ने कुछ और नहीं पूछा. एक बार में ही उन्हें सब समझ में आ गया. उसके बाद.
मंगरू को मेन कुक बना दिया गया और चंपकलाल को गेस्ट हाउस के देख रेख और पहरेदारी की जिम्मेदारी सौंप दी गई.


आपकी राय