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Updated: 18 सितम्बर, 2015 02:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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दिल्ली में डेंगू फैलने की असली वजह क्या हो सकती है? एमसीडी की लापरवाही, अस्पतालों का गैर-जिम्मेदाराना रवैया या फिर दिल्ली की लंबे अरसे से चली आ रही जंग?

अगर ये मालूम हो कि इनमें से कोई नहीं तो? तो भी चौंकिए नहीं. इसको लेकर कई थ्योरी सामने आ रही हैं.

एक वजह बताई जा रही है आम आदमी पार्टी से योगेंद्र यादव का निकाला जाना.

दूसरी, दिल्ली पुलिस का केजरीवाल सरकार के नियंत्रण में न होना.

और तीसरी, स्वच्छता अभियान का टारगेट पूरा न हो पाना.

एक खास बात. असल में, दिल्ली सहित पूरे देश के लिए झाडुओं का एक ही सप्लायर है. डिमांड के हिसाब से वो सप्लाई करता है. सीमित स्टॉक होने के कारण ऐसा भी होता है कि हर काम में वही झाडू रोटेट होते रहते हैं. सप्लायर इसके लिए बाकायदा कॉन्ट्रैक्ट साइन करता और अगर डील बड़ी होती तो एएमसी मुफ्त में मुहैया करवाता.

थ्योरी 1

आम आदमी पार्टी के चुनाव चिह्न के तौर पर झाडू को लेकर पहले योगेंद्र यादव सहमत नहीं थे. शायद इसलिए भी कि ये पूरी तरह उनके दिमाग की उपज नहीं थी. बाद में तो उन्हें ये इतना पसंद आया कि वो इमोशनली अटैच्ड हो गए. फिर तो सारा काम उन्होंने अपने हाथ में ले लिया.

योगेंद्र यादव ने बाकायदा इसके लिए सप्लायर के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किया और एएमसी का भी ठेका उसी को दे दिया. यादव को पार्टी से निकाले जाने के बाद कॉन्ट्रैक्ट तो रीन्यू हो गया लेकिन एएमसी बंद कर दिया गया. नतीजा ये हुआ कि झाडू इस्तेमाल तो होते रहे लेकिन साफ सफाई बंद हो गई.

थ्योरी 2

इस थ्योरी के हिसाब से देखें तो दिल्ली पुलिस का भी रोल कम नहीं है. सीधे तौर पर न सही लेकिन परोक्ष रूप से मायावती ने भूमिका निभाई वो भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. दरअसल, कम लोगों को ही मालूम है कि आप को चुनाव निशान के रूप में झाडू मायावती के एनओसी देने पर ही अलॉट हो पाया था. (पूरी स्टोरी यहां पढ़ें.)

बाद में जब स्वच्छता अभियान में झाडू का इस्तेमाल होने लगा और केजरीवाल उसे नहीं रोक पाए तो मायावती आपे से बाहर हो उठीं. मायावती ने चुनाव आयोग से फौरन झाडुओं को जब्त कर बीएसपी के हवाले करने को कहा. मायावती की दलीलों के आगे चुनाव आयोग की एक न चली. मायावती ने जैसे ही चुनावों के दौरान मूर्तियों को ढके जाने का मामला उठाया आयोग की बोलती बंद हो गई. फिर फैसला होने तक मजबूरन उन्हें कवर करने का आयोग को आदेश देना पड़ा.

चुनाव आयोग ने झाडुओं को कवर करने के साथ ही सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस को सौंप दी. आयोग ने साफ सफाई की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार पर सौंप दी. मगर, झगड़े के चलते दिल्ली पुलिस केजरीवाल सरकार के सफाई कर्मियों को फटकने तक न देती.

थ्योरी 3

धरती पर स्वच्छता अभियान के साल भर पूरे होने के उपलक्ष्य में मंगल पर भी वैसी ही मुहिम शुरू की जानी थी. जैसे ही स्वच्छता अभियान में टारगेट पूरा नहीं हो पाने को लेकर एक अफसर पर गाज गिरने की बात सामने आई नौकरशाही में हड़कंप मच गया.

जब पूरी बात सामने आई तो प्रधानमंत्री भी हैरान हो उठे. फौरन इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग में केजरीवाल और मायावती को भी बुलाया गया. चूंकि दोनों के झगड़े के चलते सारे झाडू डंप किए गए थे, इसलिए बगैर इन दोनों की आपत्ति वापस लिए उन झाडुओं का इस्तेमाल भी संभव न था. प्रधानमंत्री ने केजरीवाल और मायावती को स्वच्छता अभियान और मार्स मिशन की दुहाई दी तो उन्हें पीछे हटना पड़ा.

मीटिंग खत्म हुई तब तक भोर के पौने तीन बज चुके थे. उसी वक्त दिल्ली पुलिस को झाडुओं के ढेर से तिरपाल हटाने का हुक्म जारी हुआ.

जैसे ही तिरपाल हटाया गया मच्छरों का झुंड चारों ओर फैल गया. ये सारे डेंगू वाले मच्छर थे जिन्होंने देखते ही देखते पूरी दिल्ली और फिर धीरे धीरे पूरे एनसीआर को चपेट में ले लिया.

क्या दिल्ली में झाडू की वजह से डेंगू फैला? अगर योगेंद्र यादव के करीबियों की मानें तो हकीकत यही है. असल में यादव ने झाडू के इस्तेमाल को लेकर जो गाइडलाइन तैयार की थी, उसे केजरीवाल के करीबियों की नई जमात ने ठंडे बस्ते में डाल दिया - और नतीजा पूरी दुनिया देख रही है.

जब गर्दन पर तलवार लटक रही है तो नई थ्योरी ये दी जा रही है कि मोदी के बर्थ डे मनाने के कारण डेंगू फैला.

माना जा रहा है योगेंद्र यादव जल्द ही इस पर ब्लैक पेपर ला सकते हैं. जब सरकार किसी मामले पर ए-टु-जेड जानकारी के साथ डॉक्युमेंट पेश करती है तो उसे 'श्वेत पत्र' कहते हैं. ऐसा ही काम किसी निजी संस्था या शख्सियत द्वारा होता है तो उसे 'श्याम पत्र' कहा जाता है. इस तरह पूरा मामला तब तक क्लिअर नहीं होगा जब तक योगेंद्र यादव का ब्लैक पेपर सामने नहीं आ जाता.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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