आम आदमी कैंटीन: मजदूरी बढ़ाएं, मुफ्तखोरी नहीं
आम आदमी के परम 'हितैषी' केजरीवाल ने दिल खोल दिया है. दिल्ली की जनता मात्र 5-10 रुपये में भर पेट खाना खा सकती है. दिल्ली से गरीबी 'उन्मूलन' में यह मील का पत्थर साबित होगी.
-
Total Shares
भारत गरीबों का देश है... गरीबों के साथ मजाक-खिलवाड़ नहीं होने देंगे... गरीबों के हक की लड़ाई में मेरी जान चली जाए तो खुद को धन्य समझूंगा... गरीबों को सब्सिडी मिलनी चाहिए, यह उनका हक है - एकदम सही समझे, ये सब और ऐसे बहुत सारे जुमले अपने नेताओं ने तैयार कर रखे हैं. समय-समय पर इसका प्रयोग करते हैं. 60-70 वर्षों से करते आ रहे हैं. अभी हाल में केजरीवाल भी इस 'पावन' मुहिम में जुटते दिख रहे हैं. तमिलनाडु की अम्मा (जयललिता) स्टाइल में वह दिल्ली की जनता को लगभग मुफ्त में भर पेट खाना खिलाएंगे.
मात्र 5-10 रुपये में पौष्टिक खाना
'आम आदमी' पार्टी. नाम ही काफी है. इनका तो दावा भी है कि जो यह बोलते हैं, वही करते भी हैं. दिल्ली के आम आदमी ने दिल खोलकर वोट दिए - AAP को जीत दिलाई. केजरीवाल को सीएम बनाया. अब इनकी बारी थी. इन्होंने भी दिल खोल दिया. दिल्ली की आम जनता को अब सरकार खाना खिलाएगी - मात्र 5-10 रुपये में. बिल्कुल अम्मा स्टाइल में. दिल्ली डायलॉग कमिशन ने इस बाबत एक प्रस्ताव बनाया और पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल ने तुरंत ही इसे पास कर दिया. करते भी क्यों नहीं, आखिर आम आदमी की सहूलियत का सवाल जो ठहरा!
गरीबों और गरीबी का ध्यान
सरकारें चाहे कहीं की हो, पार्टी चाहे कोई भी हो, गरीब और उनकी गरीबी पर हमेशा सोचती रहती है. जनता की सेवा और कहा किसे जाता है! गरीबी उन्मूलन, गरीबों को भोजन-कपड़ा-मकान. सरकार बहुत ज्यादा ही 'ख्याल' रखती है इनका. आश्चर्य आज तक न तो इस देश से गरीब कम हुए हैं और न ही इनकी गरीबी. सरकार और नेता लोग करें भी तो क्या करें? गरीबों की जनसंख्या ही इतनी है. सारी मेहनत बेकार चली जाती है.
लोगों को पौष्टिक आहार की समझ ही नहीं
सरकार को कमजोर समझने की भूल न करें. सरकार चाहे तो मिनटों में गरीब और उनकी गरीबी दोनों को दूर कर दे. करना क्या है - न्यूनतम मजदूरी दर को 4-5 गुना बढ़ा दें. अब आप बजट-ऊजट का कुतर्क यहां मत दीजिए. देश में पैसों की इतनी ही किल्लत होती तो यकीन मानिए हमारे सांसद जान दे देते लेकिन कभी भी अपनी सैलरी 3-4 गुना नहीं बढ़ाते. चूंकि गरीब लोगों को पौष्टिक आहार के बारे में पता तो होता नहीं है, इसलिए उन्हें ज्यादा पैसा देना समाधान नहीं हो सकता. और यहीं पर सरकार ने सब्सिडी जैसे ब्रह्मास्त्र का ईजाद किया. यह सरकार की सहृदयता ही है, जो जनता को गरीब तो देख सकती है, पर उसकी पौष्टिकता से खिलवाड़ नहीं कर सकती.
केजरीवाल को मीलों तय करना है
अन्ना कैंटिन से केजरीवाल को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. उन्होंने भले ही दिल्ली में मोदी के रथ को रोकने में सफलता पाई है पर दक्षिण भारत की 'दिल खोल' राजनीति को पछाड़ने का सपना न ही देखें तो बेहतर है. उन्हें पछाड़ने के लिए आपको अभी और भी व्यंजनों की जरूरत पड़ेगी. सब्सिडी वाले खाने की थाली में आपको टीवी, फ्रिज, साइकिल, हीटर, धोती-साड़ी जैसे आधुनिक व्यंजनों को भी परोसना होगा. हां, बस एक गलती मत कीजिएगा - आम आदमी को कभी अमीर आदमी नहीं बनाइएगा. वो क्या है न, उन्हें व्यंजनों की भी समझ नहीं होती. कुछ उल्टा-पुल्टा खा लेंगे तो...

आपकी राय