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Updated: 09 मई, 2016 09:44 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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देश के फाइनेंशियल सेक्टर में सवाल उठा रहा है कि क्या आरबीआई की कमान सितंबर 2016 के बाद भी गवर्नर रघुराम राजन के हाथ में रहेगी या फिर केन्द्र सरकार के पास राजन का कोई दूसरा विकल्प है? रघुराम राजन का तीन साल का टर्म सितंबर में खत्म हो रहा है. इससे पहले केन्द्र सरकार को तय करना है कि क्या वह सितंबर के बाद राजन को इस पद पर जारी रखेगी?

हाल में जब रघुराम राजन से यह सवाल किया गया कि क्या वह अगले तीन और साल के लिए आरबीआई के गवर्नर बने रहेंगे? राजन का जवाब था कि इस सवाल का जवाब वह तब तक नहीं दे सकते जब तक केन्द्र सरकार उनसे नहीं पूछती ‘क्या मैं दोबारा आरबीआई गवर्नर बनना चाहता हूं?’

बीते तीन साल के कार्यकाल के दौरान रघुराम राजन महंगाई के खिलाफ लड़ते रहे हैं. केन्द्र सरकार ने इस दौरान कई बार उम्मीद जताई कि केन्द्रीय बैंक देश में कारोबारी तेजी लाने के लिए ब्याज दरों मे कटौती करेगी. लेकिन राजन ने कभी मानसून तो कभी अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी का हवाला देकर सरकार को मायूस किया है. इसके चलते यह भी माना गया कि वित्त मंत्री अरुण जेटली आरबीआई प्रमुख के फैसलों से इत्तेफाक नहीं रखते और दोनों की कटुता राजनीतिक गलियारों में चर्चा में रहती है. वहीं कॉरपोरेट जगत में भी कई लोगों का मानना है कि ब्याज दरों पर राजन का रुख जरूरत से ज्यादा सख्त है.

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रघुराम राजन

इस स्थिति में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमेशा रघुराम राजन पर भरोसा जताया है. मोदी को अर्थजगत पर राजन की दलील पर पूरा भरोसा है. मोदी को राजन की इस बात पर भी इत्तेफाक हैं कि इस साल उम्मीद से बेहतर मानसून रहने की स्थिति में केन्द्रीय बैंक ब्याज दरों में बड़ी कटौती कर सकती है.

लिहाजा, सितंबर में राजन को बतौर गवर्नर जारी रखने का फैसला करते वक्त मोदी के सामने अच्छे मानसून का आंकड़ा भी होगा और साथ में जून और अगस्त की मौद्रिक समीक्षा का नतीजा भी होगा. लिहाजा, उम्मीद है कि मौसम विभाग का अनुमान सही बैठने की स्थिति में अपने मौजूदा टर्म की आखिरी समीक्षा (अगस्त) में रघुराम राजन ब्याज दरों पर बड़ा फैसला लें. उनका यह फैसला उनके नए टर्म पर होने वाले फैसले के लिए अहम रहेगा.

गौरतलब है कि 2013 में आरबीआई की कमान संभालने के पहले राजन वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं. उससे पहले वह शिकागो युनिवर्सिटी में फाइनेंस पढ़ाते थे और इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) में प्रमुख अर्थशास्त्री थे. हाल ही में राजन ने कहा था कि उन्हें पढ़ाने का काम पसंद है और आरबीआई की जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद उनकी प्राथमिकता एक बार फिर अकेडमिक्स में जाने की होगी.

केन्द्र सरकार से राजन की खींचतान और उनकी बेबाक राय पर कई बार विवाद हुए हैं. हाल ही में एक विदेशी पत्रकार को दिए इंटरव्यू में राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना एक अंधे देश में काने राजा के मुहावरे से की थी जिसके बाद सरकार के कई मंत्रियों ने उनके बयान में शब्दों के चयन पर आपत्ति उठाई थी. मोदी के मंत्रियों से सीधे टकराव की इस स्थिति के चलते भी मार्केट में इस बात को समय-समय पर हवा मिलती रही है कि केन्द्र सरकार अब उनको ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं करेगी. वहीं बैंकों के गंदे कर्ज के मुद्दे पर उनके कड़े रुख के चलते भी कॉरपोरेट जगत के कुछ वर्ग उन्हें ग्रोथ की राह में बाधक समझता है.

ऐसे में मोदी सरकार अपना फैसला चाहे जिस आधार पर करे लेकिन कम से कम उसे रघुराम राजन से यह सवाल तो जल्द से जल्द पूछ लेना चाहिए कि क्या वह तीन साल के लिए और केन्द्रीय बैंक की कमान संभालना चाहते हैं. इससे न सिर्फ रघुराम राजन जल्द से जल्द जवाब दे सकेंगे बल्कि सरकार के पास भी अपना फैसला करने के लिए पर्याप्त समय रहेगा. इसका सबसे बड़ा फायदा उन कयासों को शांत करने में दिखाई देगा जो दावा करते हैं कि केन्द्रीय बैंक और केन्द्र सरकार में मतभेद है, जो दावा करते हैं कि रघुराम राजन और अरुण जेटली में मतभेद है. इस सवाल का जवाब यह साफ कर देगा कि देश की मौद्रिक नीति को तय करने में जीत रघुराम राजन की होगी या फिर अरुण जेटली की.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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