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Updated: 01 मई, 2015 11:16 AM
पीयूष बबेले
पीयूष बबेले
  @piyush.babele.5
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जहां लोग इस बात के इंतजार में बैठे हैं कि देश में बुलेट ट्रेन चले और वे फर्राटे से सफर करें, लेकिन पैसों की तंगी रेल को रफ्तार नहीं पकडऩे देती. दूसरी तरफ रेलवे के संसाधनों को उसी के लोगों की मिलीभगत से चूना लगाया जा रहा है. ताजा मामला रेलवे में हुए अब तक के सबसे हाइटेक घोटाले से जुड़ा है. सीबीआइ और रेलवे की सतर्कता शाखा के संयुक्त अभियान में 65 स्थानों पर मारे गए छापों में यह बात निकलकर सामने आई है कि मालगाडिय़ों द्वारा ढोए जा रहे माल की घटतौली का देशव्यापी रैकेट चल रहा था. देश भर में चल रहे इस रैकेट ने वित्त वर्ष 2012-13 में रेलवे को कम-से-कम 4,000 करोड़ रु. का चूना लगा दिया.

इस बार रेलवे के चोरों ने पूरी तरह हाइटेक रूट अख्तियार करते हुए रेल वैगन में लदे भार को ऑटोमैटिक ढंग से तौलने वाले धर्मकांटे (इलेक्ट्रॉनिक इन मोशन वेट ब्रिज-ईआइएमडद्ब्रल्यूबी) के सॉफ्टवेयर में ही छेड़छाड़ कर दी. ईआइएमडद्ब्रल्यूबी इस तरह का पुल है जिसके ऊपर से जब कोई मालगाड़ी 15 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गुजरती है, तो उसमें लदे माल की अपने आप तौल हो जाती है. सॉक्रटवेयर में इस तरह छेड़छाड़ की गई कि धर्मकांटे की रीडिंग वैगन में लदे माल के वास्तविक वजन से कम आने लगी. ऐसे में किया यह गया कि वैगन को पहले ओवरलोड किया गया और जब इस धर्म कांटे ने उसका वजन लिया तो वह तय सीमा के भीतर आया. इससे एक तरफ घटतौली कर राजस्व को नुक्सान पहुंचा, दूसरी तरफ ज्यादा बोझ ढोने से पटरियों की हालत भी खस्ता हुई.

रेलवे ने वित्त वर्ष 2012-13 में माल ढुलाई से 85,262 करोड़ रु. के राजस्व की प्राप्ति की. सीबीआइ सूत्रों का दावा है कि अगर माल ढुलाई को पांच फीसदी भी कम दिखाया गया होगा तो रेलवे को कम-से-कम 4,200 करोड़ रु. के राजस्व का नुक्सान हुआ. सीबीआइ ने चार दिन चले ऑपरेशन में 500 से ज्यादा अधिकारी इस खोजबीन में लगाए थे. मामले के अचानक सामने आने के बाद रेलवे ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि यह मामला रेलवे और सीबीआइ की संयुक्त कार्रवाई में सामने आया है. रेलवे के प्रवक्ता अनिल कुमार सक्सेना ने बताया, "व्यावस्था को बेहतर करने और खामियों को उजागर करने के लिए यह रेलवे के विजिलेंस विभाग और सीबीआइ की संयुक्त कार्रवाई है. इस मामले में रेलवे सीबीआइ से पूरा सहयोग कर रहा है ताकि सच्चाई सामने आ सके और गड़बड़ी के सुधार के लिए कदम उठाए जा सकें. हमारा लगातार यह प्रयास है कि रेलवे के कामकाज में क्षमता बढ़े और कामकाज में ज्यादा पारदर्शिता आए."

सीबीआइ ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिसा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान और गुजरात में अलग-अलग स्थानों पर छापेमारी की है. सीबीआइ सूत्रों ने बताया कि ईआइएमडद्ब्रल्यूबी वाले अलग-अलग स्थानों से 65 हार्ड डिस्क जद्ब्रत की जा चुकी हैं. शक है कि इन स्थानों पर निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए घटतौली की गई. सीबीआइ ने इन हार्ड डिस्क का डेटा फॉरेंसिक लैब को जांच के लिए भेज दिया है. इससे यह पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि असल में सॉक्रटवेयर में छेड़छाड़ वेंडर के स्तर पर हुई या फ्रेट कैरियर के स्तर पर या रेल अधिकारियों के स्तर पर.

सीबीआइ जांच के दौरान रेलवे अधिकारियों और अन्य माध्यमों से जद्ब्रत किए गए कागजात की जांच कर रही है. घटतौली के जो मामले सामने आए हैं वे छह कंपनियों से जुड़े हैं. इनमें एसेस डिजिट्रॉनिक्स प्रा. लिमि., डिजिटल वीइंग सिस्टम प्रा. लिमि., राइस लेक वेइंग सिस्टम इंडिया प्रा. लिमि., शैक प्रोसेस इंडिया प्रा. लिमि., आर आर इंजीनिरिंग्स ऐंड कंसल्टेशन, सनमार वेइंग सिस्टक्वस लिमि. और सीन लॉजिस्टिक्स शामिल हैं.

सीबीआइ का आरोप है कि शुरुआती जांच में पता चला है कि दोनों तरह के पुलों यानी खड़ी गाड़ी और चलती गाड़ी में वजन तौलने की क्षमता वाले पुलों में गड़बड़ी पाई गई है. भारतीय रेलवे ने डेवलपमेंट ऐंड स्टेंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन (आरडीएसओ) के सहयोग से ईआइएमडद्ब्रल्यूबी विकसित किए हैं. पूरे देश में करीब 200 स्थानों पर इस तरह के पुल लगाए गए हैं. जब मालगाड़ी 15 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से पुल से गुजरती है तो अपने आप माल तौल लिया जाता है. सीबीआइ सूत्रों का कहना है, "पहली नजर में ऐसा लगता है कि रेलवे अधिकारियों, निजी कंपनियों और फ्रेट ऑपरेटर्स की साठगांठ से यह काम किया गया है. यह सारी गड़बड़ निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए की गई है. इससे निजी कंपनियों को फायदा और सरकार को नुक्सान हुआ. इसके साथ ही रेल पटरियों, मालगाड़ी के डिद्ब्रबों और रेलवे की सुरक्षा को नुक्सान पहुंचा है."

दो साल के भीतर यह रेलवे में तीसरी बड़ी खामी उजागर हुई है. इससे पहले यूपीए सरकार में तत्कालीन रेल मंत्री पवन कुमार बंसल को तब इस्तीफा देना पड़ा था, जब उनके भानजे पर पैसे लेकर रेलवे में पोस्टिंग कराने का अरोप लगा था. सितंबर 2013 में भारत के नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक (सीएजी) की ड्राफ्ट रिपोर्ट में भी माल ढुलाई में एक अन्य घोटाले का अंदेशा जताया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि विदेश के लिए माल ढुलाई करने वाली कंपनियों को देसी माल ढुलाई वाली कंपनियों के रूप में दिखाकर करीब 17,000 करोड़ रु. के राजस्व का नुक्सान कराया गया. निर्यात वाले माल की ढुलाई दर घरेलू ढुलाई से कहीं ज्यादा है.

लेकिन अब तक इनमें से किसी मामले में दोषियों को सजा नहीं हो पाई है. ताजा मामले में भी सैकड़ों लोग शामिल दिख रहे हैं, ऐसे में असली चोर का पहचानना फिर कठिन होगा.

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लेखक

पीयूष बबेले पीयूष बबेले @piyush.babele.5

लेखक इंडिया टुडे में विशेष संवाददाता हैं.

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