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Updated: 10 दिसम्बर, 2015 06:11 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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देश की संसद का सबसे महत्वपूर्ण सत्र चल रहा है. सबसे महत्वपूर्ण इसलिए कि पिछले सत्र में विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया और देश के सबसे बड़े आर्थिक रिफॉर्म जीएसटी पर कानून को पास नहीं किया जा सका. मौजूदा सत्र में एक बार फिर जीएसटी पर सुलह नहीं हो पा रही है क्योंकि राजनीतिक दलों को आर्थिक मुद्दे पर कानून बनाने से ज्यादा जरूरी काम करना है. शायद इसीलिए दोनों सदनों में अटेंडेंस से ज्यादा कुछ नहीं हो पा रहा है.

इस बीच प्रधानमंत्री मोदी संसद में 1 घंटे की टूटोरियल फिल्म चलवा रहे है जिसका मकसद इस कानून की बारीकियां देश के सभी सांसदों को रटा दी जाए. ऐसा इसलिए कि इस कानून के लिए देश के संविधान में बड़ा परिवर्तन किया जाना है और इसके लिए केन्द्र सरकार को इस बिल को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से इसे पारित कराने के साथ-साथ कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से भी पारित कराना है.

ऐसे में अब देश के 29 राज्यों की जनता को यह समझ लेना चाहिए कि देर-सबेर जब जीएसटी लागू होगा तो उनकी जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा. जनता के लिए यह जानना इसलिए भी जरूरी है कि पिछले एक दशक से देश में इस आर्थिक रिफॉर्म को लागू करने की कोशिश की जा रही है लेकिन हर बार विपक्ष में बैठे राजनीतिक दलों को इसे टालने के लिए कोई वजह मिल जाती है. गौर करें कि जीएसटी से पहले कोई बड़ा आर्थिक सुधार 1991 में किया गया था जब हमने वैश्विकरण हो रहे विश्व में अपनी नीतियों को उदारवादी बनाना शुरू किया. इस फैसले ने देश की अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार दी और आज दो दशक से ज्यादा समय में भारत उन देशों में शुमार है जो वैश्विक ग्रोथ के आंकड़ों को ऊपर की ओर खींच सकता है.

लिहाजा, आम आदमी को जीएसटी समझने के लिए सबसे जरूरी है कि वह अपने मूल राज्य के परिपेक्ष्य में नए कानून को जाने. जीएसटी के मुताबिक राज्यों को दो भागों में बांटा जा सकता है, पहला, प्रोड्यूसर राज्य और दूसरा नॉन प्रोड्यूसिंग कंज्यूमर राज्य. प्रोड्यूसर राज्यों में गुजरात, तमिलनाडू और महाराष्ट्र शामिल हैं जो उत्पादन कर रहे हैं और दूसरे राज्यों को निर्यात कर रहे हैं. वहीं नॉन प्रोड्यूसिंग कंज्यूमर राज्य वे हैं जहां उत्पादन का स्तर काफी कम है और वे अपनी जरूरतों के लिए पड़ोसी राज्यों पर ज्यादा निर्भर हैं. जाहिर है बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस श्रेणी में हैं. अब इस प्रस्तावित जीएसटी में जिन राज्यों में उत्पादन अधिक हो रहा है को टैक्स का नुकसान होगा क्योंकि उनके उत्पाद पर टैक्स लगाने का काम नॉन प्रोड्यूसिंग कंज्यूमर राज्य करेंगे क्योंकि इस उत्पाद की खपत उनके राज्य में हो रही है. इसके लिए केन्द्र सरकार प्रोड्यूसिंग राज्यों को रेवेन्यू में होने वाले नुकसान पर मुआवजा देने के लिए तैयार है.

दूसरा पक्ष है बिहार और यूपी जैसे राज्यों का. इन्हें टैक्स का लाभ होगा क्योंकि इन राज्यों की जनसंख्या अधिक है और अपनी जरूरत की ज्यादातर चीजों के लिए इन्हें दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है. अब जीएसटी का प्रस्ताव भी एकदम तर्कसंगत है क्योंकि जीएसटी की कोशिश पूरे देश में एक समान टैक्स ढांचा स्थापित कर सभी देशों को आर्थिक गतिविधि में लेवल प्लेइंग फील्ड देने का है.

लिहाजा, जीएसटी लागू होने के बाद देश के कुछ पिछड़े हुए अहम राज्यों के पास अपने बड़े मार्केट साइज के चलते अच्छा रेवेन्यू आएगा. इस रेवेन्यू का इस्तेमाल इन राज्यों को अपनी इंडस्ट्रियल एक्टिविटी को बढ़ाने के लिए करना होगा. जिससे उनके राज्य में रोजगार के नए साधन के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा सके. गौरतलब है कि अभीतक प्रोड्यूसिंग राज्य अपने राज्य में हो रहे उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा रखता रहा है जबकि उसके उत्पाद की सबसे ज्यादा खपत उन राज्यों में हो रही है जहां जनसंख्या अधिक है और इंड्रस्ट्री के नाम पर कुछ नहीं है क्योंकि बेसिक इंफ्रा के साथ-साथ इन राज्यों में रॉ मटेरियल की उपलब्धता भी कम है. ऐसे में इन राज्यों को अपनी बड़ी जनसंख्या को पोषित करने के लिए मात्र एंट्री टैक्स से काम चलाना पड़ा था.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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