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Updated: 18 नवम्बर, 2016 01:03 PM
मनोज जोशी
मनोज जोशी
 
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यह सर्वविदित तथ्य है कि भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था के लिए काला धन बहुत गहरी चुनौती है. वस्तुत: भारत में काले धन की एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है जिसके बारे में लंबे समय से चर्चाएं हो रही हैं लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं मिल रहा है. कहने को तो भारत में योग्य एवं कुशल विचारकों और अर्थ शास्त्रियों की बहुतायत है और बहुत से विद्वानों व अर्थशास्त्रियों ने इस समस्या के कई समाधान भी सुझाए हैं. परंतु इस समस्या का कोई ठोस समाधान नजर नहीं आता.  दुःख की बात यह है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की हाल ही की विमुद्रीकरण की स्कीम का विपक्षी दाल अज्ञात कारणों से विरोध कर रहे है. इस देश में काले धन पर एवं इससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विस्तृत विचार करने की आवश्यकता है. देशभर में इस पर बहस होनी चाहिए.  

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 काला धन सिर्फ धन के रूप में नहीं बल्कि काली संपदा के रूप में भी जमा किया जा सकता है

भारतीय अर्थव्यस्था में आर्थिक आर्थिक विषमता

भारत के सकल घरेलु उत्पाद - Gross Domestic Product (GDP), 2016 में , $ 2.25 ट्रिलियन है.  सामान्य GDP के हिसाब से भारत का स्थान विश्व में सातवाँ (7th ) है एवं परचेस पावर पैरिटी (PPP) के हिसाब से तीसरा (3rd) है. एक अनुमान के मुताबिक कुल GDP में कृषि का योगदान 17%, उध्योग का योगदान 30% एवं सेवा क्षेत्र का योगदान 45% है. भारतीय अर्थव्यस्था का गहन अध्यन करने पर बड़ी मात्रा में आर्थिक आर्थिक विषमता का आभास होता है. भारत में गरीब राज्यों की बात की जावे तो वे भारत के अमीर राज्यों की तुलना में 3 से 4 गुना तक गरीब है. भारत की औसत प्रति व्यक्ति आय $1600 है जबकि उत्तरप्रदेश में औसत प्रति व्यक्ति आय $450  है एवं बिहार में मात्र $300 है. एक अनुमान के मुताबिक विदेशों में भारत का काला धन लगभग $500 बिलियन है. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार अकेले स्विट्ज़रलैंड में ही $1.10 ट्रिलियन जमा है. अलग अलग गणितीय फार्मूला से गणना की जावे तो भारत में कुल काला धन, भारत की कुल GDP का 25% से 44% के बीच है.          

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काला धन क्या है ?

‘काले धन’ शब्द का प्रयोग अमूमन बिना हिसाब-किताबवाले धन या छुपी हुई या अघोषित उस धन के लिए किया जाता है, जो उन सौदों से कमाया जाता है जो की पूर्णतया अथवा अंशतया प्रतिबंधित सौदों से प्राप्त किया गया है. जरुरी नही है की ऐसा काला धन काली आय के रूप में ही हो बल्कि यह काली संपदा के रूप में भी जमा किया जा सकता है. काली आय का मतलब उन समस्त अवैध प्राप्तियों और लाभों से है जो करों की चोरी, गुप्त कोषों तथा अवैध कार्यो के करने से जमा की गई हो. काली संपदा से तात्पर्य ऐसी काली आय, जो वर्तमान में खर्च नहीं की जाती है और बचाकर विनियोजित कर दी जाती है. विनियोग, सोना-चांदी, हीरे-जवाहरातों, बहुमूल्य पत्थरों, भूमि, मकान, व्यापारिक परिसंपत्तियों आदि में किया जाता है. सरकार या आयकर-अधिकारियों की पकड़ से बचाने के लिए उपर्युक्त प्रक्रिया को प्रयोग में लाया जाता है. इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि काला धन न केवल क़ानूनी प्रावधानों का उल्लघन कर कमाया जाता है बल्कि सामाजिक स्थापित मूल्यों से भी समझौता किया जाता है.

भारत में हवाला कारोबार

नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पब्लिक फनांकडे एंड पालिसी (NIPFP) की एक रिपोर्ट के अनुसार "हवाला  बाजार" एक वैकल्पिक बाजार है जिसे की अवैध रुपयों को देश में एक जगह से दूसरी जगह पर, गैरकानूनी तरीके से, अंतरित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इसी रिपोर्ट के अनुसार 2013-14 में कुल 270 मिलियन का अवैध तरीके से भारत में लाया गया सोना जब्त किया गया था. अनुमान है की में सैंकड़ों कंपनियाँ हवाला के जरिए काले धन के हवाला का कारोबार कर रही हैं. हवाला के जरिये ही काला धन आतंकवादियों एवं ड्रग माफियाओं के पास पहुचाया जाता है.

काला धन पूंजीवाद का जन्मदाता है

पूंजीवाद  हर काम में अपना मुनाफा चाहता है. जिस कार्य में उसे  लाभ प्राप्त न हो उसे वह अनुत्पादक मानता है. मौद्रिक लाभ पूंजीपति वर्ग का उत्प्रेरक होता है.  जबकि पूंजीवाद ऐसे उत्पाद अथवा कार्य, जिससे केवल जनता को लाभ हो और पूंजीपति को धनलाभ न पहुंचे, को अनुत्पादक मानकर उनकी ओर से वह मुंह फेरे रहता है. पूंजीवादी न केवल नए उपभोक्ता वस्तुओं तथा उनके नए–नए मॉडलों का विकास कर बाजार पर एकाधिकार कायम करने का प्रयासकर्ता है बल्कि वह उत्पादन पद्धति का भी निरंतर स्वचालीकरण करता जाता है, जिससे फलस्वरूप उत्पादन में श्रमिकों का योगदान घटता जाता है. इससे बेरोजगारी बढ़ती है और मनुष्य की उपयोगिता पूंजीपति के निए नए बाजारों की खोज तक सिमटकर रह जाती है.

पूंजीवादी व्यवस्था में मनुष्य का मूल्य महज एक उपभोक्ता जितना है, जो की पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए दिन रात कारखानों में और कार्यालयों में अपना श्रम बेचता है. उसके बदले में मिलने वाली मजदूरी से अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीदता है, और उनके उपभोग द्वारा इतनी ऊर्जा अर्जित कर लेता ताकि अगले दिन फिर से पूंजीपतियों के लिए काम कर सके. पूंजीपति अपने साथ समाज–विज्ञानियों, अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों की पूरी फौज रखता है, जो लगातार उसका महिमामंडन करते रहते हैं. दान, चैरिटी आदि की मद में खर्च की गई धनराशि पर वह सरकार से कर लाभ अर्जित करता है. राजसत्ता और धर्मसत्ता का समर्थन पूंजीपति को समाज में अतिरिक्तरूप से प्रतिष्ठित करता है. इससे सरकार और अन्य संस्थाओं का ध्यान उसके शोषण की ओर नहीं जा पाता.

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पूंजीवाद की अंधी दौड़ समाज में असमानता व अराजकता को जन्म देती है. सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्यों का ह्रास होता है. इंसान के इंसान पर शोषण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.  राष्ट्र एवं उसकी नीतियां उन चंद पूंजीपतियों के हाथ में चली जाती है जिनका उद्देश्य जनहित तो कतई ही नहीं है. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का हाल ही का विमुद्रीकरण का कदम, देश में आर्थिक असमानता ख़तम करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा.    

काले धन का पता कैसे लगाया जा सकता है ?

इनपुट आउटपुट रेशियों से इसका पता लगाया जा सकता है. किसी निश्चित रकम के इनपुट एक निश्चित मात्रा में सामान का उत्पादन होता है. अगर आउटपुट कम है तो माना जाता है कि आउटपुट की अंडर-रिपोर्टिंग है. यह तरीका तभी कारगर है जब इकॉनमी के स्ट्रक्चर में बदलाव या क्षमता में बढ़ोतरी या तकनीक में अपग्रेडेशन न होवे. दूसरा तरीका यह है की इकॉनमी के साइज के हिसाब से करेंसी सर्कुलेशन की तुलना की जाय. इसके प्रति तर्क यह है की करेंसी का इस्तेमाल सामान्य और समानांतर अर्थव्यस्था दोनों में होता है. यदि काम साइज़ वाली इकॉनमी में बहुत ज्यादा करेंसी सर्कुलेशन हो रहा हो तो इसका मतलब यह होता है कि देश में एक समानांतर इकॉनमी का अस्तित्व भी है.

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 भारत के प्रत्येक व्यक्ति को इस आर्थिक युद्ध में एक सैनिक की भूमिका निभानी होगी

भारत में बैंकिंग ट्रांसैक्शनस की प्रकृति

एक अनुमान के मुताबिक बैंकों में कतार लगाकर 2015 में लगभग 85 लाख करोड़ का व्यवहार हुआ जबकि एटीएम, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कॉर्ड, नेफ्ट एवं ऑनलाइन वालेट द्वारा लगभग 92 लाख करोड़ रुपयों का व्यहवार किया गया. कुल $2.76 ट्रिलियन ट्रांसैक्शन्स ऐसे हुए जो की नकद व्यहवार नहीं थे. अतः यह देखा गया है की भारत में बड़ी मात्रा में नकद व्यहवार होता है. तथा बड़ी मात्रा में अघोषित नकदी व्यवहार होता है जो की देश की अर्थव्यस्था के लिए घातक है. अघोषित नकदी व्यवहारों को रोकने के लिए बड़ी राशि वाली मुद्राओं पर रोक लगाना उचित उपाय है. यही उपाय वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अपनाया जा रहा है.      

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वर्तमान विमुद्रीकरण एक आर्थिक युद्ध

500 व 1000 रुपयों का प्रचलन ख़त्म करके वर्तमान सरकार ने आतंकवादियों, ड्रग माफियों एवं नक्सलियों के विरुद्ध आर्थिक युद्ध की घोषणा की है. यह कदम उन ताकतों पर कुठाराघात है जो देश में नकली नोटों की आपूर्ति व कारोबार करते है. विमुद्रीकरण के बाद बैंकिंग ट्रांसक्शन्स करना अवश्यम्भावी होगा. अच्छी बात यह है की देश विरोधी उपरोक्त ताकतें, अब काले धन का उपयोग नहीं कर पायेगी क्योंकि ये लोग बैंकिंग चैनेल से व्यहवार नहीं कर पाएंगे. यदि करेंगे तो वे पकडे जाएंगे. विमुद्रीकरण को सफल बनाने एवं इसके द्वारा काले धन के प्रयोग को काम करने के लिए भारत सरकार को कई कदम एकसाथ उठाने होंगे. जिनमें प्रमुखतम है डिजिटल इंडिया, टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट, वित्तीय समावेशन, गांव में तकनीक व बैंकिंग शिक्षा का प्रसार. अधिक से अधिक लोगों को बैंकिंग से जोड़ना होगा. इस काम के लिए भारत सरकार को चाहिए कि वो एक प्रथक विभाग की स्थापना करे. उस विभाग को देश में देश की प्रत्येक जनता को बैंकों से जोड़ने एवं सारे व्यवहार बैंको से करने हेतु प्रेरित करना हो. इन सभी उपायों को सफल बनाने के लिए देश में एक इन्टरनेट क्रांति की आवश्यकता है.   

काले धन से लड़ाई आवश्यक है

काले धन की समस्या पूरी ताकत से लड़ने की आवश्यकता है. भारत के प्रत्येक व्यक्ति को इस आर्थिक युद्ध में एक सैनिक की भूमिका निभानी होगी. थोड़े कष्ट व तकलीफें सहकर यदि हमारा व हमारी आने वाली पीढियों का भविष्य सुधरता है तो हमें भारत के एक सैनिक की तरह से काले धन की बुराई से लड़ना होगा एवं सरकार का सहयोग करना होगा. हमारा शुतुरमुर्गी दृष्टिकोण हमें समस्या के सही निदान से दूर कर देगा. देश से बाहर और देश के भीतर काले धन की एक समांतर अर्थव्यवस्था मौजूद है और देश को भीतर ही भीतर दीमक की तरह खाये जा रही है. यदि यह सारा काला धन सफेद हो जाए तो देश की अधिकांश आर्थिक या अनार्थिक समस्याओं का हल हो जाएगा. गरीबी दूर करने में कारगर साबित होगा. मूलभूत सुविधाओं एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के रोड़े दूर हो जाएंगे. काले धन की अर्थव्यवस्था का एकांगी विश्लेषण काफी नहीं है. इस समस्या का समग्रता से विश्लेषण नितांत आवश्यक है तभी हम इस समस्या का स्थाई और लाभकारी हल खोज पाएंगे.

लेखक

मनोज जोशी मनोज जोशी

लेखक बैंकिंग, वित्तीय एवं कर सम्बंधित मामलों के जानकार हैं

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