जर्मनी ने जो कर दिखाया है, वैसा तो सपना भी नहीं देख पाती होगी हमारी सरकार !
यहां यूपी में बिजली न होने की वजह से टॉर्च की रोशनी में 32 लोगों का ऑपरेशन किया गया, वहां जर्मनी में बिजली इतनी अधिक हो गई है कि इस्तेमाल करने के बदले बिल की जगह पैसे दिए जा रहे हैं.
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भारत में बहुत ही कम ऐसी जगहें हैं, जहां पर 24 घंटे बिजली की सुविधा मिलती है. जहां बिजली मिल रही है, वहां पर भी कितनी मिलेगी? कोई कह नहीं सकता. हाल ही में यूपी के उन्नाव से भी एक ऐसा मामला सामने आया है जहां पर बिजली ना होने की वजह से मोतियाबिंद के करीब 32 मरीजों का ऑपरेशन टॉर्च की रोशनी में कर दिया गया. सवाल ये है कि बिजली नहीं होगी तो क्या किसी की जान खतरे में डालकर भी ऑपरेशन किया जा सकता है? इस वाकये के बाद से जहां एक ओर सरकार पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं मोदी सरकार का हर घर रोशन करने का सपना भी धुंधलाता सा दिखने लगा है. खैर, जहां एक ओर यूपी में बिजली की इतनी बुरी हालत है, वहीं दूसरी ओर जर्मनी जैसी व्यवस्था कर पाने का तो मोदी सरकार सपना भी नहीं देख पाती होगी. जर्मनी में वीकेंड पर फैक्ट्रियों को बिजली अधिक इस्तेमाल करने के लिए कहा जा रहा है. यह बिजली न सिर्फ मुफ्त में दी जा रही है, बल्कि इस्तेमाल करने के लिए उन्हें पैसे भी दिए जा रहे हैं.
बिजली इस्तेमाल करने के बदले मिलते हैं पैसे
भले ही आपको यह बात चौंका दे, लेकिन यह सच है. क्रिसमस डे के दिन यूरोपियन पावर ट्रेडिंग एक्सचेंज EPEX Spot पर पावर की कीमतें नेगेटिव में चली गईं. दरअसल, इस दौरान हवा से (पवनचक्की से) बनाई जाने वाली बिजली की मांग काफी कम हो गई, जबकि गर्म मौसम और तेज हवा की वजह से काफी अधिक बिजली पैदा हो गई, जिसकी खपत नहीं हो पा रही थी. क्रिसमस से एक दिन पहले रविवार को फैक्ट्री मालिकों को बिजली का अधिक इस्तेमाल करने के लिए प्रति मेगावाट प्रति घंटे (per megawatt-hour) 60 डॉलर (करीब 4000 रुपए) इंसेंटिव के तौर पर दिए गए. वीकेंड पर बिजली की मांग काफी कम होती है, क्योंकि इन दिनों में बहुत सी फैक्ट्रियां बंद होती हैं, छुट्टी होती है.
100 से अधिक बार निगेटिव हुई बिजली की कीमत
ऐसा नहीं है कि क्रिसमस पर पहली बार जर्मनी में बिजली की कीमतें निगेटिव हुईं. ऐसा 2017 में 100 से भी अधिक बार हो चुका है. बिजली की कीमतें निगेटिव जाने की घटना बेल्जियम, ब्रिटेन, फ्रांस, नीदरलैंड और स्विटजरलैंड में भी हो चुकी है. जर्मनी में सोलर पावर जैसी ग्रीन एनर्जी पर इतना अधिक फोकस कर दिया गया है कि अब पवनचक्की की ग्रिड पर अधिक बिजली पैदा हो जाती है तो उसका पूरा इस्तेमाल भी नहीं किया जा पाता. बिजली बर्बाद न जाए, इसलिए इसे इस्तेमाल करने पर वींकेंड पर फैक्ट्रियों को इंसेंटिव दिया जा रहा है. माना जा रहा है कि भले ही बिजली इस्तेमाल करने के लिए फैक्ट्रियों को पैसे दिए जा रहे हैं, लेकिन वह जो उत्पादन करेंगे, उससे देश की जीडीपी में बढोत्तरी होगी और बिजली भी बर्बाद नहीं होगी.
सरकार को सीख लेने की जरूरत
मोदी सरकार भी सोलर पावर को बढ़ावा दे रही है, लेकिन बावजूद इसके देश में पावर की हालत बहुत खराब है. अभी भी सरकार सोलर उपकरण खरीदने पर 5 फीसदी जीएसटी ले रही है, जिसे खत्म किया जा सकता है और सोलर पावर को बढ़ावा देने के लिए खास तरह की स्कीम लाई जा सकती हैं. सोलर पावर को लेकर जागरुकता के अभियान भी चलाए जा सकते हैं, जिससे लोग इसकी ओर आकर्षित हों. ऐसा करने से भले ही बिजली इस्तेमाल करने के लिए कोई कंपनी लोगों को पैसे दे या न दे, लेकिन हो सकता है कि आने वाले समय में सभी को 24 घंटे बिजली की सुविधा मिल जाए.
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