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Updated: 25 नवम्बर, 2016 04:39 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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नोटबंदी का भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या असर होगा ये तो कुछ महीने के बाद ही पता चल पायेगा. विभिन्न लोगों की अलग-अलग राय सामने आ रही है. कुछ उद्योगपति और आर्थिक विशेषज्ञ जहां एक ओर इसे देश के व्यापक हित के लिए सही मान रहे है वही दूसरी और कुछ विशेषज्ञ ये भी मान रहे हैं कि इसके फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था की गति आने वाले कुछ समय में धीमी पड़ जाएगी.

नोटबंदी के पीछे सरकार का मंतव्य ये है की इसके कारण ब्लैक मनी में कमी आएगी, नकली नोट के सर्कुलेशन, आतंकवाद आदि गतिविधियों में लगाम लगेगी. हालांकि सरकार की मंशा कहीं से गलत नजर नहीं आती फिर भी कई वर्ग ऐसे है जो नोटबंदी से खुश नहीं है.

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 भारतीय अर्थव्यवस्था की गति आने वाले कुछ समय में धीमी पड़ जाएगी

कई आर्थिक विशेषज्ञ अब ये कहने से गुरेज नहीं कर रहे हैं कि नोटबंदी के कारण अगले 2 महीनों में आर्थिक गतिविधियों का संकुचन हो सकता है जिसका सीधा सीधा प्रभाव हमें जीडीपी ग्रोथ में देखने को मिलेगा और हो सकता है की अगले एक साल में करीब 1 पर्सेंटेज पॉइंट की गिरावट हमें जीडीपी दर में देखने को मिल सकती है.

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करीब 2 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी वाले देश की 20 पर्सेंट संख्या और करीब  80 पर्सेंट रोजगार असंगठित क्षेत्र से जुडी हुई है. देश के करीब आधे से अधिक लोगों के पास अभी भी बैंक अकाउंट नहीं हैं और 30 करोड़ से अधिक लोग अभी भी इन्टरनेट का इस्तेमाल नहीं करते, जिसके कारण ज्यादातर लोग इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट नहीं कर पाते हैं. ऐसी व्यवस्था में उद्योग-धंधे में गिरावट होना स्वाभाविक से बात है.

एक अखबार को दीए गई प्रतिक्रिया में हीरो मोटोकॉर्प के पवन मुंजाल ने कहा कि अक्टूबर की तुलना में आधे से काम लोग अब उनके शोरूम में आते हैं. जाहिर सी बात है विश्व में सबसे ज्यादा मोटरसाइकिल बनाने वाली कंपनी का जब ये हाल है तो छोटी- मोटी कंपनियों का क्या हाल हो रहा होगा ये कल्पना कीजिये. देश की सबसे बड़ी बिस्किट कंपनी ब्रिटानिया के मैनेजिंग डायरेक्टर वरुण बेरी ने बताया की उनके एफएमसीजी उत्पादों की बिक्री में 30 से 70 परसेंट की गिरावट दर्ज की गयी है.

नोटबंदी के बाद से उद्योग क्षेत्र में अस्थायी तौर पर कई लोगों की नौकरी जाने की खबरें आ रही हैं और इसका मुख्य कारण उत्पादन में कमी को माना जा रहा है. श्रम आधारित उद्योगों जैसे टेक्सटाइल, गारमेंट, चमड़ा, ज्वेलरी आदि में इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है. इन क्षेत्रों से जुड़े करीब चार लाख लोग ज्यादातर दैनिक वेतनभोगियों की या तो नौकरी चली गयी है या फिर पैसा नहीं मिलने की वजह से उन्होंने अस्थायी तौर पर काम करना छोड़ दिया है. अगर कैश की तंगी बरकरार रहती है तो ये स्थिति बढ़ती चली जाएगी.

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करीब करीब सभी रेटिंग एजेंसियों जैसे गोल्डमैन सच्स, केयर रेटिंग्स, आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज आदि ने अपने जीडीपी में गिरावट होने का अनुमान लगाया है. विश्व की एक बड़ी रेटिंग एजेंसी फिच ने तो यहां तक कहा है कि अगले क्वार्टर में वो भारत के ग्रोथ फोरकास्ट को कम कर सकता है. उसका कहना है की उपभोग्ताओं के पास पैसे नहीं है सामान खरीदने के लिए और ज्यादा समय वे बैंक के लाइन में पैसा पाने के लिए कर रहे है. इससे उत्पादन में प्रभाव पड़ सकता है.

एचएसबीसी के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की जीडीपी ग्रोथ जो पहले क्वार्टर में 7.1 परसेंट रही थी वो अगले 12 महीनो में 1 पर्सेंटेज पॉइंट तक गिर सकती है.

इसका प्रभाव कई दूसरे सेक्टरों में भी देखने को मिल रहा है. रियल इस्टेट, ऑटोमोबाइल, हैंडीक्राफ्ट्स और कई छोटे-छोटे उद्योगों पर इसका असर दिखने लगा है. खरीदारी में गिरावट देखने को मिल रही है. इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स में तो भारी गिरावट देखने को मिल रही है. कैश ऑन डिलिवरी की संख्या नगण्य हो चली है. 39 महीने में सबसे निचले स्तर पर पहुंचा गया है रुपया, शेयर मार्किट में भी गिरावट दर्ज की गयी है. मार्केट कमजोर पड़ रहा है और इसका असर कंपनियों पर पड़ रहा है.  नोटबंदी का तात्कालिक परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था पर दिखना चालू हो गया है. एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश भारत इससे कैसे उबार पाता है ये तो आने वाला समय ही बताएगा. इसका दूरगामी परिणाम हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या होता ये अभी से अनुमान लगाना हालांकि काफी मुश्किल है, लेकिन कुछ आर्थिक विशेषज्ञ की राय देखें तो स्थिति कहीं से पॉजिटिव दिखाई नहीं देती है.

लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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