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Updated: 05 जून, 2016 06:31 PM
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भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यस्थाओं में से एक बन गई है. हाल ही में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2015-16 में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 7.6 फीसदी की दर से वृद्धि की जोकि पिछले पांच वर्षों में सबसे बेहतर है. इससे भारत ने विकास दर के मामले में पड़ोसी देश चीन को भी पीछे छोड़ दिया. इतना ही नहीं 2015-16 की चौथी तिमाही के दौरान तो देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर 7.9 फीसदी रही. ये आंकड़ें निश्चित तौर पर देश की आर्थिक तरक्की की कहानी बयां कर रहे हैं.

लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है जो बेहद चौंकाने वाला है. दरअसल जिन आंकड़ों पर सरकार इतना इतरा रही है और अपनी पीठ थपथपा रही है अब उनकी गणना पर ही सवाल उठना शुरू हो गया है. इसके मुताबिक विकास दर के ये आंकड़ें देश के विकास की असली तस्वीर नहीं बल्कि आंकड़ों और गणनाओं का कमाल ज्यादा है. आखिर क्या है जीडीपी में होने वाली गड़बड़ी की बहस, आइए जानें.

जीडीपी के आंकड़ें में कमियों की क्या है वजहः

सरकार के मुख्य सांख्यिकी अधिकारी टीसीए अनंत ने जीडीपी से संबंधित आकंड़ों में कमियों की बात स्वीकार की है. जीडीपी आंकड़ों में कमियों का संबंध उत्पादन विधि और व्यय विधि के तहत राष्ट्रीय आय में अंतर से होता है. 2015-16 में जीडीपी आंकड़ों में अशुद्धता का आंकड़ा 2.15 लाख तक पहुंच गया जोकि पिछले वित्त वर्ष के 35284 करोड़ रुपये से काफी ज्यागा है. इस साल जीडीपी आंकड़ों में अशुद्धता की दर करीब 1.9 फसीदी रही, जोकि मौजूदा दर के हिसाब से 2012-13 में 6 फीसदी थी, जबकि 2007-08 में ये 5.8 फीसदी थी. 

क्यों होती है जीडीपी के आंकड़ों में विसंगतिः

जीडीपी आंकड़ों में विसंगति की वजह इसकी गणना का तरीका है. दरसअल जीडीपी के आंकड़ें कई एजेंसियों और राज्य सरकारों से मिले डेटा की गणना के बाद किया जाता है. लेकिन कई बार कुछ आंकड़ें आने में देर हो जाती है, जो बाद में जीडीपी के आंकड़ों में विसंगति के रूप में सामने आता है. हालांकि सरकार का कहना है कि वह अब ई गवर्नेंस और कॉर्पोरेट अकाउंट्स के डेटा से जानकारी जुटाकर इन विसंगतियों को कम करने की कोशिश कर रही है. लेकिन जीडीपी की गणना को पूरी तरह विसंगित मुक्त कर पाना फिलहाल संभव नहीं दिखता है.

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2015-16 वित्त वर्ष के दौरान देश की जीडीपी वृद्धि दर 7.6 फीसदी रही जोकि पांच वर्षों में सबसे ज्यादा है

मोदी सरकार के जीडीपी आंकड़ों पर सवाल क्यों?

दरअसल ऐसा नहीं है कि जीडीपी में विसंगतियों का आंकड़ा सिर्फ मोदी सरकार के राज में सामने आया है. बल्कि ऐसा तो हमेशा से होता आया है. जैसे पिछले वित्त वर्ष यानी कि 2015-16 में जीडीपी में विसंगतियों का आंकड़ा 1.9 फीसदी रहा जबकि यूपीए के राज में 2012-13 में ये काफी ज्यादा 6 फीसदी के करीब थी. तो फिर क्यों मोदी सरकार के 7.6 फीसदी के विकास दर के आंकड़ें पर सवाल उठाए जा रहे हैं? तो इसकी वजह जीडीपी गणना पद्धति में पिछले वर्ष किया गया बदलाव. जिससे जीडीपी के पूर्व के मुकाबले अब के आंकड़ों में 2.2 फीसदी की बढ़ोतरी का अंतर आ गया है.

दरअसल भले ही जीडीपी के आंकड़ें पिछले पांच वर्षों के दौरान सबसे तेज विकास दर दिखा रहे हों लेकिन अगर आप इन पर गंभीरता से नजर डालें तो दरअसल सेक्टर दर सेक्टर ग्रोथ में गिरावट आई है. पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही की तुलना में चौथी तिमाही में इंडस्ट्री ग्रोथ 8.6 से गिरकर 7.9 फीसदी रह गई जबकि इस दौरान सर्विस सेक्टर 9.1 फीसदी से गिरकर 8.7 फीसदी रह गया. सिर्फ कृषि में बढ़त देखने को मिली और यह तीसरी तिमाही के -1 फीसदी से बढ़कर 2.3 फीसदी हो गया.

लेकिन ऐसे समय में जबकि पिछले दो वर्षों के दौरान कम बरसात के कारण देश के ज्यादातर हिस्से सूखे की चपेट में हो और अनाज का उत्पादन घटता जा रहा हो, ये आंकड़ें हैरान करते हैं. देश का खाद्य उत्पादन 2013-14 के 265.57 मिलियन टन से घटकर 2014-15 में 257.07 मिलियन टन रह गया, जिसमें 2015-16 के आंकड़ों में और गिरावट आने की आशंका है. ऐसे में कृषि क्षेत्र में बढ़त के आंकड़ें जीडीपी की गणना की विसंगतियों को उजागर करता है. यही वजह है कि तमाम सेक्टर्स में आई गिरावट के बावजूद देश के जीडीपी आंकड़ों में तेजी से ही सरकार की गणना पर सवाल उठ रहे हैं.

असली विकास जमीन पर खुद ही दिख जाता है उसके लिए जीडीपी के आंकड़ों की बाजीगरी की जरूरत नहीं होती है. 

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