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Updated: 26 जून, 2018 07:11 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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मुबारक हो. जीएसटी अब एक साल का होने वाला है. भारत का एक देश एक टैक्स का सपना पिछले साल ही साकार हो गया था, लेकिन पिछले 1 साल में जितने बदलाव जीएसटी के साथ हुए हैं उतने तो विवाद इस टैक्स के साथ जुड़े हैं. विपक्ष खास तौर पर राहुल गांधी हमेशा से इसके विरोध में ही बोले हैं.

गाहे बगाहे किसानों और व्यापारियों के बारे में बात करते करते राहुल कहते हैं कि जीएसटी से हमेशा समस्याएं ही हुई हैं. यहां तक कि राहुल ये भी वादा करते हैं कि एक टैक्स बना दिया जाएगा बस कांग्रेस आ जाए और फिर ये वाकई आसान टैक्स हो जाएगा. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी हमेशा से यही कहते आए हैं कि भारत का जीएसटी सिस्टम बहुत ज्यादा कॉम्प्लेक्स है और इसे और आसान किया जाना चाहिए.

पर क्या वाकई ये इतना आसान है? भारत जैसे देश में जहां 22% जनता गरीबी रेखा के नीचे (प्लानिंग कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक) है और 101 से ज्यादा अरबपति (फोर्ब्स लिस्ट के अनुसार) और 2,36,000 (South Africa स्थित New World Wealth की रिपोर्ट के अनुसार) से ज्यादा करोड़पति परिवार रहते हैं जिनका नेट वर्थ सालाना 6.8 करोड़ से ज्यादा है. वहां एक ही देश में एक टैक्स कैसे लगाया जा सकता है?

जीएसटी के मुद्दे पर अब कुछ आंकड़ों पर गौर कर लेते हैं.. सबसे पहले भारत के टैक्स स्लैब को समझते हैं..

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1. दूध : जिस पर टैक्‍स किसी को हजम नहीं होगा

दूध चाहें अमीर हो या गरीब सभी की जरूरत होती है. अगर दूध को टैक्सेबल कर दिया गया तो न जाने कितने लोगों के लिए ये आर्थिक भार होगा. कुछ मुट्ठीभर अमीर लोगों को भले इस पर लगने वाले टैक्‍स से ऐतराज न हो, लेकिन गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले करोड़ों लोगों को ये मंजूर नहीं होगा.

2. जूते : गरीब का जूता, अमीर का जूता एक टैक्‍स वाला क्‍यों हो?

500 रुपए से कम के जूतों पर सिर्फ 5% टैक्स लगता है और बाकी के लिए 18% टैक्स स्लैब निर्धारित है. अब ये तो देखने वाली बात है कि अगर किसी कम आमदनी वाले को जूते खरीदने हैं तो जरूरी नहीं कि उसे पूरा 18% टैक्स देना पड़े. वो सस्ते दाम में भी जूते खरीद सकता है.

3. कपड़े : आवश्‍यक जरूरत और फैशन में कुछ तो फर्क होगा?

ये भी जूतों की तरह ही विभाजित हैं. जो कपड़े 1000 रुपए (प्रति पीस) से कम दाम के हैं. वो 5% टैक्स स्लैब में और इस आंकड़े से ऊपर 12% टैक्स स्लैब में हैं. हैंड मेड कपड़ों पर 18% टैक्स है ताकि उन लोगों को बेहतर कीमत मिल सके जो इन्हें बनाते हैं.

4. सोना : दूध और सोना एक टैक्‍स नेट में कैसे आएगा ?

सोने पर 3% टैक्स लगाया गया था. पहले ये 2% होता था और इसके अलावा, सोने पर पहले 8% मेकिंग टैक्स लगाया गया था जो अब 5% हो गया है. मतलब सोने पर कुल 10% इम्पोर्ट ड्यूटी, 3% जीएसटी, 5% मेकिंग चार्ज पर जीएसटी लगाया जाता है. अब किसी भी हालत में न दूध को सोने की तरह तोला जा सकता है और न ही सोने पर टैक्स कम करना वाजिब होगा.

5. किराना सामान : शक्‍कर और चॉकलेट की डिमांड का आधार है टैक्‍स में फर्क का

ये बहुत बड़ा अंबार है और किराना सामान में हर चीज़ का अलग टैक्स स्लैब है जैसे शक्कर 5% टैक्स स्लैब में है और वेफर्स और चॉकलेट 28% टैक्स स्लैब में. चाय के साथ वेफर्स खाएं या न खाएं एक रिक्शे वाला भी चाय में शक्कर जरूर डालता है. ऐसे में शक्कर और वेफर्स एक ही स्लैब में रखना क्या सही होता?

6. होटल : एक सस्‍ती लॉज और पांच सितारा होटल में कुछ तो फर्क है

1000 रुपए से कम के होटल के कमरे में कोई टैक्स नहीं है. 1000 रुपए से 7500 रुपए के बीच 5% टैक्स और 5 स्टार होटल 28% टैक्स स्लैब में हैं. अब खुद ही सोचिए क्या कोई गरीब 1000 रुपए के कमरे में 28% टैक्स दे पाता. या फिर कोई अमीर 5 स्टार होटल में बिना टैक्स दिए आ जाता.

7. दवाइयां : दवा पर न्‍यूनतम टैक्‍स ही लाजमी है

आयुर्वेदिक दवाइयां 5% टैक्स स्लैब में हैं. डायग्नोस्टिक किट हैपिटाइटस के, कुछ खास इंजेक्शन, जानवरों की दवाइयां, बायोकेमिक सिस्टम जिनमें ब्रांड का नाम न हो, ओआरएस, कॉमन इलाज की दवाइयां आदि सब 5% टैक्स स्लैब में हैं. लेकिन अन्य दवाइयां 12% टैक्स स्लैब में हैं.

8. फर्टिलाइजर, मिट्टी का तेल आदि : इन पर टैक्‍स को लेकर कितने लोग सहमत होंगे

किसानों के इस्तेमाल की अधिकतर चीजें या तो 0% टैक्स स्लैब में हैं या फिर 5% टैक्स स्लैब में हैं.

9. टेलिकॉम सर्विसेज : एक बैलेंस कॉल

टेलिकॉम सर्विसेज और बैंकिंग सर्विसेज दोनों ही 18% टैक्स स्लैब में हैं. इसे 28% करने पर बहुत महंगाई बढ़ जाएगी और इससे कम करने पर सरकार को और टेलिकॉम कंपनियों को रेवेन्यू का नुकसान होगा.

10. पान मसाला, बिड़ी..

पान मसाला, बीड़ी आदि सब 28% टैक्स स्लैब में हैं इन्हें कैसे दूध जैसी जरूरत के साथ रखा जा सकता है?

अब कुछ और आंकड़ों की बात करते हैं.

प्लानिंग कमीशन ने 22 जुलाई 2013 को एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें ये बताया गया था कि भारत में 37.2 प्रतिशत लोग 2004-05 में गरीब थे और 2011-12 में ये आंकड़ा 21.9 प्रतिशत हो गया है. यानी 22% मान लीजिए. अब अगर उपयोग यानी कंजंप्शन की बात की जाए तो इसी रिपोर्ट ने बताया था कि गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों के लिए 816 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह (ग्रामीण क्षेत्रों में) और 1000 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह (शहरों) में जुटाना होता है. पांच लोगों के परिवार के लिए ये आंकड़ा 4080 प्रति माह (ग्रामीण) और 5000 प्रति माह (शहरों) में हो जाता है. ये आंकड़े तेंदुलकर कमेटी द्वारा सेट किए गए थे.

कमेटी इन आंकड़ों पर रोटी, कपड़ा, चप्पल, आदि का आंकलन कर पहुंची थी. वैसे तो ये ठीक दिखता है, लेकिन अगर हर दिन का खर्च देखें तो ये 27.5 रुपए प्रति दिन होगा ग्रामीण इलाकों में और 33.33 रुपए प्रति दिन होगा शहरी इलाकों में. राशिद मसूद और फारुख अब्दुल्लाह जैसे कई लीडर कह चुके हैं कि 1 रुपए या 5 रुपए में भी भर पेट खाना मिल सकता है.

अब अमीरों की बात करते हैं. South Africa स्थित New World Wealth ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक भारत में ढाई लाख के लगभग अमीर लोग हैं. ये वो हैं जिनका नेट वर्थ 6.8 करोड़ से ज्यादा है. अब इसमें 1 करोड़ और 50 लाख वालों की संख्या का अंदाजा खुद ही लगा लीजिए.

अब खुद ही सोचिए अगर ये दाल, चावल, दूध, आटा, शक्कर और बर्गर, पिज्जा कोल्डड्रिंक लेने वालों की संख्या के बीच कैसे सिर्फ एक टैक्स लगाया जा सकता है?

अर्थव्यवस्था?

भारत की अर्थव्यवस्था ऐसी नहीं है कि एकदम से एक देश एक टैक्स लगा दिया जाए. जीएसटी में धीरे-धीरे बदलाव हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे, लेकिन अगर सीधे दूध और पान मसाला एक ही टैक्स स्लैब में आ गए तो अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाएगी और ये नोटबंदी से भी बुरा फैसला साबित होगा.

रेवेन्यु का क्या होगा?

इसका विरोध करने वालों को एक बार ये भी सोचना चाहिए कि अगर वो एक नेशन एक टैक्स कर देंगे तो गाड़ियां और महंगे आइटम सस्ते हो जाएंगे और सरकार को रेवेन्यु जो मिलेगा वो मिलेगा गरीब लोगों से. यानि 21 रुपए का एक दूध का पैकेट काफी महंगा हो जाएगा और एक एसयूवी गाड़ी सस्ती. ऐसे में सरकारी रेवेन्यु पर भी तो असर पड़ेगा.

इतनी बड़ी और अलग आबादी वाले देश में जहां अभी भी लोगों के पास बैंक खाते और कम्प्यूटर जैसी सुविधाएं नहीं हैं वहां कोई परफेक्ट टैक्स सिस्टम लगाना कितना मुश्किल है ये लोगों को समझना होगा.

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अर्थात्: यह वो जीएसटी नहीं

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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