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Updated: 03 जनवरी, 2017 03:08 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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पिछले दो दिनों से लगातार अच्छी खबरों से सामना हो रहा है. मैं एक लेखक हूं और खबरों की मेरी जिंदगी में क्या अहमियत है ये लेखक होते हुए भी शब्दों में बयान नहीं कर सकती. एक ओर सुप्रिम कोर्ट ने धर्म और जात के नाम पर वोट मांगने को गैरकानूनी करार दे दिया और दूसरी तरह सरकार ने सर्विस चार्ज को लेकर बड़ा बयान दिया. मतलब ये तो सोने पर सुहागा हो गया. आपको बता दूं कि मैं एक फूडी हूं और खाने के लिए जीती हूं. जिस भी शहर में रही हूं उसमें नुक्कड़ की चाय और ढाबे से लेकर हाई क्लास होटल तक सबके खाने को टेस्ट करना अपना जनम सिद्ध अधिकार मानती हूं.

किसी भी बड़ी जगह खाना खाने पर आपको VAT, CESS, सर्विस टैक्स और सर्विस चार्ज अलग से देना होता है. और उसी के साथ, टिप ना देने पर वेटर आपको ऐसे देखता है जैसे आपने उसका हुक्का पानी बंद कर दिया हो. दोबारा अगर वही वेटर आपको मिल गया तो पिछली बार टिप ना देने का बदला वो कैसे भी निकाल ही लेता है. इसलिए सर्विस चार्ज हटने पर मेरे जैसे लोगों के लिए बचत का एक सुनहरा मौका है. सरकार का ये ऐलान कुछ-कुछ वैसा ही है जैसे पेट्रोल और डीजल के दाम कम होना.

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 एक सलाद खाने पर भी आप 5.6% ज्यादा पैसे देते हैं

तो जी, जब ये खबर आई तब ऐसा लगा मानो खुद कुबेर कह रहे हों कि लो अब बचा लो अपने एक्स्ट्रा 10%. सर्विस चार्ज के लिए मना कर सकती हो तुम और ये तुम्हारा हक है. सच में स्टफ्ड मशरूम से लेकर पास्ता तक सभी के सपने संजो लिए. इसी खुशी में जनाब एक रेस्त्रां में भी चली गई. सुरक्षा कारणों से रेस्त्रां का नाम नहीं लूंगी. वहां जाकर सीज़र सैलेड और नकल क्रशड स्वीट पोटेटो ऑर्डर किया (हिंदुस्तानी भाषा में सलाद और क्रीम और चीज़ के साथ आने वाले आलू) ऑर्डर किया. पीने के लिए मोहितो (Mojito). भइया, जब खूबसूरत खाना चमचमाती प्लेट में सामने आया तो मन में उमंग दौड़ गई. हालांकि, इतना खर्च करने आई थी तो इंस्टाग्राम पर खाने की फोटो डालना तो जरूरी था. इसलिए सबसे पहले वो रस्म पूरी की.

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हां तो अब आई खाने की बारी. सीज़र सैलेड जो मैं अक्सर खाया करती हूं सिर्फ शिमला मिर्च से भरा हुआ था. और दूसरी डिश के बारे में ज्यादा बोलने का मन नहीं कर रहा. कुल मिलाकर मैं खाने से संतुष्ट नहीं हुई. अब जब बारी आई बिल देने की. अपना हक जताते हुए मैंने डिश को लेकर शिकायत दर्ज करवाई और फिर कहा कि मैं सर्विस चार्ज नहीं दूंगी. 832 का खाना था और उसपर दुनिया भर का चार्ज लगकर बिल करीब-करीब 1000 तक पहुंच चुका था.

कैसे बढ़ा बिल-

- बिल के 40% हिस्से पर 12.36% सर्विस टैक्स लगता है इसमें AC रेस्टॉरेंट्स 14% टैक्स जोड़ते हैं. इसमें स्वच्छ भारत टैक्स 0.5% और 1 जून 2016 के बाद से कृषि कल्याण टैक्स 0.5% जुड़ने लगा है. ये कुल 15% हुआ.

- इसके अलावा, वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) लगता है जो 5 से 20% तक होता है. ये राज्य, शहर और लोकैलिटी पर निर्भर करता है. जैसे कर्नाटक में आपको बिल पर 14.4% VAT देना होगा और महाराष्ट्र में ये 12.5% होता है.

- 4000 से ऊपर का बिल है तो 500 रुपए लिया जाता है. अधिकतर मॉल्स में ये 20% ही लगाया जाता है. और अगर आपने एल्कोहॉल लिया है तो भी ये 20% ही होगा. इसका मतलब आपके खाने पर 30% से लेकर 35% तक की बढ़त हो जाती है. ये कुल बिल के 40% हिस्से पर होता है. इसका मतलब कुल बिल पर 5.6% टैक्स.

कुल 832 रुपए के खाने पर 332.2 रुपए के बिल पर 31.1% के हिसाब से मुझे 103.5 रुपए अधिक जमा करने पड़े.

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 किसी भी फूडी के लिए सर्विस चार्ज का हट जाना किसी वरदान की तरह होगा

जब मना किया सर्विस चार्ज देने पर तो-

वेटर से बात ना करके मैंने तुरंत मैनेजर से बात करने की डिमांड की. अंग्रेजी भाषा की अपनी प्रतिभा दिखाते हुए जब मैं मैनेजर से बात कर उसे सर्विस चार्ज ना देने के बारे में बता रही थी तो उसका कहना था कि मुझे ये पहले बताना था. खाना खाने के बाद अब मुझे उतना ही बिल देना होगा जितना आया है. मैनेजर की मानूं तो सरकार चाहें जो भी कहे मुझे उसे सर्विस चार्ज के साथ वाला बिल देना ही था. मन भर बहस करने के बाद आखिरकार मैंने बिल अदा किया और बिना टिप दिए आगे बढ़ गई. मैनेजर और वेटर दोनों ने ही ऐसा लुक दिया मानो मन ही मन कह रहे हों मैडम अब मत आना. सलाद खाना इतना महंगा पड़ेगा अंदाजा नहीं था. पैसे तो देकर आने ही पड़े साथ ही उस रेस्त्रां में अब जाने में भी मैनेजर और वेटर नफरत भरी नजरों से ना देखने लगें इसका डर भी मन में बैठ गया.

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सोते-सोते भी ये बात दिमाग में रही और सुबह देखती हूं कि एक और खबर मेरे स्वागत के लिए तैयार है. नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) के प्रेसिडेंट रियाज अमलानी ने अपने एक बयान में कहा है कि सर्विस इंडस्ट्री में काम कर रहे ये 85 लाख लोगों को नुकसान पहुंचाएगा. सर्विस चार्ज का फायदा मैनेजर से लेकर सफाई करने वाले तक को मिलता है ऐसे में अगर लोगों को सर्विस चार्ज नहीं देना है तो खाना बाहर ना खाएं.

दिल टूट सा गया. इतना रूखा व्यवहार. ऐसा थोड़ी होना चाहिए. मेरे जैसे लोगों को कितना बुरा लगेगा ये कोई नहीं सोचता. खैर चलो बाकी 85 लाख लोगों का सोच कर मन मसोस लिया और एक बार फिर ये भी ख्याल आया कि ढाबे पर खाना ज्यादा बेहतर है. कम से कम कुछ दिन तक तो अब ऐसा ही करना है. लेट ही सही, लेकिन ये 2017 का न्यू इयर रेजोल्यूशन है बना लिया मैंने. चलिए देखते हैं ये कितना सफल हो पाता है.

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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