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Updated: 21 मार्च, 2023 05:10 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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यह एक संयोग ही है कि सिंधियों के दो रत्न भगवान झुलेलाल एवं स्वतंत्रता वीर हेमू कालानी का जन्म दिन एक ही दिन 23 मार्च को पड़ रहा है. एक धर्म के लिए मशहूर हुआ दूसरा देश की आज़ादी के लिए. सबसे पहले बात करें भगवान झुलेलाल की. कहते है जब जब धरती पर अन्यायियों ने लोगों को त्रस्त किया तब तब भगवान् ने मसीहा के रूप में अवतरित होकर उनके संकट को टाला है. सिंधी समाज के इष्ट देव झूलेलाल जी कि जीवनी कुछ ऐसी ही है. दरअसल जो लोग सिंध में रहते हैं अथवा विभाजन के बाद उस स्थान से पलायन कर किसी अन्य स्थान को गये हैं उन्हें सिंधी कहा जाता हैं. सिंध पाकिस्तान में हैं. 23 मार्च 2023 को झूलेलाल जी की जयंती हैं जिन्हें सिन्धी समाज चेटीचंड उत्सव के रूप में मनाते हैं.

इस दिन वे अपने आराध्य देव झूले लाल को याद करते हैं. कोई इन्हें संत कहता है तो कोई फकीर जो भी हो हिन्दू मुस्लिम दोनों इन्हें मानते हैं. यह सिन्धी समाज के ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ईशा, अल्लाह से भी बढ़कर हैं. झूलेलाल को कई अन्य नामों से भी जाना जाता हैं. उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाईं, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि. झूलेलाल जी को जल के देवता वरुण का अवतार माना जाता हैं. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में चन्द्र दर्शन की तिथि को सिंधी चेटीचंड मनाते हैं. इनकी पूजा तथा स्तुति का तरीका कुछ भिन्न हैं जल के देव होने के कारण इनका मंदिर लकड़ी का बनाकर जल में रखकर इनके नाम दीपक जलाकर भक्त आराधना करते हैं. चेटीचंड के अवसर पर भक्त इस मंदिर को अपने शीश पर उठाते हैं जिन्हें बहिराना साहिब कहा जाता हैं जिनमें परम्परागत छेज नृत्य किया जाता हैं.

Sindhi, God, Bhagwan Jhulelal, hemu Kalani, Freedom Fighter, Liberty, Britisher, Indiaचाहे वो भगवान झूलेलाल हों या हेमू कालानी दोनों पर ही सिंधी समुदाय को गर्व है

सिंध प्रान्त से भारत में आकर भिन्न भिन्न स्थानों पर बसे सिंधी समुदाय के लोगों द्वारा झूलेलाल जी की पूजा की जाती हैं. ये उनके इष्ट देव हैं. सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि के महापुरुष के रूप में इन्हें मान्यता दी गुई हैं. ताहिरी, छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत आदि इस दिन बनाते हैं तथा चेटीचंड की शाम को गणेश विसर्जन की तरह बहिराणा साहिब का विसर्जन किया जाता हैं. भगवान झूलेलाल जी का जन्म चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 को हुआ था, इनके जन्म के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.

मगर इन सभी में बहुत सी समानताएं भी हैं यहां आपकों भगवान झूलेलाल जी की सर्वमान्य कथा बता रहे हैं जिन पर अधि कतर लोगों का विश्वास हैं. बात सिंध इलाके की हैं 11 वीं सदी में वहां मिरक शाह नाम का शासक हुआ करता था. वह प्रजा का शासक कम अपनी मनमानी करने वाला जनता को तरह तरह की शारीरिक यातनाएं देने में आनन्द खोजने वाला अप्रिय एवं अत्याचारी था. उसके लिए मानवीय मूल्य तथा व्यक्ति जीवन गरिमा व धर्म कुछ भी मायने नहीं रखते थे.

दिन ब दिन बढ़ते शाह के जुल्मों से सिंध की प्रजा तंग आ चुकी थी. राजतन्त्र में वे चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते. उनके पास पुकार का एक ही जरिया था वह था ईश्वर से मदद की गुहार. राज्य की जनता सिन्धु के तट पर एकत्रित होकर भगवान से इस मुश्किल से निकालने के लिए प्रार्थना करने लगे. वरुणदेव उदेरोलाल ने जलपति के रूप में मछली पर सवार होकर लोगों को दर्शन दिया. तथा आकाशवाणी हुई कि हे भक्तों तुम्हारे दुखों का हरण करने के लिए मैं ठाकुर रतनराय के घर माँ देवकी के घर जन्म लूंगा तथा आपके जुल्मों को खत्म करूंगा .

चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 के दिन नसरपुर में मां देवकी पिता रतनराय के घर चमत्कारी बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उदयचंद रखा गया. जब शासक मीरक शाह को यह खबर मिली तो उसने अपने सेनापति को इस बालक का वध करने के लिए भेजा. सेनापति अपनी पूरी सेना के साथ नसरपुर के रतनराय जी के यहां  पहुचकर बालक उदयचंद तक पहुचने का प्रयास किया तो झूलेलाल जी ने अपनी दैवीय शक्ति से शाह के राजमहल में आग लगा दी तथा उसकी फौज को पंगु बना दिया.

जब शाह की किसी ईश्वरीय शक्ति के ताकत का अंदाजा हुआ तो वह माँ देवकी के घर गया तथा झूलेलाल जी के कदमों में गिरकर अपने पापों की क्षमा मांगने लगा. इस तरह अल्पायु में ही झूले लाल जी ने आमजन में सुरक्षा का भरोसा दिलाया तथा उन्हें निडर होकर अपना कर्म करने के लिए प्रेरित किया. इस पर मुस्लिम शासक के द्वारा हाथ जोड़कर के यह कहा गया कि है पीरों के पीर आपके चरणों में मेरा बारंबार नमस्कार है और इस प्रकार से भगवान झूलेलाल के चमत्कार से हिंदू जनता को मुस्लिम शासक के अत्याचार से आजादी मिली.

सिंध का शासक मीरक शाह जिन्होंने झूलेलाल जी को मारने के लिए आक्रमण किया, उसका अहंकार चूर चूर हो गया तथा वह उनका परम शिष्य बनकर उनके विचारों को जन जन तक पहुचाने के कार्य में जुट गया. शाह ने अपने आराध्य के लिए कुरु क्षेत्र में एक भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया. सर्वधर्म समभाव तथा अमन का पैगाम देने वाले झूलेलाल जी एक दिव्य पुरुष थे. झूलेलाल जयंती अथवा चेटीचंड चैत्र माह की शुक्ल द्वितीया तिथि को मनाया जाता हैं. इस दिन पहली बार पूर्ण चन्द्र दर्शन होता हैं.

वरुण देव का अवतार माने जाने वाले झूलेलाल जी की जयंती का पर्व सिंधियों का सबसे बड़ा पर्व हैं. वर्ष 2023 में यह 23 मार्च के दिन मनाया जा रहा है. इस दिन भारत में गुड़ी पड़वा तथा उगदी को भी मनाते हैं, इस दिन जगह जगह पर मन्दिरों में पूजा अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रम व जुलुस निकाले जाते हैं. इस अवसर पर दिन प्रसाद के तौर पर उबले काले चने व मीठा भात सबको बांटा जाता हैं. चलिओ उर्फ़ चालिहो को चालिहो साहिब भी एक सिंधी पर्व हैं जिन्हें अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार अगस्त या जुलाई माह में सिंधी समुदाय मनाता हैं.

चालीस दिन चलने वाले इस पर्व में साधक अपने आराध्य झूलेलाल का आभार प्रकट करते हैं. स्वतंत्रता संग्राम में भारत माता के अनगिनत सपूतो ने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया। आजादी की लड़ाई में भारत के सभी प्रदेशो का योगदान रहा. अंग्रेजो को भारत से भगा कर देश को जिन वन्दनीय वीरो ने आजाद कराया उनमे सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर शहीद हेमू कालाणी को भारत देश कभी नही भुला पायेगा। हेमू कालाणी सिन्ध के सख्खर  में 23 मार्च सन 1923 में जन्में थे. 

उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी मां  का नाम जेठी बाई था.हेमू बचपन से साहसी तथा विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे।  हेमू कालाणी जब मात्र 7 वर्ष के थे तब वह तिरंगा लेकर अंग्रेजो की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे।  1942 में 19 वर्षीय किशोर क्रांतिकारी ने 'अंग्रेजो भारत छोड़ो'  नारे के साथ अपनी टोली के साथ सिंध प्रदेश में तहलका मचा दिया था और उसके उत्साह को देखकर प्रत्येक सिंधवासी में जोश आ गया था.

Hemu Kalani हेमू समस्त विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करने के लिए लोगो से अनुरोध किया करते थे. शीघ्र ही सक्रिय क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल होकर उन्होंने हुकुमत को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भाग लेना शूरू कर दिया। अत्याचारी फिरंगी सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों एवं उनके वाहनों को जलाने में हेमू सदा अपने साथियों का नेतृत्व करते थे. 

हेमू ने अंग्रेजो की एक ट्रेन ,जिसमे क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए हथियार एवं अंग्रेजी अफसरों का खूखार दस्ता था। उसे सक्खर पुल में पटरी की फिश प्लेट खोलकर गिराने का कार्य किया था जिसे अंग्रेजो ने देख लिया था।  1942 में क्रांतिकारी हौसले से भयभीत अंग्रजी हुकुमत ने हेमू की उम्र कैद को फांसी की सजा में तब्दील कर दिया। पूरे भारत में सिंध प्रदेश में सभी लोग एवं क्रांतिकारी संघठन हैरान रह गये और अंग्रेज सरकार के खिलाफ विरोध प्रकट किया।  हेमू को जेल में अपने साथियों का नाम बताने के लिए काफी प्रलोभन और यातनाये दी गयी लेकिन उसने मुंह नहीं खोला और फासी पर झुलना ही बेहतर समझा। 

8 अगस्त 1942 को गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोडो आन्दोलन तथा करो या मरो का नारा दिया. इससे पूरे देश का वातावरण एकदम गर्म हो गया. गांधी जी का कहना था कि या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या इसके लिए जान दे देंगे. अंग्रेजों को बारत छोड कर जाना ही होगा. जनता तथा ब्रिटिश सरकार के बीच लडाई तेज हो गई. अधिकांश कांग्रेसी नेता पकड पकड कर जेल में डाल दिए गए. इससे छात्रों,किसानों,मजदूरों,आदमी,औरतों व अनेक कर्मचारियों ने आन्दोलन की कमान स्वयं सम्हाल ली.

पुलिस स्टेशन,पोस्ट आफिस,रेलवे स्टेशन आदि पर आक्रमण प्रारंभ हो गए. जगह जगह आगजनी की घटनाएं होने लगी. गोली और गिरफ्तारी के दम पर आंदोलन को काबू में लाने की कोशिश होने लगी. हेमू कालानी सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक था,जो जीवन के प्रारंभ से ही पढाई लिखाई के अलावा अच्छा तैराक,तीव्र साईकिल चालक तथा अच्छा धावक भी था. वह तैराकी में कई बार पुरस्कृत हुआ था. सिंध प्रान्त में भी तीव्र आन्दोलन उठ खडा हुआ तो इस वीर युवा ने आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया.

अक्टूबर 1942 में हेमू को पता चला कि अंग्रेज सेना की एक टुकडी तथा हथियारों से भरी ट्रेन उसके नगर से गुजरेगी तो उसने अपने साथियों के साथ इस ट्रेन को गिराने की सोची. उसने रेल की पटरियों की फिशप्लेट निकालकर पटरी उखाडने तथा ट्रेन को डिरेल करने का प्लान तैयार किया. हेमू और उनके दोस्तों के पास पटरियों के नट बोल्ट खोलने के लिए कोई औजार नहीं थे अत: लोहे की छडों से पटरियों को हटाने लगे,जिससे बहुत आवाज होने लगी. जिससे हेमू और उनके दोस्तों को पकडने के लिए एक दस्ता तेजी से दौडा. हेमू ने सब दोस्तो को भगा दिया किन्तु खुद पकडा गया और जेल में डाल दिया गया.

लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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