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Updated: 12 नवम्बर, 2016 10:55 PM
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'बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ,

उठाया गोद में माँ ने तो आसमान छुआ'

'मुख़्तसर होते हुए भी ज़िन्दगी बढ़ जाएगी,

माँ की आँखें चूम लीजिये रौशनी बढ़ जाएगी.'

 

'उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है, कोई भी जहर को मीठा नहीं बताता है,

कल अपने आप को देखा था माँ की आँखों मेंये आईना हमे बूढ़ा नहीं बताता है.'

 

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एक इंसान जिसने अपने शेर को अपनी माँ को नज़र किया. माँ को जिया और माँ से ही इश्क़ किया है. मुनव्वर राणा कहते हैं कि उन्होंने अपनी माँ से इश्क़ किया.

माँ शब्द का उच्चारण जब भी उन्होंने किया, आवाज़ में हल्की सी रुबाई सुनाई दी, शायद ज़ज्बात थे जो शब्दों के जरिये निकल रहे थे. 7-8 महीने पहले ही उनकी मां का देहांत हुआ.

दोपहर भी अब ठंडी हो चली थी, शायद मुनव्वर राणा को सुनने का ये माकूल समय था. सवाल बहुत ही ज़ेहनी पूछा गया कि आपकी शायरी में माँ ही क्यों? जवाब भी इस रिश्ते की तरह पाक साफ थे.

राणा साहब कहते हैं...शायरी में जो हमारी मेहबूब होती है वो दुनिया की सबसे हसीं औरत होती है, वो सबसे खूबसूरत इंसान मेरी माँ है. जब खुद से इश्क़ हो सकता है तो माँ से क्यों नहीं.

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फाइल फोटो

अपनी बातों में राणा साहब ने कहा कि पहले हम सभी को माँ कहते थे. गंगा, जमुना, सरस्वती सभी माँ थी, गाय भी माँ थी, घर में एक कमरा अलग गाय के लिए बनवाया जाता था, अब गाय नहीं मारुती खड़ी होती है वहां. समय ऐसा बदला की पहले गाय को माँ समझने वाले लोग माँ को भी गाय समझते हैं.

वो कहते हैं कि दुनिया के किसी भी ओल्ड ऐज होम की एक भी दीवार अगर मैं गिरा दूँ तो समझुंगा कि मेरी शायरी मुकम्मल हुई, मैं शायरी में कामयाब रहा.

माँ से हर कोई प्यार करता है फिर भी कोई झगड़ा हो तो माँ की ही शान में गुस्ताखी होती है. लोग गालियों में मां शब्द का इस्तेमाल करते हैं. इसपर मुनव्वर साहब का कहना था कि माँ की ताकत ये होती है कि अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी की माँ जब तक रहीं, तब तक कोई झगड़ा हुआ ही नहीं, और जब नहीं रहीं तब दोनों अलग हो गए.

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जिस आत्मीयता के साथ हमारे प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की वालिदा के पैर छूने लाहौर उतर गए, अब आगे हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच कभी भी बात होती है तो दोनों की माएं भी मौजूद रहें, मुझे यकीन हैं भारत-पाक एक हो जाएंगे. नेहरू और जिन्ना की माँ अगर बंटवारे के वक़्त मौजूद होतीं तो बंटवारा कभी नहीं होता.

'कोई सरहद नहीं होती, ये गायिलर नहीं होता,

अगर माँ बीच में होती तो बंटवारा नहीं होता.'

'किसी के ज़ख्म पे चाहत से पट्टी कौन बंधेगा,

अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बंधेगा.

तुम्हारी महफिलों में हम बढ़े-बूढ़े ज़रूरी हैं,

अगर हम ही नहीं होंगे तो पगड़ी कौन बंधेगा.'

तो एक बुज़ुर्ग साहित्य के मंच पर आया और माँ के मायने समझा गया, उसकी ताकत बता गया.

लेखक

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