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Updated: 03 जुलाई, 2015 12:36 PM
मुकुल श्रीवास्तव
मुकुल श्रीवास्तव
  @sri.mukul
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लेह (लद्दाख ) की खूबसूरती को 'जब तक है जान' और 'थ्री ईडियट' जैसी फिल्मों ने देश ही नहीं दुनिया तक पहुंचाया है. लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि लेह की एक पीढ़ी बिना सिनेमा हॉल में गए ही बड़ी हुई है. दर्शकों की कमी के चलते यहां एकमात्र टॉकीज वर्षों पहले बंद हो गया था.

लेकिन एक फिल्म वाले अंकल के आने से दृश्य बदला है.

फिल्मों के शौक़ीन और पूर्व में पत्रकारिता एवं जनसंचार के प्रोफ़ेसर रहे लेह के जिलाधिकारी सौगत बिस्वास ने जब बीती फरवरी में यहाँ का कार्यभार ग्रहण किया तो इस स्थिति से बहुत निराश हुए उन्होंने जब शहर के लोगों से बात की तो पता चला कि यहाँ के लोग सिनेमा हॉल में जाकर फ़िल्में देखने के शौक़ीन नहीं हैं. इस नवनियुक्त जिलाधिकारी ने एक प्रयोग किया. उन्होंने लेह के एक कभी कभार प्रयोग होने वाले सभागार को एक छोटे सिनेमा हाल में बदल दिया और शहर के सभी सरकारी और निजी स्कूलों के लिए हफ्ते के  हर शनिवार हिन्दी, अंग्रेजी की फ़िल्में और वृत्तचित्र बच्चों को सिनेमा हॉल के अनुभव के साथ मुफ्त में दिखाना शुरू किया. सरकारी स्कूलों के बच्चों के सभागार तक आने के लिए वाहन भी मुफ्त उपलब्ध कराये. अब शहर के बच्चे उन्हें फिल्म वाले अंकल कहने लग गए हैं.

बच्चों को भा रही हैं फ़िल्में  

लैमडॉन मोडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल एशे तुन्दुप कहते है सिनेमा बच्चों की जरूरत के हिसाब से दिखाया जा रहा है. लेह के ये बच्चे भाग्यशाली हैं जो सिनेमा हॉल में फ़िल्में देख रहे हैं. इन फिल्मों से वे सिनेमा के माध्यम से लद्दाख की संस्कृति के बारे में परिचित हो रहे हैं.  लैमडॉन में ही पढने वाली दसवीं की छात्रा सोनम फिल्म देखने के अनुभव के बारे में कहती हैं सिनेमा कैसा होता है इसका आइडिया पहली बार लगा. स्तेंजिन को शिकायत है कि फिल्म पहली बार देखी पर पोपकोर्न नहीं मिला. लेह गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल की ज़ाहिरा के लिए डाक्यूमेंट्री हॉल में देखने का अनुभव बहुत मजेदार रहा और रोज की बोरिंग लाईफ से मुक्ति मिली. इसी स्कूल की छात्रा शहर को उम्मीद है कि इस तरह के प्रयासों से एक दिन लेह में फिर से सिनेमा हॉल खुलेगा.

जिलाधिकारी सौगात बिस्वास का मानना है कि उनके इस प्रयास से सिनेमा देखने की संस्कृति विकसित होगी और ये बच्चे जो आज मुफ्त में फ़िल्में देख रहे हैं बड़े होकर फिल्मों पर पैसा खर्च करने से नहीं हिचकेंगे वहीं अभी फिल्मों से इनका एक्सपोजर बढेगा और दिमाग का विस्तार होगा.

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लेखक

मुकुल श्रीवास्तव मुकुल श्रीवास्तव @sri.mukul

लेखक लखनऊ यूनिवर्सिटी के जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं

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