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Updated: 08 जून, 2015 06:05 PM
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योग को लेकर आजकल विरोध कुछ ज्यादा ही हो रहा है. मौलिक और तकनीकी स्तर पर देखें तो योग एक विज्ञान है. आप हिंदू हों, मुस्लिम या ईसाई, इसके प्रयोग से आपको फायदा ही होगा. योग सूत्रों पर आधारित होने के कारण इसका प्रयोग कोई महान योगी या अनजान भी आसानी से कर सकता है.

हिंदू शब्द के बार में भी कई भ्रांतियां हैं. लेकिन हिंदुस्तान कभी भी एक धार्मिक विचार की उत्पति नहीं रहा है. हिमालय से हिंद महासागर के बीच की भूमि को हिंदुस्तान कहा गया. 7000-8000 सालों तक बिना किसी बाहरी आक्रमण के हमने आजादी के साथ यहां वास किया. इन दो भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ही हमने जीवन को एक अलग नजरिये से देखा और जाना. इस दौरान आपस में कोई युद्ध नहीं लड़ा गया क्योंकि हम सभी खुद को हिंदुस्तान कहते थे. इसी आधार पर यहां के सब कुछ को हिंदू माना गया. जैसे हाथी को अफ्रीकन कह सकते हैं वैसे ही टिड्डे को हिंदू.

दिक्कत यह है कि सारे विचार हमारे दिमाग में घाल-मेल कर देते हैं. हिंदू-मुस्लिम जैसा कुछ है नहीं. हमने कभी भी ऐसे विचारों या विश्वासों को प्रश्रय नहीं दिया क्योंकि यहां कभी भी भगवान की खोज नहीं की जाती, मुक्ति की प्राप्ति पर बल दिया जाता है. इस धरा पर रहने वाले लोगों का अंतिम लक्ष्य भगवान से आजादी और मुक्ति का होता है. भगवान एक आयातित शब्द है. हमारा विश्वास तो देव में है - एक महान और उन्नत विचारों वाला मानव. शिव हों या राम या कृष्ण, यहां जिसे भी भगवान का दर्जा मिला है, सब के सब सामान्य प्रक्रिया से पैदा हुए हैं. उनका एक सामान्य बचपन रहा है, परिवार रहा है, उन्होंने युद्ध किए हैं. लेकिन हर समय उन्होंने सद्गुणों को दर्शाया है, आंतरिक गुणों को बचा कर रखा. हम उनके इन्हीं गुणों की पूजा करते हैं ताकि हम भी उनके जैसे बन सकें. योग वह प्रणाली है, जो हमें ऐसा करने में मदद करती है.

हमें यह जोर-शोर से बोलना चाहिए और जनता को तो डंके की चोट पर यह कहना चाहिुए. अगर कहीं इसका विरोध हो रहा है तो वह संप्रदाय की ओर से न होकर उनके कुछ नेताओं की ओर से हो रहा है. उन्हें यह डर है कि उनके लोग बिना उनकी मदद के सुख-समृद्धि पा लेंगे. अगर वे ऐसा कर लिए तो फिर इन नेताओं की जरूरत क्या रह जाएगी? योग स्वयं-सहायता का माध्यम है. हां, यह जरूर है कि इसके लिए आपको एक गुरु की आवश्यकता होगी. ठीक उसी तरह जैसे पहाड़ों पर चढ़ाई के वक्त आपको शेरपा की मदद लेनी होती है. किसी भी नई जगह में यह बेहतर है कि आप मदद लें. यहां भी गुरु पोजिशनिंग सिस्टम (GPS: Guru Positioning System) की मदद लें. GPS लेने की आवश्यकता का कम या ज्यादा होना, आप कैसे योगी बनना चाहते हैं, इस पर निर्भर करेगा.

मनुष्य चार अंशों से बना है - शरीर, दिमाग, भाव और ऊर्जा. आपको इन्हीं के अनुसार चलना होगा. आपके पास जो है, आपको उन्हीं के अनुसार काम करना होगा. दिमाग में कुछ आ जाने भर से आप उस पर काम करने लगें, ऐसा नहीं है. अगर आपने शरीर का प्रयोग अपनी भलाई के लिए किया है तो यह कर्म योग है; अगर मन का प्रयोग किया तो ज्ञान योग; अगर भाव का तो भक्ति योग और अगर ऊर्जा का तो यह होगा क्रिया योग. आप इसे धार्मिक या आध्यात्मिक प्रक्रिया कह सकते हैं. यह योग है, संयोजन है. आप अपने दिमाग का इस्तेमाल कर सुखी-संपन्न रह सकते हैं या नरक भी बना सकते हैं. हर एक इंसान में ये चार चीजें अद्वितीय अनुपात में होती हैं. आपके लिए क्या सही होगा, आपके गुरु इसमें मदद करेंगे.

(जैसा कि इशा फाउंडेशन के श्री सद्गुरु ने कावेरी बामज़ई को बताया)

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