नवाजुद्दीन का गांव 'लौटना' दिलचस्प है, खाली सूने पड़े गांवों को रास्ता भी मिलेगा!
गांव के घरों में 25 से 50 की उम्र के ज्यादा लोग नजर आए तो समझिए कि वे आर्थिक रूप से बेहद संपन्न हैं, या बेहद विपन्न हैं या फिर लोग छुट्टियों की वजह से घर आए हैं. कितना दुर्भाग्य है कि गांवों में पहले सड़कें और बिजली नहीं थी. मगर लोग थे. अब धीरे-धीरे सड़कें और बिजली पहुंचने लगी है तो लोग ही नहीं हैं.
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लॉकडाउन बहुत सारे बदलाव के साथ सामने आया है. कई लोगों को महानगरों की आपाधापी से वापस अपनी जड़ों की ओर लौटने का मौका मिला. कई लोगों ने लंबे अरसे बाद घर में बैठकर परिवार और रिश्तेदारों के साथ इत्मिनान से बात की. बहुत सारे लोग ऐसे मिल जाएंगे जिन्होंने वक्त की सुई को थोड़ा पीछे ले जाकर पुराने दिनों को जिया. वे खुश भी हैं. फिल्म इंडस्ट्री में भी कुछ लोग हैं जिन्हें लॉकडाउन ने पुरानी जिंदगी को फिर से जीने का मौका दिया. इन्हीं में से सबसे बड़ा नाम नवाजुद्दीन सिद्दीकी का है. गांव में लंबा समय बिताकर उन्हें जो सुकून मिला है, उसकी वजह से अब यहीं रहने का उनका मन है.
नवाजुद्दीन यूपी के बुढाना जिले में एक किसान परिवार से हैं. उन्हें मुंबई में लगातार नहीं देखा जा रहा है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने बॉलीवुड से ब्रेक ले लिया है. एक्टिंग उनका पैशन है और वो लगातार काम भी कर रहे हैं. बस फर्क यह है कि उनका वर्क फ्रॉम होम, "वर्क फ्रॉम होम विलेज" बन गया. एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बारे में कई सारी चीजें साझा की. उन्होंने स्पॉटबॉय से कहा कि गांव में उन्हें काफी सुकून मिल रहा है.
उन्होंने कहा- सबसे अच्छी बात यह है कि कोविड महामारी ने मुझे शहर के शोर-शराबे और भागदौड़ से दूर जाने का वक्त दिया. मेरे गृहनगर बुढाना में सबकुछ शांत है. यहां आने के बाद मुझे जो शांति महसूस हुई उसे मैं बयान नहीं कर सकता. आपको खुद आकर इसे महसूस करना होगा. नवाज ने बताया कि जब लॉकडाउन के बाद मुंबई में काम ठप हो गया था वे गांव चले आए थे. सोचा था कि कुछ दिनों मां के साथ रहने के बाद वापिस जाएंगे. लेकिन वहां जब काम नहीं हो रहा था तो उन्होंने गांव ही रुकने का फैसला किया. देखते ही देखते साल भर बीत गया. जब उनसे पूछा गया कि क्या आप बुढाना से ही काम करना पसंद करेंगे, नवाज ने कहा- "क्यों नहीं. वास्तव में वर्क एट होम न्यू नॉर्मल है. जब तक मैं शूटिंग नहीं कर रहा हूं, यहां (बुढाना) से सबकुछ कर सकता हूं- स्टोरी सेशन, ज़ूम पर नैरेशन. यहां तक कि डबिंग भी की जा सकती है."
File Photo.
तेजी से खाली हो रहे गांवों की हालत क्या है?
नवाजुद्दीन बुढाना के अपने गांव लगातार आते रहते हैं. उन्हें खेतों में भी काम करते देखा जा चुका है. वो आगे गांव से ही काम करेंगे या नहीं इस बारे में अभी कुछ कहना असंभव है. मगर उनकी कहानी में गांवों की बदहाली और खुशहाली के रास्ते छिपे हुए हैं. नवाज जैसे लोगों के गांव आते जाते रहने से या वहीं शिफ्ट हो जाने की वजह से बहुत सारे बदलाव नजर आ सकते हैं. शायद शहरों की ओर अंधाधुंध भागने का सिलसिला भी थमे जो पिछले 20 सालों से भयावह स्तर की ओर जाता दिख रहा है. पहले रोजगार की तलाश में लोग अकेले शहर जाते थे. उनके बीवी बच्चे गांव में ही रुकते थे. अब परिवार के साथ पलायन हो रहा है.
संसाधनों की कमी और बेरोजगारी की मार झेल रहे गांव के गांव लगातार खाली हो रहे हैं. तमाम गांवों में हकीकत यह है कि अब वहां बच्चे, बूढ़े और महिलाएं ही नजर आती हैं. घरों में इक्के दुक्के युवा नजर आते हैं जो खेत खलिहान, बड़े बूढों की निगरानी के लिए रुके हैं. गांव के घरों में 25 से 50 की उम्र के ज्यादा लोग नजर आए तो समझिए कि वे आर्थिक रूप से बेहद संपन्न हैं, या बेहद विपन्न हैं या फिर लोग छुट्टियों की वजह से घर आए हैं. कितना दुर्भाग्य है कि गांवों में पहले सड़कें और बिजली नहीं थी. मगर लोग थे. अब धीरे-धीरे सड़कें और बिजली पहुंचने लगी है तो लोग ही नहीं हैं.
नवाज जैसों की 'घरवापसी' गांवों के लिए समाधान कैसे है?
नवाज जैसों का गांव आना गांव की बदहालियों को कम कर सकता है. और इसके फायदे चौतरफा हैं. शहर भी क्षमता से ज्यादा लोगों के भार से मुक्त हो सकते हैं. नवाज जैसों का गांव आने का सीधा मतलब है- गांव कस्बों की आर्थिकी का बेहतर होना. बेहतरी की ओर बढ़ना. जरूरी संसाधनों की ओर सत्ता प्रतिष्ठानों का ध्यान जाना. नवाज जैसों का कहीं होने का मतलब यह भी है कि उसके आसपास तमाम राजनीतिक सामाजिक हलचलों का बढ़ना. क़ानून व्यवस्था का चाक चौबंद होना. इसे ऐसे समझिए कि अगर कोई बड़ा चेहरा यूपी या बिहार के किसी पिछड़े इलाके में अस्थायी आशियाना ले ले. एक ऐसा इलाका जहां ना तो बिजली है ना पानी और ना ही चलने के लिए अच्छी सड़कें. बड़े चेहरों के दो तीन-बार मूवमेंट भर से किसी जगह इन तमाम समस्याओं का समाधान हो जाता है.
देश की जो मशीनरी है वो काम ही ऐसे करती है. वीआईपीज का अपना महत्व है. दुर्भाग्य ही सही मगर हकीकत यही है कि समस्या तब तक समस्या नहीं होती और सत्ता प्रतिष्ठानों की उसपर नजर नहीं पड़ती जबतक कि उसके आसपास बड़ी हलचल ना हो. उदघाटन के लिए आने वाले मंत्रियों की सुविधा के लिए रातोंरात सड़क बन जाती हैं. गड्ढे भर दिए जाते हैं और सफाई हो जाती है. बिजली लगातार मिलती है. किसलिए? मंत्री जी को असुविधा ना हो. सेलिब्रिटी मूवमेंट में भी मशीनरी को यह डर लगा रहता है कि कहीं उन चीजों पर लोगों का ध्यान ना जाए जो वैसी नहीं हैं जैसा कि होना चाहिए था. गांवों कस्बों या फिर छोटे शहरों को लेकर सरकारी मशीनरी में यह डर सिर्फ इसलिए नहीं है कि वहां कोई बड़ी हलचल नहीं है, कोई सेलिब्रिटी मूवमेंट नहीं है. सबसे बड़े शहरों का सबसे ज्यादा सुविधासंपन्न होने के पीछे सिर्फ यही दर्शन है. वहां बड़ा नेता है, बड़ा अफसर है, बड़ा कारोबारी है. और इन वजहों से सबसे बड़ा शहर सबसे ज्यादा फोकस में रहता है. मशीनरी संसाधनों को चाक चौबंद बनाए रखने में जुटी रहती है.
गांव के हीरो अपने गांव से जुड़े रहें तभी ठीक
इन पंक्तियों का लेखक करीब एक दशक पहले पश्चिमी घाट के अलग अलग गांवों में घूम चूका है. वहां एक फर्क नोटिस करने को मिला. कुछ गांव, शहरों महानगरों की तरह नजर आएं जहां हर तरह के सार्वजनिक संसाधन उपलब्ध थे. सड़क, पक्की गलियां, नालियां, साफ़ सुथरे प्राथमिक अस्पताल और सरकारी स्कूल. बैंकों की शाखाएं, एटीएम. हर तरह की बेहतर कनेक्टिविटी. कई बार तो ऐसा लगा कि ये गांव ना होकर किसी महानगर की पॉश सोसायटी है. लेकिन ऐसे भी गांव मिले जिनमें असुविधाओं का अंबार था. और इस फर्क के पीछे की वजह बहुत साफ़ थी. वो गांव ज्यादा बेहतर दिखें, जो अफसरों, विधायकों या फिर रसूखदार कारोबारियों के थे. जहां से कुछ खिलाड़ी निकले थे. जो गांव बदहाल थे वहां सिर्फ यही चीज नहीं थी. उनके पास अपना कोई हीरो नहीं था.
नवाज जैसों के गांव से जुड़ने का सीधा फायदा हालिया उदाहरणों से भी समझ सकते हैं. मध्य प्रदेश के सोहागपुर विधानसभा के एक गांव में सालों से ठीकठाक सड़क नहीं थी. बरसात में दलदल से गुजरकर लोग घरों तक आते थे. गांव में भी चलने के लिए गलियों का अभाव था. लेकिन रियो ओलिम्पिक में इसी गांव का एक खिलाड़ी विवेक सागर भी हॉकी टीम में था. टीम के कांस्य जीतने के बाद गांव की तस्वीर बदलने में समय नहीं लगा. अब सड़क बन रही है और गलियों में चमचमाते सीमेंट से रास्ते. ये बदलाव सिर्फ उस शर्म से बचने के लिए हुआ कि जब खिलाड़ी वापस गांव आता तो पूरी दुनिया ओलिम्पियन के गांव की तस्वीर देखकर क्या सोचती? ऐसा सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं कई और जगहों हुआ.
गांव के सितारों को गांव आते रहना चाहिए. संभव हो तो यहां ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहिए. उनके आने और ठहरने से तस्वीर के रंग बदल सकते हैं और गहरे भी हो सकते हैं.
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