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Updated: 28 अगस्त, 2021 05:07 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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टीवी चैनल एचबीओ पर प्रसारित अमेरिकन टीवी सीरीज 'गेम ऑफ थ्रोन्स' यदि आपने देखी होगी, तो डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई वेब सीरीज 'द एम्पायर' देखने के बाद उसकी याद आ जाएगी. जिस तरह 'गेम ऑफ थ्रोन्स' में सत्ता और सिंहासन के लिए संघर्ष दिखाया गया है, उसी तरह 'द एम्पायर' में भी पॉलीटिक्स, एक्शन, ड्रामा, लव, सेक्स, धोखा और फैमिली फाइट देखने को मिल जाएगी. 'द एम्पायर' लेखक एलेक्स रदरफोर्ड के उपन्यास सीरीज 'एंपायर ऑफ द मुगल' पर आधारित है.

ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई वेब सीरीज 'द एम्पायर' में कुणाल कपूर, राहुल देव, दृष्टि धामी, शबाना आजमी, डीनो मोरिया, इमाद शाह और आदित्य सील अहम भूमिकाओं में हैं. इसकी पटकथा भवानी अय्यर और मिताक्षरा ने लिखी है, जबकि निर्देशन मिताक्षरा कुमार ने किया है, जो संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' और 'बाजीराव मस्तानी' में सह निर्देशक रह चुकी हैं. यही वजह है कि 'द एम्पायर' में संजय लीला भंसाली की छाया दिखती है. इसके सेट की भव्यता, कॉस्ट्यूम डिजाइन और संगीत बरबस भंसाली की याद दिला देते हैं. यहां तक कि इसमें कई दृश्य और किरदार ऐसे भी दिखाए गए हैं, जिन्हें देखते ही आपकी आंखों के सामने फिल्म 'पद्मावत' और 'बाजीराव मस्तानी' के कई किरदार दिखाई देने लगेंगे.

1_650_082821014352.jpg'द एम्पायर' में मुगल शासक जहीरुद्दीन-मोहम्मद-बाबर के बचपन से जवानी तक की कहानी है.

वेब सीरीज की कहानी

'द एम्पायर' वेब सीरीज बाबर के मुगल बादशाह बनने की दास्तान है, जिसमें कल्पना का समावेश है. यह उन गिने-चुने सिनेमा में शामिल है, जिनमें असली किरदारों के साथ एक काल्पनिक दुनिया बसाने और दिखाने की कोशिश की गई है. सभी किरदारों के नाम असली हैं. यहां तक कि कालखंड भी असली ही बताए गए हैं, लेकिन फिर भी मेकर्स का दावा है कि इसे बनाने में सिनेमाई स्वतंत्रता ली गई है, इसलिए इसे ऐतिहासिक वेब सीरीज न कहा जाए. वेब सीरीज की कहानी लेखक एलेक्स रदरफोर्ड के छह ऐतिहासिक उपन्यासों की सीरीज 'एंपायर ऑफ द मुगल' की पहली कड़ी 'राइडर्स फ्रॉम द नॉर्थ' पर आधारित है. इसकी शुरुआत पानीपत की पहली लड़ाई अप्रैल 1526 से होती है, जहां मैदान में करीब-करीब हथियार डाल चुका जहीरुद्दीन-मोहम्मद-बाबर अपनी जिंदगी के सफर को याद कर रहा है. कहां से चला था और कहां पहुंचा है.

कहानी फ्लैशबैक में करीब 30 साल पहले फरगना किले में पहुंचती है, जहां बाबर का बचपन बीता था. वहां वो अपने पूरे खानदान के साथ रहता था. लेकिन एक प्राकृतिक हादसे में उसके पिता की मौत हो जाती है. इसके बाद रियासत में बगावत न हो, इसलिए उसकी नानी एसान दौलत बेगम (शबाना आजमी) उसे फरगना के तख्त पर बैठा देती है. उस वक्त बाबर की उम्र महज 14 साल होती है, लेकिन तबतक वो तलवारबाजी में पारंगत हो चुका होता है. इसी बीच खबर आती है कि फरगना रियासत का दुश्मन शैबानी खान (डिनो मोरिया) समरकंद किले पर कब्जा करने के बाद उस पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है. वहां आने के लिए अपनी सेना तैयार कर रहा है. ये सुनने के बाद बाबर और सिपाहसलार विचलित हो जाते हैं, क्योंकि सामने शैबानी खान जैसा खूंखार दुश्मन होता है. लेकिन बाबर हिम्मत नहीं हारता है.

बाबर अपने सेनापति को आदेश देता है कि शैबानी खान के हमले से पहले हमें उस पर हमला कर देना चाहिए. वो अपनी सेना लेकर समरकंद किले पर धावा बोल देता है. उधर, शैबानी अपने एक सिपाहसलार को समरकंद का शासक बनाकर फरगना की ओर कूच कर चुका होता है. इधर बाबर समरकंद के शासक की बेटी की मदद से वहां कब्जा कर लेता है. शैबानी फरगना पहुंच कर बाबर के खानदान सहित पूरे रियासत को अपने कब्जे में ले लेता है. इस पर बाबर उसके सामने प्रस्ताव रखता है कि यदि उसे परिवार और शुभचिंतकों समेत किले से निकल जाने दे, वह हमेशा के लिए चला जाएगा. शैबानी मान जाता है मगर इस शर्त पर कि बाबर अपनी खूबसूरत बहन खानजादा (दृष्टि धामी) वहीं उसके पास छोड़ जाए. न चाहते हुए भी खानजादा की जिद्द और अपने खानदान को बचाने के लिए बाबर को जाना पड़ता है.

अपनी बहन से जुदा होने का गम बाबर बर्दाश्त नहीं कर पाता. वो नशे की आगोश में डूबकर अपना गम गलत करने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी हालत देख नानी एसान दौलत बेगम उसे समझाती हैं. उसे नए रास्ते दिखाती हैं. इसके बाद बाबर आसपास की छोटी-छोटी रियासते जीतते हुए फारस के शासक मदद से एक बार फिर समरकंद पर धावा बोल देता है. वहां उसकी बहन खानजादा की चाल में फंसकर शैबानी अपना सबकुछ लुटा बैठता है. इस तरह एक बार फिर बाबर का समरकंद पर कब्जा हो जाता है. लेकिन इसी बीच फारस के शासक का एक खत तहलका मचा देता है. उसके मुताबिक बाबर वहां बादशाह नहीं बल्कि फारस के शासक का प्रतिनिधि बनकर शासन करे, ऐसा आदेश होता है. इसके बाद बाबर हिंदुस्तान की सरजमीं पर कैसे आता है, इसे जानने के लिए आपको वेब सीरीज देखनी चाहिए.

वेब सीरीज की समीक्षा

लेखक भवानी अय्यर ने बहुत ही शानदार तरीके से बाबर के जीवन पर आधारित एलेक्स रदरफोर्ड के उपन्यास को एक बेहतरीन पटकथा में परिवर्तित किया है. जो वेब सीरीज द एम्पायर को एक कॉस्ट्यूम ड्रामा से ऊपर ले जाता है. यह पहली बार नहीं है जब कोई बड़े बजट में स्क्रीन पर मुगल इतिहास को दोहराने की कोशिश कर रहा है. लेकिन संजय लीला भंसाली की फिल्मों को छोड़ दें, तो अधिकांश मुगलई सिनेमा केवल कॉस्ट्यूम ड्रामा बनकर रह जाते हैं. यहीं पर एक लेखक के रूप में भवानी अय्यर का योगदान सबसे ज्यादा है. इसकी कहानी में ऐसे लोगों का मानवीय पक्ष ही दिखाया गया है, जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं. उनमें से कोई भी बर्बर नहीं है और न ही वे सभी लगातार ऊंची आवाज में बात करते हैं. इतना ही नहीं हर किरदार को बराबर का तवज्जो और अहमियत देत हुए उसकी उपस्थिति को सही ठहराया है.

इस वेब सीरीज को संजय लीला भंसाली की बी टीम ने तैयार किया है, ऐसा कहना गलत नहीं होगा. क्योंकि निर्देशक से लेकर कम्पोजर-सिंगर तक भंसाली की टीम में काम कर चुके हैं. इसलिए इस पर भंसाली की छाया दिखनी लाजमी है. निर्देशक मिताक्षरा कुमार तो भंसाली के फिल्मों में एसोसिएट डायरेक्टर रह ही चुकी हैं, उनके साथ ही लेखक भवानी अय्यर भी भंसाली के साथ फिल्म 'ब्लैक' और 'गुजारिश' लिख चुके हैं. यहां तक डायलॉग और लिरिक्स लेखक एएम तुराज और कम्पोजर-सिंगर शैल हाडा भी भंसाली के साथ लंबे समय तक काम कर चुके हैं. मिताक्षरा कुमार का ये पहला इतना बड़ा प्रोजेक्ट है, जिसमें उन्होंने कमाल का काम किया है. बतौर निर्देशक उन्होंने कलाकार, उनके किरदार और कॉस्ट्यूम तक जिस बारीकी से ध्यान रखा है, उसे देखकर लगता है कि भंसाली के साथ उनकी सिनेमाई साधना सफल है.

'द एम्पायर' वेब सीरीज के जरिए फिल्म 'रंग दे बसंती' फेम एक्टर कुणाल कपूर और टीवी एक्ट्रेस दृष्टि धामी ने अपना डिजिटल डेब्यू किया है. कुणाल इस वेब सीरीज के नायक बाबर के किरदार में हैं. उनको किरदार में ढलने में थोड़ा वक्त तो लगता है लेकिन एक बार रौ में आने के बाद वह जम जाते हैं. दृष्टि धामी भी बाबर की बहन खानजादा के किरदार में छा गई हैं. चेहरे पर मासूमियत लेकिन अदाकारी में उनके जो दृढता दिखती है, वो उनको बहुत आगे तक ले जाने वाली है. टीवी की सास-बहू वाले सीरियल के किरदारों से वो कहीं आगे हैं, इस वेब सीरीज में अपने अभिनय कौशल से दिखा दिया है. इसमें सबसे ज्यादा चौंकाने का काम करते हैं डीनो मोरिया. शैबानी खान के किरदार में वो कहर ढाह रहे हैं. उनको देखकर भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' के खिलजी की याद आ जाती है. उनकी मेहनत काबिले तारीफ है.

शबाना आजमी की सधी हुई अदाकारी और संवाद अदायगी प्रभावी है. उम्र के इस पड़ाव में भी वो अपने अभिनय प्रशंसकों को हैरतजदा करने में कामयाब हैं. वज़ीर ख़ान के किरदार में राहुल देव उभर कर अलग सामने आए हैं. उनके किरदार से इतनी मोहब्बत हो जाती है कि उसकी मौत के बाद सूनापन लगता है. फिल्म 'पल पल दिल के पास' से एक्टिंग में डेब्यू करने वाली सहर बाम्बा की यह दूसरी स्क्रीन एपीयरेंस है. बाबर के पत्नी महम बेगम के किरदार में सहर सुंदर लगी हैं. बाबर के बचपन के दोस्त कासिम अली के किरदार इमाद शाह ने अपना काम तो ठीक किया है, लेकिन कहानी में उनका किरदार न्यायसंगत नहीं लगता. जहां तक तकनीकी पक्ष की बात है तो फिल्म का सबसे मजबूत आर्ट डायरेक्शन है, जिसे बखूबी निभाया गया है. निगम बोमजन का छायांकन वेब सीरीज में चार चांद लगा देता है. कुल मिलाकार यदि आप इतिहास जानने की उत्सुकता से अधिक एक बेहतरीन सिनेमा देखने की चाहत से वेब सीरीज 'द एम्पायर' देखेंगे तो आपको बहुत मजा आएगा. पहले से आखिरी एपिसोड तक वेब सीरीज दर्शकों को बांधे रखने की क्षमता रखती है. इसमें कलकारों के दमादर अभिनय के साथ ही शानदार निर्देशन देखने को मिलता है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 3 स्टार

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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