Tandav case: हिंदू धार्मिक भावनाएं आहत करने की बीमारी का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर दिया इलाज
तांडव वेब सीरीज विवाद के चलते अमेजन प्राइम की इंडिया हेड अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत खारिज कर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सिनेमा जगत में हिंदू धार्मिक भावनाएं आहत करने के ट्रेंड पर अहम बातें कहीं हैं.
-
Total Shares
हिंदू धर्म का अपमान कर देश के एक बड़े वर्ग की धार्मिक भावना आहत करने वाली अमेजन प्राइम की वेब सीरीज तांडव पर मंडराते संकट के बादल छंटने का नाम नहीं ले रहे. तांडव विवाद पर अमेजन प्राइम की कंटेंट हेड अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत याचिका को।इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है और तमाम दो टूक बातें की हैं. बताते चलें कि अभी बीते दिनों ही Tandav Controversy प्रकाश में आने के बाद यूपी पुलिस ने सीरीज द्वारा हिंदू धर्म को बदनाम करने और धार्मिक द्वेष को बढ़ावा देने की बात कहकर अमेज़न की कंटेंट चीफ अपर्णा पुरोहित के खिलाफ लखनऊ में एफआईआर दर्ज की थी.
जिक्र कोर्ट में हुई दलीलों का हो तो अपर्णा की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ का कहना है कि पहले जमानत लेने के लिए जांच में सहयोग करना पहली शर्त है.
तांडव विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की बातों का संज्ञान अन्य प्रोड्यूसर डायरेक्टर्स को भी लेना चाहिए
आइये नजर डालें उन बिंदुओं पर जिनको आधार बनाकर जस्टिस सिद्धार्थ की बेंच ने अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर न केवल इस वेब सीरीज के प्रोड्यूसर डायरेक्टर्स की मुसीबतें बढ़ा दी हैं बल्कि उन निर्माता और निर्देशकों को भी एक बड़ा संदेश दिया है जो एक एजेंडे की तहत धर्म को आधार बनाकर कुछ न कुछ ऐसा परोस देते हैं जो सीधे सीधे धर्म पर प्रहार करता है और जिससे देशवासियों में कड़वाहट का संचार होता है
पहले हिंदू देवी देवताओं का मजाक बनाया जाए फिर माफी मांग ली जाए ये प्रथा ठीक नहीं.
मामले पर न्यायालय ने कहा कि भारत के बहुसंख्यक समुदाय के श्रद्धेय पात्रों को बहुत ही सस्ते और आपत्तिजनक तरीके से चित्रित किया गया. कोर्ट ने कहा कि इसकी स्ट्रीमिंग के बाद माफी मांगना या सीन हटाना उनके द्वारा किये गए अपराध को कम नहीं करता है. पश्चिमी दुनिया के फिल्म निर्माता ईसा मसीह और पैगंबर मोहम्मद को हल्के रूप में प्रदर्शित करने से बचते हैं, जबकि भारतीय फिल्म निर्माता हिंदू देवी देवताओं को लगातार ओछे ढंग से प्रदर्शित करते रहे हैं.
Allahabad HC rejects the anticipatory bail plea of Aparna Purohit. Says western filmmakers have refrained from ridiculing Lord Jesus or the Prophet but hindi filmmakers have done this repeatedly and still doing this most unabashedly with the Hindu Gods and Goddesses. #Tandav pic.twitter.com/xDvTvL2Zya
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) February 25, 2021
कोर्ट में सीरीज के उस डायलॉग की चर्चा हुई जिसमें एक्टर ज़ीशान अय्यूब के जरिये कहलवाया गया कि इन दिनों सोशल मीडिया पर भगवान राम लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि ये विवादित बात तब कही गई है जब अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण हो रहा है. साथ ही ये भी कहा गया है कि जिस तरह पहले एपिसोड में दो हिंदू देवताओं के बीच संवाद दिखाया गया वो बहुत अपमानजनक है. वहीं देवकीनंदन एक नीची जाति के व्यक्ति का अपमान करता है. इस सीन में अनुसूचित जाति को आरक्षण देने को मुद्दा बनाया गया है.
सीरीज के नाम के रूप में 'तांडव' शब्द का प्रयोग बहुसंख्यकों के लिए अपमानजनक हो सकता है.
कोर्ट ने कहा कि हर नागरिक का यह कर्तव्य है यदि कोई काल्पनिक शो का भी निर्माण किया जा रहा हो तो दूसरे की धार्मिक भावना का ख्याल रखा जाए. इस संबंध में, यह देखा गया कि वेब सीरीज का नाम ही आपत्तिजनक था.
कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि वेब सीरीज के नाम के रूप में 'तांडव'का प्रयोग इस देश के बहुसंख्यक लोगों के लिए अपमानजनक हो सकता है क्योंकि यह शब्द भगवान शिव को दिए गए एक विशेष कार्य से जुड़ा है जिसे निर्माता, संरक्षक और विध्वंसक माना जाता है.
अपर्णा पुरोहित लापरवाह, तांडव की स्ट्रीमिंग की अनुमति दी जो एक बड़ी आबादी के संवैधानिक अधिकारों के ख़िलाफ़
मामले में जबसे ज्यादा गाज अमेजन प्राइम की कंटेंट हेड अपर्णा पुरोहित पर गिरी है. कोर्ट ने कहा है कि इस पूरे मामले में पुरोहित ने इस देश की बहुसंख्यक नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ होने वाली फिल्म की स्ट्रीमिंग की अनुमति देकर गैरजिम्मेदारी से काम किया. इसी बात को आधार बनाकर कोर्ट ने कहा कि इसलिए, उसके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को इस अदालत की विवेकाधीन शक्तियों के अभ्यास में अग्रिम जमानत देने से संरक्षित नहीं किया जा सकता है.'
असामाजिक ताकतें करती हैं आरोपियों का बचाव
तांडव विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का मानना है कि जब भी इस तरह के अपराध होते हैं, तो देश में असामाजिक ताकतें सक्रिय हो जाती हैं और ऐसे आरोपियों का बचाव करती हैं.मामले पर अदालत ने इस बात का भी जिक्र किया कि जब भी देश के कुछ नागरिकों द्वारा इस तरह के अपराध किए जाते हैं, तो इस देश के हित के लिए अनिवार्य बल सक्रिय हो जाते हैं.
कोर्ट की तरफ से जो आदेश दिया गया है यदि उसका अवलोकन किया जाए तो अपने आदेश में कोर्ट ने लिखा है किऐसे लोग विरोध और प्रदर्शन करते हैं और इसे मुद्दा बनाकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ले जाते हैं और कहते हैं कि भारतीय असहिष्णु हो गए हैं और भारत अब रहने योग्य बचा नहीं है.
सांप्रदायिकता, कट्टरता और कट्टरता को दूर किया जाना चाहिए
न्यायालय ने 11 सितंबर, 1983 को प्रथम विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के शिकागो एड्रेस का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा गया था कि सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है. कोर्ट ने कहा कि, "सभी धर्म अलग-अलग धर्म अलग अलग नदियों के रास्तों की तरह हैं, जो अंत में एक ही महासागर में विलीन हो जाते हैं, जो अंतिम सत्य या ईश्वर है. इसलिए, संप्रदायवाद, कट्टरता और कट्टरता को दूर करना होगा.
पुरोहित जांच में सहयोग नहीं कर रही हैं जिससे उन्हें राहत नहीं मिल सकती
अदालत ने कहा कि पुरोहित ने एक अन्य अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, जिसमें पहले से ही एक को ऑर्डिनेट बेंच ने गिरफ्तारी से उन्हें सुरक्षा प्रदान की थीने किसी भी राहत के लिए जांच-अधिकार के साथ सहयोग नहीं किया. आवेदक के इस आचरण से पता चलता है कि उसके पास भूमि के कानून के लिए सम्मान है और उसका आचरण उसे इस न्यायालय से किसी भी राहत के लिए मना करता है, क्योंकि जांच के साथ सहयोग अग्रिम जमानत देने के लिए एक आवश्यक शर्त है.
उच्च जातियों और अनुसूचित जातियों के बीच की खाई को चौड़ा करने का प्रयास किया गया
तांडव विवाद पर अदालत कितना सख्त थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सुनवाई के दौरान अदालत की यह भी धारणा थी कि शो में समाज में उच्च और निम्न जाति के बीच की खाई को चौड़ा करने का प्रयास किया गया था.
एक तरफ, बहुसंख्यक समुदाय के विश्वास के पात्रों को अपमानजनक तरीके से पेश करने से उनकी भावना आहत हुई है. तो वहीं दूसरी तरफ उच्च जातियों और अनुसूचित जातियों के बीच अंतर को चौड़ा करने का प्रयास किया गया है. कोर्ट ने कहा है कि ये सब उस वक़्त हो रहा है जब विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच की खाई को पाटना देश की जरूरत है. साथ ही जब देश को सामाजिक, सांप्रदायिक और राजनीतिक रूप से एकजुट करना किसी भी राज्य सरकार के लिए एक अहम् कार्य है.
अनुसूचित जाति की महिलाओं को अपमानित करने का स्पष्ट इरादा
न्यायालय ने कहा कि सीरीज के 6 एपिसोड्स की समीक्षा के बाद ये साफ़ हो गया है कि इस सीरीज में 'अनुसूचित जाति की महिलाओं को अपमानित करने का एक स्पष्ट इरादा था.' ध्यान रहे कि सीरीज में दिखाया गया है कि निम्न जाति का पुरुष उच्च जाति की महिला को डेट करता है और इसके पीछे उसका उद्देश्य उस दमन का बदला लेना है जो निचली जातियों ने सदियों से सहा है.
बॉलीवुड, हिंदू देवी-देवताओं को बदनाम करता है
न्यायालय हिंदू देवी-देवताओं का अपमानजनक तरीके से चित्रण करने में बॉलीवुड की भूमिका के बारे में बहुत आलोचनात्मक था.जबकि पश्चिमी फिल्म निर्माताओं ने भगवान यीशु या पैगंबर की खिल्ली उड़ाने से परहेज किया है, हिंदी फिल्म निर्माताओं ने ऐसा 'हिंदू देवी-देवताओं के साथ बार-बार और अनायास ही किया है.' जज ने कहा कि कई फिल्मों का निर्माण किया गया है, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं के नाम का इस्तेमाल किया गया है और उन्हें अपमानजनक तरीके से दिखाया गया है (राम तेरी गंगा मैली, सत्यम शिवम सुंदरम, पीके, हे भगवान, आदि)
Allahabad HC: This Court further takes notice of the fact that a number of movies have been produced which have used the name of Hindu Gods and Goddesses and shown them in a disrespectful manner (Ram Teri Ganga Maili, Satyam Shivam Sundram, P.K., Oh My God, etc.). pic.twitter.com/dYvfX9D4VM
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) February 25, 2021
कोर्ट का ये भी मानना है कि 'यही नहीं, ऐतिहासिक और पौराणिक व्यक्तित्वों (पद्मावती) की छवि को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की गई है. धन कमाने के लिए बहुसंख्यक समुदाय की आस्था और प्रतीकों का इस्तेमाल किया गया है. (गोलियों की रासलीला राम लीला) हिंदी फिल्म उद्योग बढ़ रहा है और अगर समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इसके भारतीय सामाजिक, धार्मिक और सांप्रदायिक आदेश के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं.
Allahabad HC: Not only this, efforts have been made to subvert the image of historical and mythological personalities (Padmavati). Names and icons of faith of majority community have been used to earn money (Goliyon Ki Rasleela Ram Leela).
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) February 25, 2021
पुरोहित की अग्रिम जमानत ख़ारिज करते हुए कोर्ट ने इस बात पर बल दिया कि युवा पीढ़ी, जिसे इस देश की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत के बारे में इतनी जानकारी नहीं है, उन्हें साफ़ तौर पर ऐसी फिल्मों और वेब सीरीज के जरिये बरगलाया जा रहा है. जोकि सभी प्रकार की जबरदस्त विविधता वाले इस देश के अस्तित्व की बुनियादी अवधारणा को नष्ट कर देता है.
Allahabad HC: This tendency on the part of the hindi film industry is growing and if not curbed in time, it may have disastrous consequences for the Indian social, religious and communal order.
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) February 25, 2021
बहरहाल अब जबकि अपर्णा पुरोहित की जमानत याचिका ख़ारिज हो गयी है तो देखना दिलचस्प रहेगा कि अभी ये विवाद कहां तक बढ़ता है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्यों कि वर्तमान परिदृश्य में पूरा देश अमेजन प्राइम और उसकी इस गुस्ताखी के खिलाफ एकजुट हुआ है. खैर मामले पर जिस तरह कोर्ट गंभीर दिखा और जैसी बातें हुईं उससे इतना तो साफ़ हो गया है कि ये मामला उन तमाम फिल्म मेकर्स/ प्रोड्यूसर/ डायरेक्टर को सबक देगा जिनका उद्देश्य विवादस्पद कंटेंट दिखाकर पैसा कमाना और सफलता के नए नए मानक स्थापित करना है. बाकी जिस तरह इस मामले का कोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया है वो अपने आप में तारीफ के काबिल है.
ये भी पढ़ें -
रामायण में श्रीराम बन आने वाले महेश बाबू क्या 'अरुण गोविल' बन पाएंगे?
Gangubai Kathiawadi Teaser: बॉलीवुड और साउथ को हिला डाला आलिया के अंदाज ने, ट्रोलर्स की बोलती बंद
Radhe, SMJ2, Bell Bottom और RRR जैसी मेगाबजट फिल्मों के बॉक्स ऑफिस क्लैश से फायदा या नुकसान?
आपकी राय