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Updated: 15 दिसम्बर, 2015 08:03 PM
नरेंद्र सैनी
नरेंद्र सैनी
  @narender.saini
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यह कहानी है करण और अर्जुन की. वह करण-अर्जुन जो सिने पर्दे पर भाई रह चुके हैं तो असल जीवन और किसी जमाने में बहुत अच्छे दोस्त. लेकिन करीब 7 साल पहले एक जन्मदिन की पार्टी में किसी बात को लेकर दोनों इस कदर उलझे कि दोस्ती में अच्छी-खासी दरार आ गई. हालात ऐसे बने कि दोनों को एक-दूसरे के बारे में सुनना तक नागवार गुजरने लगा. दोनों एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते थे.

रिश्तों में कड़वाहट कुछ ऐसी घुली कि एक-दूसरे का नाम आने पर वो बात को पलट देते. एक मंच पर साथ नजर नहीं आते. पार्टियों में एक के जाने के बाद ही दूसरे के दर्शन होते. कह सकते हैं कि दोनों में एक दूसरे को लेकर बहुत ज्यादा 'असहिष्णुता' थी. आलम यह रहा कि मौका मिलने पर कई मंचों पर वे एक दूसरे पर तंज कसने से भी बाज नहीं आए.

...क्योंकि दुश्मनी अब अधेड़ हो चुकी है ये तो भूतकाल की बात थी. वर्तमान काल की बात करें तो जैसे ही अर्जुन ने 50 की उम्र में पांव रखा है. दुनिया बदलने लगी. हालात दूसरी ओर भी बदले. जैसे ही करण ने एक बड़ा और अभि‍न्न दोस्त खोया, वैसे ही दोस्ती की जन्नत से जहरीला सांप उसने बाहर निकाल फेंका और दोनों छोटे पर्दे पर ही सही साथ मिलकर गाने लगे- 'सूरज कब दूर गगन से....'

...क्योंकि अर्थशास्त्र भी कोई चीज होती है आम तौर पर दोस्ती भावनाओं के आधार पर होती है. लेकिन वैश्विकरण में जिन सितारों का उदय हुआ हो, वह दोस्ती से ज्यादा अर्थशास्त्र की बात भी समझते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि 18 दिसंबर को अर्जुन की फिल्म 'दिलवाले' रिलीज होने वाली है, और उसका मुकाबला एक दूसरी बड़ी फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' से है.

हालांकि बताया जा रहा है कि बाजीराव को बहुत ही कम सिंगल स्क्रीन थिएटर मिले हैं. दूसरी ओर, करण का टीवी रियलिटी शो 'बिग बॉस' भी इस बार औंधे मुंह गिरा है. खराब लोगों की वजह से यह शो बहुत ही खराब दौर से गुजर रहा है. यानी टीआरपी की दौड़ में करण को भी आगे आना है. फिर जैसा कि एक फिल्म में अर्जुन ने कहा था, 'अगर किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहो... तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलवाने पर मजबूर हो जाती है.' अब कायनात ने इतने ढेर सारी वजहें इन दोनों को मिलाने की दे ही दी हैं तो ये दूर कैसे रह पाते.

...क्योंकि कमिटमेंट जैसी बात कही गई थी 'एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी, उसके बाद तो मैं अपने आप की भी नहीं सुनता.' यह बात कभी करण ने कही थी. वैसे 2008 में बर्थडे पार्टी में झगड़े के बाद करण ने यह भी कहा था, 'अब चाहे भगवान भी हमारे बीच आ जाए दोस्ती कभी नहीं होगी.' वैसे इसके बाद कभी दोनों ईद मुबारक करते हुए मिले तो कभी बहन की शादी ने भी दोनों को करीब लाया.हालांकि, अपने एटीट्यूड के लिए अपने फैन्स में पहचाने जाने वाले करण ने इस बार अपने एटीट्यूड के उलट काम किया, और बेशक उनकी जुबान को पत्थर की लकीर समझने वाले उनके फैन्स इस तरह के भाईजान को देखकर थोड़ा हैरान और निराश जरूर हुए हैं.

दुश्मनी अच्छी नहीं होती यह सच है, लेकिन जुबान के पक्कों के लिए दुश्मनी के बाद रास्ता सीधे दोस्ती तक भी नहीं जाता. दुआ-सलाम भी कोई चीज होती है. वैसे भाईजान अगर 'बजरंगी' और 'प्रेम' जैसे किरदार निभाएंगे तो उनमें प्यार और दोस्ती का हुनर तो हिलोरे मारेगा ही.

...क्योंकि समय बन गया मरहम बेशक समय ऐसा मरहम है जो हर घाव को भर देता है. शायद करण-अर्जुन का मिलना हिंदी सिनेमा के लिए एक सुखद अनुभव हो सकता है और कई प्रोड्यूसर्स के लिए अच्छे ख्वाबों की शुरुआत भी. दोनों की दोस्ती दोनों को भावनात्मक कितना फायदा पहुंचाती है, यह बात तो दोनों ही जानें. लेकिन आर्थिक तौर पर दोनों को फायदा मिलने वाला है यह तय है. वैसे भी ट्विटर पर बिरयानी घर भेजने की दरख्वास्त पहले ही आज चुकी थी.

...क्योंकि एक करण-अर्जुन वो भी थे करण-अर्जुन की बात होती है तो इन सब के बीच महाभारत के भी करण-अर्जुन याद आते हैं. वो करण-अर्जुन जो भाई होते हुए भी कभी व्यवहारिक तौर पर दोस्त नहीं रहे (चाहे अनजाने में ही सही). दोनों ने हमेशा एक-दूसरे का सम्मान किया और आखिरी समय तक एक-दूसरे के जानीदुश्मन बने रहे. अब देखना यह है कि फिल्मी करण-अर्जुन की यह दोस्ती कितना लंबा सफर तय करती है, क्योंकि बॉलीवुड में दोस्ती और भगवान हर शुक्रवार बदलते रहते हैं.

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लेखक

नरेंद्र सैनी नरेंद्र सैनी @narender.saini

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सहायक संपादक हैं.

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