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Updated: 17 दिसम्बर, 2015 06:36 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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बॉलीवुड में ऐसा कम ही होता है कि जब एक ही दिन दो बड़ी फिल्में रिलीज हो रही हों. बिजनेस के लिहाज से अमूमन निर्माता-निर्देशक ऐसा करने से बचते हैं. लेकिन इस हफ्ते 'दिलवाले' और 'बाजीराव मस्तानी' आमने-सामने होगी. दिलचस्प ये कि विवाद का तड़का भी दोनों फिल्मों में लग गया है. फायदा किसे होगा, इसके लिए इंतजार करना होगा. लेकिन क्या पाकिस्तान ने 'बाजीराव-मस्तानी' को बैन कर भारत में इसके हिट होने और 'दिलवाले' का स्वागत कर यहां उसके फ्लॉप होने की गारंटी दे दी है? क्या दोनों फिल्मों को देखने या नहीं देखने को लेकर भी 'ध्रुवीकरण' होगा?

यह सवाल थोड़ा अजीब लग सकता है कि भला किसी फिल्म के पाकिस्तान में बैन होने या नहीं होने से उसके भारत में हिट या फ्लॉप होने की गारंटी कैसे हो सकती है. और इसमें ध्रुवीकरण कहां से आ गया जिसका सीधा लेन-देन तो वोटिंग, सियासत और चुनाव से ही है. और ध्रुविकरण की चर्चा वहीं ठीक भी लगती है. लेकिन मौजूदा हालात में इस सवाल को खारिज भी नहीं किया जा सकता. पाकिस्तान सेंसर बोर्ड ने कहा है, 'बाजीराव-मस्तानी इस्लाम विरोधी है. हिंदी में है और हमारी ऑडियंस हिंदी फिल्मों को नहीं देखना चाहती. फिल्म में कुछ अंतरंग दृश्य हैं लेकिन यह हमारे लिए बड़ा विषय नहीं है.' बाजीराव मस्तानी को लेकर भारत में भी विवाद है लेकिन ये फिल्म यहां 18 दिसंबर को रिलीज हो रही है दिलवाले के साथ.

क्या दर्शकों का 'ध्रुवीकरण' होगा?

याद कीजिए तो इन दिनों सोशल मीडिया पर एक मैसेज खूब वायरल हो रहा है जिसमें लोगों से दिलवाले फिल्म को नहीं देखने की अपील की जा रही है. साथ ही एक वीडियो भी फॉरवर्ड किया जा रहा है जिसमें शाहरुख पाकिस्तानी दर्शकों से अपील करते नजर आ रहे हैं कि वे फिल्म जरूर देखें. इस मैसेज के साथ कुछ लोग यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि शाहरुख का असल प्रेम पाकिस्तान के लिए है. ये और बात है कि जिस वीडियो की बात हो रही है..दिलवाले के निर्माताओं ने अलग-अलग देशों के लिए वैसे 50 से अधिक वीडियो बनवाए हैं. गौरतलब है कि दिलवाले 96 देशों में एक साथ रिलीज हो रही है. खैर, फिर ऐसी भी खबरें आईं शाहरुख और काजोल फिल्म के प्रोमोशन के लिए पाकिस्तान के कुछ टीवी शो में हिस्सा लेते नजर आए.

यह भी पढ़ें- क्यों 'एंटी इस्लामिक' है बाजीराव-मस्तानी...

अब एक धड़ा है जो इन सभी बातों को शाहरुख के खिलाफ प्रचारित करने में लगा है. कहा जा रहा है कि शाहरुख के फिल्म पर पैसे खर्च करने से बेहतर है कि उसे चेन्नई आपदा से पीड़ित लोगों की मदद के लिए दे दिया जाए. यह पूरा मसला शाहरुख द्वारा हाल में असहिष्णुता पर दिए बयान से जुड़ा है जिसमें उन्होंने कहा था कि पिछले कुछ महीनों में देश का माहौल बदला है. अब सवाल है कि क्या इन विवादों के बाद सच में दर्शकों का भारत में ध्रुवीकरण होगा? इसका फायदा बाजीराव-मस्तानी को मिलेगा?

सब बातें हैं..बातों का क्या

इंटरटेनमेंट के बीच में ध्रुवीकरण आ जाए. ऐसा संभव लगता नहीं. हां! अगर फिल्म ही पसंद न आए तो कहानी कुछ अलग हो सकती है. वैसे भी, यह पहला मौका नहीं है जब जो बड़ी फिल्में एक साथ पर्दें पर टंगने जा रही हों. पहले भी कई मौकों पर ऐसा हुआ है. मसलन, गदर और लगान, राजा हिंदुस्तानी और घातक, शोले और जय संतोषी मां, सिलसिला और अर्थ, सन ऑफ सरदार और जब तक है जान. ये सभी फिल्में हिट रहीं बावजूद इसके कि ये एक साथ पर्दे पर आईं. इस दफे जरूर हालात दूसरे हैं. लेकिन यह भी तय है कि सियासत के बीच इंटरटेनमेंट अपना रास्ता खोज ही लेगा.

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विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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