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Updated: 25 जनवरी, 2023 03:37 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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शाहरुख खान स्टारर यशराज फिल्म्स की 'पठान' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. सोशल मीडिया पर हर तरफ पठान की ही चर्चा है. गुवाहाटी से भिवंडी तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक शाहरुख के फैन्स की मेहनत साफ़ नजर आ रही है. याद नहीं आता कि बॉलीवुड की किसी फिल्म के लिए आख़िरी बार इस तरह से कब सामूहिक प्रयास हुए थे. शाहरुख के फैन्स अपनी हैसियत के हिसाब से फिल्म के लिए जितना कर सकते थे, उन्होंने किया. किसी ने पूरा का पूरा सिनेमाघर बुक कर दिया. किसी ने 400 टिकट खरीदे. किसी ने 40 लोगों को टिकट खरीदकर गिफ्ट किया.तमाम फैन्स ग्रुप ने 50-50 हजार टिकट भी बुक किए. लोगों को लगभग मुफ्त में टिकट बांटे गए. सिनेमाघरों में दर्शकों को आकर्षित करने के लिए टी शर्ट बांटी जा रही है. चाय नाश्ते तक का इंतजाम है.

खैर. पठान की रिलीज के बाद दो और नया ट्रेंड निकलकर आया है. एक तो यह कि पहली बार हैदराबाद और कोलकाता जैसे क्षेत्रों में भी बॉलीवुड की किसी फिल्म के लिए ऐतिहासिक मारामारी दिखी. इन दोनों शहरों में जबरदस्त एडवांस बुकिंग हुई थी. एक बंगाली क्षेत्र है और दूसरा तेलुगु. शाहरुख के प्रशंसकों की मेहनत की तारीफ़ करनी चाहिए कि पहले दिन उन्होंने गैर हिंदीभाषी क्षेत्रों में भी सिनेमाघर भर दिए. बॉलीवुड फिल्मों के लिए ऐसा ट्रेंड कभी कभार दिखता है. हैदराबाद-कोलकाता ही नहीं कई अन्य शहरों में भी एडवांस बुकिंग और शोकेसिंग का यही सैम्पल बाहर निकलकर आ रहा है.

pathaan reviewपठान समीक्षा

महिलाओं को लेकर पठान से जुड़ा यह ट्रेंड भी दिलचस्प

दूसरा जो मजेदार ट्रेंड दिख रहा है वह- महिला दर्शकों से जुड़ा है. पहली बार मास एंटरटेनर और फैमिली ड्रामा बताई जा रही बॉलीवुड की फिल्म के लिए सिनेमाघरों में महिला ऑडियंस की संख्या ना के बराबर है. सोशल मीडिया पर थियेटर्स के बाहर और अंदर की तस्वीरें तो यही संकेत देती हैं. बॉलीवुड के इतिहास में यह ट्रेंड भी कम दिलचस्प नहीं है. महिलाएं अपने 'राहुल' को देखने सिनेमाघर में नहीं आई. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने बताया भी कि सिनेमाघरों में 'हिजाब' वाली महिलाएं तो बिल्कुल भी नहीं दिखीं. कहने की जरूरत नहीं कि शाहरुख फीमेल ऑडियंस में सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेताओं में शुमार हैं. मगर यह शायद उनकी पहली फिल्म होगी जिसमें फीमेल ऑडियंस लगभग गायब है.

सोशल मीडिया पर पठान के पक्ष और विपक्ष से कोई निष्कर्ष निकाल पाना मुश्किल है. एडवांस बुकिंग के आंकड़ों को बाहर कर दें, तो जमीन पर फिल्म के पक्ष में कोई मजबूत माहौल तो नजर नहीं आ रहा है. उलटे हर तरफ पठान के विरोध में ट्रेंड ज्यादा मजबूत नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर पठान से जुड़े ट्रेंड ज्यादातर निगेटिव कहे जाएंगे. लोग तीखा विरोध कर रहे हैं. विरोध में कॉन्टेंट पर बात नहीं हो रही है. ऐसे में आलोचनाओं को कहां रखा जाए- किसी फिल्म के लिहाज से पहली बार ऐसे नज़ारे देखने को मिल रहे हैं.

पठान को सौ में सौ नंबर, कुछ लोगों ने 5 में से 0.5 पॉइंट काट क्यों दिए?

दूसरी तरफ फिल्म के पक्ष में मीडिया समीक्षाएं जोरदार हैं. लगभग सभी ने फिल्म की तारीफ़ की है. उन समीक्षकों ने भी ब्लॉकबस्टर बताते हुए तारीफ़ की है जो  इससे पहले सिंघम और दृश्यम जैसी एंटरटेनिंग फिल्मों को भी 5 में से 2.5 रेट देते नजर आते थे. पठान को 4.5 रेट दिया जा रहा है. समझ में नहीं आता कि 0.5 रेट कम क्यों कर दिए गए? यह सोशल मीडिया का दौर है. कोई चीज अच्छी है या खराब- अब इसका भी फैसला वोटिंग से किया जाएगा. कुछ समीक्षाओं से यह समझना मुश्किल नहीं कि पठान ना भूतो ना भविष्यति टाइप की फिल्म है. बावजूद कि पठान के दर्जनों सीन्स हूबहू हॉलीवुड फिल्मों से उठाए गए हैं. बावजूद पठान का ट्रेलर आने के बाद से ही कुछ सवाल थे. सबसे बड़ा सवाल फिल्म में छिपे एक अलग तरह के राष्ट्रवाद, भारत की संप्रभुता, उसकी विदेश नीति को चुनौती देने वाले विजुअल थे. किसी भी समीक्षा में उसे आधार नहीं बनाया गया.

पठान में इंडिया फर्स्ट की बजाए मनी फर्स्ट (किसी भी जायज नाजायज तरीके) है- दुर्भाग्य है कि एक भी समीक्षक ने पठान के सबसे जरूरी पहलू पर बात करने की हिम्मत नहीं दिखाई.

क्या भारतीय राष्ट्रवाद अब खाड़ी देशों के विचार से तय होगा? खाड़ी और उसके दर्शकों को दिखाई जाने वाली फिल्मों से तय किया जाएगा कि भारत की एक जासूसी कहानी में ग्लोबल टेररिज्म की परिभाषा क्या होगी? ग्लोबल टेररिज्म की परिभाषा वह होगी- जिसमें पाकिस्तान, पाकिस्तान जैसा नहीं होगा. चीन, चीन जैसा नहीं होगा. कट्टरपंथी आतंकी मुसलमान नहीं होगा. वह रॉ का एजेंट होगा. शाहरुख खान की ही मैं हूं ना में सेना के कुछ लोगों को गद्दार दिखाया गया. यशराज का बैनर कट्टरपंथी मुसलमान का चेहरा दिखाने से डरता है, लेकिन उसे शमशेरा बनाने में डर नहीं लगता. समझ से परे है कि पठान भारत के किस दर्शक वर्ग के लिए देशभक्ति फिल्म है? क्या उस दर्शक वर्ग के लिए देशभक्ति फिल्म है जो विदेशी आक्रमणकारियों की हजार साल पुरानी वंश परंपरा से खुद को जोड़ता है? जो भारत के साथ अकबर-औरंगजेब की वजह से खड़ा होता है. उसे महाराणा प्रताप, औरंगजेब, गुरुगोविंद सिंह और लचित से एलर्जी है? जो भारत पर दबाव डालता है कि वह इजरायल और फलस्तीन में किसके साथ खड़ा हो? जो यह समझता है कि भारत पर उसने राज किया इसलिए भारत उसका है.

पठान मैजिकल सक्सेस है, 20 साल बाद भी इस पर बात होगी

जो वंदेमातरम की बजाए जय हिंद के साथ सहज और सेकुलर रह पाता है. जो इस देश को खाड़ी देशों के ब्रदरहुड में ही देखता है, एशिया की बहुलवादी संस्कृति में भरोसा नहीं करता. दुर्भाग्य से पठान पर जोरदार लिखने वाले किसी समीक्षकों ने संप्रभुता के लिहाज से सबसे जरूरी मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया. मनोरंजन के नाम पर ऐसे विजुअल की अनुमति कैसे दी जा सकती है. पठान में किसी ठोस कल्पना का तनिक भी निशान नहीं. और जब सबकुछ हवा हवाई ही बनाना था तो एक काल्पनिक कहानी में जबरदस्ती भारत और उसकी महत्वपूर्ण संस्थाओं को क्यों जोड़ दिया गया?

बाकी जहां तक फिल्म के कॉन्टेंट पर प्रतिक्रियाओं का सवाल है- तारीफ़ करने वालों ने फिल्म के हर पहलू को लाजवाब बताया है. और 5 में से 4.5 ही रेट किया है. और निंदा करने वालों ने हर लिहाज से दो कौड़ी की फिल्म करार दिया है और 5 में से 1 या 1.5 रेट किया है. पठान भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा मैजिकल सक्सेस कही जाएगी और 20 साल बाद कभी जरूर इस फिल्म पर चर्चा होगी. यह एक ना एक दिन भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे बड़ी केस स्टडी बनेगी.

पठान का निर्देशन सिद्धार्थ आनंद ने किया है. फिल्म में शाहरुख खान के अलावा दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम अहम भूमिकाओं में हैं.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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