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Updated: 07 अक्टूबर, 2016 10:06 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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कहते हैं कि एक कलाकार कितना भी बड़ा या पॉपुलर क्यों न हो जाए, वो अपने शहर में परफॉर्म करने के लिए हमेशा उत्साहित रहता है. उसके लिए उसका गांव, उसका शहर हमेशा ही खास होता है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी एक ऐसे ही कलाकार हैं.

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 शिवसेना के विरोध से रामलीला से अलग हुए नवाजुद्दीन

आज नवाजुद्दीन एक कामयाब स्टार हैं. लेकिन इतने डिमांडिंग स्टार को जब उनके गांव की रामलीला कमेटी ने रामलीला में मारीच का किरदार निभाने का आग्रह किया तो उन्होंने झट से हां कर दी. इस रोल के लिए वो बेहद उत्साहित थे. जिसका जिक्र उन्होंने ट्विटर पर किया था.

यहां नवाजुद्दीन की ये बात भी काबिले तारीफ है कि बड़े पर्दे पर काम करने के बावजूद भी छोटे से गांव की छोटी सी रामलीला में मारीच का छोटा सा किरदार निभाने में उन्हें जरा भी हिचकिचाहट महसूस नहीं हुई. वो खुशी खुशी इसकी तैयारियों में जुट गए. क्योंकि किसी भी इंसान के लिए उसका अपना गांव उसका घर ही होता है. नवाज भले ही मुंबई में रहते हों लेकिन उनकी जड़ें तो यूपी, मुजफ्फरनगर जिले के गांव बुढाना में ही हैं.

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सर्जिकल स्ट्राइक के बाद शिवसैनिकों ने पाकिस्तानी कलाकारों को तो उनके देश भेज दिया, लेकिन अब पता लगा कि ये लड़ाई दो देशों के साथ-साथ दो धर्मों की भी थी. शिवसैनिकों को जैसे ही पता चला कि नवाज रामलीला में भाग ले रहे हैं, उन्होंने उनका विरोध करना शुरू कर दिया. और बड़ा ही बेतुका सा तर्क दिया कि 'बुढ़ाना में अभी तक किसी मुसलमान ने रामलीला में भाग नहीं लिया, इसलिए नवाज भी ऐसा नहीं कर सकते'.

जाहिर है नवाज को तकलीफ हुई होगी कि उन्हीं के गांव के कुछ लोग उनके साथ राजनीति का खेल खेल रहे हैं. लेकिन वहां शांति बनी रहे, ये सोचकर नवाज पीछे हट गए, और इस बात की तकलीफ उन्होंने ट्विटर पर साझा भी की. उन्होंने रामलीला की रिहर्सल का एक वीडियो ये लिखकर शेयर किया कि- ‘मेरे बचपन का सपना पूरा नहीं हो पाया, लेकिन मैं अगले साल रामलीला जरूर करुंगा...देखिए रामलीला की रिहर्सल.

रामलीला की रिहर्सल के इस वीडियो में वो रावण के साथ अपने संवाद की प्रेक्टिस कर रहे हैं. देखा जाए तो नवाज इस तनाव के माहौल में रावण को सही और गलत का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहे थे. वो राम नहीं बन रहे थे, वो केवल मारीच बन रहे थे जिसकी मायावी बुद्धि की सहायता से रावण ने सीता-हरण किया. ये किरदार स्टेज पर लोगों के सामने यही बोलने वाला था कि 'मैं मित्र बनकर आपको समझाता हूं. अच्छे और बुरे का ध्यान कराता हूं. मैं मूर्ख सही, लेकिन आपको मूर्खों वाली बातें नहीं बता रहा हूं. पराई स्त्री का हरना उचित नहीं, सीता का हरना उचित नहीं.'

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 रामलीला में भाग लेने का सपना पूरी नहीं हो सका

ये बात अगर वो मारीच की कॉस्ट्यूम पहनकर स्टेज पर बोल देते तो क्या रामायण का सार बदल जाता? लेकिन धर्म पर राजनीति करने वाले उस चश्मे से देखते हैं जहां इंसान नहीं केवल धर्म नजर आता है. शिवसेना की इस बात ने न केवल नवाज को निराश किया बल्कि हिंदुओं को भी शर्मसार किया है. नवाज का सपना सिर्फ इसलिए पूरा नहीं हो पाया क्योंकि वो मुसलमान हैं.

पर अगर शिवसेना ऐसा ही सोचती है तो उसे थोड़ी मेहनत और करनी पड़ेगी. पूरे देश के हर गली-मुहल्लों में हो रही रामलीलाओं का रिकॉर्ड खंगाले और बारीकी से देखे कि कितने मुस्लिम लोग हैं जो रामलीला में हिस्सा ले रहे हैं. यकीन मानो तुम थक जाओगे, लेकिन गिन नहीं पाओगे. कलाकार रजा मुराद को ही देख लो जो रामलीला में राजा जनक का किरदार निभा रहे हैं.

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 राजा जनक के किरदार में रजा मुराद

शर्म आती है शिवसैनिकों, तुमने उस इंसान की लगन नहीं देखी जिसका दर्द उसके ट्वीट में दिखाई दे रहा है. तुम क्या दुश्मन देश से लड़ोगे, तुम तो अपने ही देशवासियों के दुश्मन बने बैठे हो. खैर उम्मीद है कि अगले साल एक अच्छी रामलीला देखने को मिलेगी. 

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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