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Updated: 29 सितम्बर, 2016 04:45 PM
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पिछले साल जब शोले पाकिस्तान में रिलीज हुई तो देखने वालों की लाइन लग गई. ऐसा नहीं था कि पाकिस्तान में किसी ने वो फिल्म देखी नहीं थी. देखी थी.. लेकिन चोरी छिपे. फिल्म बड़े पर्दे पर आई तो लोग खुद को रोक नहीं सके. ये पाकिस्तान में बॉलीवुड का जादू है. चार साल पहले तक लाहौर में केवल 12 सिनेमाई स्क्रिन थे. आज ये तीस से ऊपर हैं. पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री और खासकर वहां के सिनेमा हॉल में हाल के दिनों में रौनक लौटी है तो इसकी एक बड़ी वजह बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्में हैं.

वो 1965 का साल था, जब दोनों देशों में जंग के बाद पाकिस्तान ने अपने यहा बॉलीवुड फिल्मों की रिलीज पर रोक लगा दी. लेकिन फिर चोरी-छिपे और फिर केबल टीवी और डीवीडी के दिनों में ये हिंदी फिल्में पाकिस्तान आती रहीं. खूब पसंद भी की गईं. 2006 में परवेज मुशर्रफ के दौर में 1984 की हिंदी फिल्म 'सोहनी माहिवाल' से बॉलीवुड को एक बार फिर पाकिस्तान में एंट्री मिली.

अब उरी में हुए आतंकी हमले के बाद जब दोनों देशों में तनाव एक बार फिर चरम पर है तो एक बार फिर ऐसी बातें होने लगी है कि क्या पाकिस्तान एक बार फिर बॉलीवुड पर बैन लगाएगा? इसका असर पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री पर क्या होगा? वहां के सिनेमा बिजनेस पर क्या असर होगा और फिर सबसे अहम क्या बॉलीवुड को भी नुकसान होगा? क्योंकि ये बात तो है कि पाकिस्तान का बाजार हिंदी फिल्मों के लिए बेहद बड़ा और महत्वपूर्ण भी है.

क्या है पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री की हालत

चार दशक के बाद जब 2007-08 में हिंदी फिल्मों के दरवाजे एक बार फिर पाकिस्तान में खोले जा रहे थे तो वहां के कुछ प्रोड्यूसर्स और फिल्मकारों ने एतराज जताया कि इससे पाकिस्तान की सिनेमा इंडस्ट्री पूरी तरह खत्म हो जाएगी. ऐसा नहीं होना चाहिए. लेकिन पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की असली हालत ये है कि वहां आज भी सलाना 50 फिल्में तक नहीं बनतीं. ये तब का हाल है जब करीब चार दशकों तक वहां हिंदी फिल्मों पर बैन लगा रहा.

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 पाकिस्तान में भारत से नफरत है बॉलीवुड से नहीं!

दशकों तक हिंदी फिल्मों पर बैन का असर ये हुआ कि सिनेमा हॉल बुरी तरह मार खाने लगे. समस्या ये थी कि सिनेमा हॉल चलें कैसे? वही पुरानी पाकिस्तानी फिल्में बार-बार लगाने से दर्शक तो नहीं आ जाएंगे. नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान के सिनेमा हॉल में एक के बाद एक ताले लगने लगे. 1970 के दशक में ही इसका असर दिखना शुरू हो गया था जब सिनेमा हॉल की संख्या 300 से घट कर 100 से भी नीचे पहुंच गई.

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बहरहाल, पिछले सात-आठ वर्षों में एक बार फिर तस्वीर बदली. नए सिनेमा हॉल खुले. और ये केवल लाहौर या इस्लामाबाद तक सीमित नही रहा. पाकिस्तान अखबार दि डॉन की 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुल्तान और फैसलाबाद जैसे शहरों में लोग फिल्मों के लिए सिनेमा हॉल का रूख करने लगे.

क्या है पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री का डर

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अभी तत्काल अगर पाकिस्तान में बॉलीवुड फिल्मों पर बैन लगता है कि वहां की इंडस्ट्री को 70 फीसदी तक का नुकसान झेलना पड़ सकता है. वहां के डिस्ट्रिब्यूटर और मल्टीप्लेक्स या सिनेमा हॉल के मालिक तक मानते हैं कि हिंदी और हॉलीवुड फिल्मों के कारण ही पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री में नई जान आई है. बाजार में पैसे आने शुरू हुए हैं और वे नहीं चाहते कि दोनों देशों के बीच तनाव ज्यादा बढ़ें.

पाकिस्तान के मशहूर फिल्म क्रिटिक ओमेर अल्वी का बयान कई रिपोर्ट्स में छपा है जिसके मुताबिक सिनेमा स्क्रिन और आने वाले पैसों से पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री को थोड़ी राहत जरूर मिली है. ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में अच्छी फिल्में नहीं बनती. बनती हैं और कई और हाल के दिनों में रिलीज भी होने को तैयार हैं. लेकिन मुश्किल फंड की है.

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 बॉलीवुड पर बैन से क्या मिलेगा पाकिस्तान को?

पाकिस्तान जैसे देश में सिनेमा इंडस्ट्री अपना ठीक-ठाक कारोबार करती रहे, इसके लिए जरूरी है कि सलाना कम से कम 50 से 60 फिल्में वहां बने. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. महज 20 से 25 फिल्में ही वहां बन पाती हैं. वहीं, भारत में ये संख्या 1000 से ज्यादा है.

बॉलीवुड का कितना नुकसान

पाकिस्तान में अगर हिंदी फिल्में नहीं भी चलती हैं तो ये बॉलीवुड के लिए बहुत ज्यादा सिरदर्द वाला विषय नहीं है क्योंकि वैश्विक मार्केट हमारे पास मौजूद है. फिर भी आज के दौर में पाकिस्तान से किसी बड़ी फिल्म के लिए अधिकतम 100 करोड़ या इसके आसपास के नुकसान के लिए बॉलीवुड को तैयार रहना होगा और लगता नहीं कि ये यहां के लिए बहुत बड़ा मुद्दा होगा.

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चार दशकों का बैन पहले भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पाकिस्तान में झेल चुकी है. फिर भी वहां हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता पर कभी कोई असर पड़ा नहीं. यही नहीं, बॉलीवुड भी और बड़ा ही बनता चला गया. हां! उल्टा असर पाकिस्तान पड़ ही पड़ा. न सिनेमा का बिजनेस रफ्तार पकड़ सका और न ही पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री ही अपने पैरों पर खड़ी हो सकी.

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