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Updated: 27 जुलाई, 2023 12:53 PM
प्रकाश कुमार जैन
  @prakash.jain.5688
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निःसंदेह इस फिल्म को उनकी अब तक की सर्वश्रेष्ठ कृति कहा जा सकता है और बीते 100 साल की फिल्मों के बारे में जब भी कोई कॉन्क्लेव होगी या ड्राइंग रूम चर्चा होगी, तो इसे टॉप की कुछ फिल्मों में ही शुमार किया जाएगा. नोलन तो हैं ही असाधारण प्रतिभा के धनी. वे कहानी, वातावरण और इसके किरदारों को पूरी तरह उकेरते हैं उभरने के लिए; सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग और म्यूजिक तो उनकी विधि है ही. फिल्म किरदारों को डेवलप करने की जहमत नहीं उठाती और जैसे जैसे कहानी में जिसकी जरूरत होती है, वह बिना किसी विजुअली स्पेशल ट्रीटमेंट के आता जाता है चूंकि सभी कहानी के हिस्से हैं, जो ओपेनहाइमर के इर्द गिर्द है. इसलिए कहानी उनके लिए बोरियत का सबब हैं जिन्हें अमेरिकन हिस्ट्री, नागासाकी हिरोशिमा परमाणु हमला, सेकंड वर्ल्ड वॉर, अमेरिकन प्रेसिडेंटस मसलन ट्रूमैन, आइजनहावर, जॉन एफ केनेडी, ओपेनहाइमर की जानकारी नहीं है.काई बर्ड और मार्टिन शेरविन की नॉन फिक्शन किताब American Prometheus: The Triumph and Tragedy of J. Robert Oppenheimer पर आधारित पटकथा के लेखक भी नोलन ही है. फिल्म अपेक्षाकृत लेंग्थी है, तकरीबन सवा तीन घंटे की है लेकिन हर पल एक खूब कसे हुए कौतूहल पूर्ण कथानक का फिल्मांकन हर विधा की पराकाष्ठा को छूता है.

मैनहैटन प्रोजेक्ट(सेकंड वर्ल्ड वॉर के समय अमेरिका की पहली परमाणु परियोजना) की परिणति सफल ट्रिनिटी इवेंट (पहले परमाणु बम परीक्षण का कोड नेम) में हुई थी जिसके परिणामस्वरूप जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर एटम बम गिराए गए थे. उस दौरान अंदर बाहर होने वाली बातें ही इस फिल्म का आधार बनी है. और एक क्लिष्ट चरित्र के मालिक परमाणु बम के जनक ओपेनहाइमर, जो अपने बाकी जीवन में उसके घातक परिणामों को लेकर दुनिया को जागरूक करते रहे, को समझने समझाने के लिए तमाम घटनाक्रमों को बखूबी जोड़ा है नोलन ने.

फिल्म भरसक विस्मयकारी है जिसके लिए नोलन ने ओपेनहाइमर को केंद्र में रखते हुए तीन आख्यानों को अच्छी तरह मिलाया है. पहली घटना 1954 की है, जब लगभग पचास वर्षीय ओपेनहाइमर को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले को लेकर सुनवाई का सामना करना पड़ता है. उन्हें बर्बाद करने के मकसद से संयुक्त राज्य परमाणु ऊर्जा आयोग के बोर्ड सदस्यों के सामने उनके अतीत को तोड़ मरोड़कर पेश किया जाता है.

Oppenheimer, Film, Review, Hollywood Film, America, Nuclear Bombजैसी फिल्म है माना जा रहा है कि ओपेनहाइमर कई रिकॉर्ड अपने नाम करेगी 

दूसरी घटना साल 1959 की है, जब एक शू सेलर से पोलिटिकल सुपरपावर बने लुईस स्‍ट्रास (किरदार आयरन मैन फेम रॉबर्ट डाउनी जूनियर ने निभाया है) राष्ट्रपति आइजनहावर के मंत्रिमंडल की पुष्टि की सुनवाई के दौरान ओपेनहाइमर के साथ अपनी भागीदारी को दोहरा रहे हैं. तीसरी कहानी है जुनूनी फिजिसिस्ट ओपेनहाइमर की आसक्ति की, महिलाओं के साथ उनकी प्रेम कहानी की जिनसे गुजरते हुए उन्होंने परमाणु बम बनाने की परियोजना को लीड किया.

और ओपेनहाइमर के भौतिक विज्ञान के जुनून से लेकर उनके निजी जिंदगी के द्वंद्व से सराबोर जटिल किरदार को भला किलियन मर्फी के दूजा कौन निभा सकता था ? क्वांटम फिजिक्स के धुरंधर ओपेनहाइमर के सपने थे फ्यूजन -फिजन और आग के उठते गोले, परंतु जब सपना पूरा होता है तो वे जीवन पर्यंत अपराधबोध के शिकार रहे. चूंकि उन्होंने संस्कृत पढ़ी थी, श्रीभगवदगीता से ही शायद उन्हें प्रेरणा मिली थी लार्जर इंटरेस्ट में बम बनाने की, बम बनाने के बाद के अपराधबोध रूपी एहसास को उन्होंने भगवान् विष्णु का जिक्र करते हुए गीता की लाइन कहकर व्यक्त किया था, "कॉलोअस्मि लोक क्षयकृत्प्रवृद्धो " यानी मैं अब काल हूं जो लोकों (दुनिया) का नाश करता हूं.

दरअसल गीता का यह श्लोक उन्हें उनकी दुनियाभर को खतरे में डालने वाली गलती का एहसास करता है. नोलन ने फिल्म में क्रिएटिव फ्रीडम भी ली है जिसके तहत उन्होंने ओपेनहाइमर और अल्बर्ट आइंस्टीन के वार्तालाप को खूबसूरती से क्रिएट किया है लेकिन पता नहीं वे क्यों चूक गए और ना चाहते हुए भी बेवजह एक कंट्रोवर्सी खड़ी हो गयी है इंडिया में उनके गीता के श्लोक को उद्धृत करने को लेकर चूंकि फिल्म में ऐसा ओपेनहाइमर तब करते हैं जब वे अपनी कम्युनिस्ट महिला मित्र मनोरोग विशेषज्ञ जीन टैटलर (फ्लोरेंस पुग) के साथ इंटिमेट हो रहे होते हैं.

चूंकि ओपेनहाइमर द्वारा गीता के श्लोक के कहे जाने का कॉन्टेक्स्ट पब्लिक डोमेन में है, नोलन का क्रिएटिविटी के हवाले से यूँ बदल देना नागवार सा ही गुजरता है. बेहतर होगा वे इस दृश्य को या तो निकाल दें या मॉडिफाई कर दें लेकिन संस्कृत और गीता के प्रसंग को यथोचित रखें जरूर. इंडियन ऑडियंस के हिसाब से जरूरी है.चूंकि ओपनहाइमर को लगा कि जापान तो पहले ही घुटने टेकने वाला था, ऐसे में उन पर बम गिराने की क्या ज़रूरत थी. इसी एहसास के वश एक दृश्य में वे अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन से कहते हैं कि मुझे लगता है कि मेरे हाथ खून से सने हैं.

एक शख्स, जिसकी पहले प्राथमिकता परमाणु बम बनाने की थी, अब बनाकर बेचैन है. प्रायश्चित करे तो करे कैसे ? इसी स्थिति को बयां करने के लिए सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर बखूबी कंट्रीब्यूट करते हैं, खासकर वह फेलिशिटेशन इवेंट, जहां ओपनहाइमर को सम्मान के प्रत्युत्तर में जनसमूह को एड्रेस करना है. स्टेज तक पहुंचने में उनके कंपकपाते पांव, ऑडियंस की विकृत होती शक्लों का उन्हें होता दीदार, रोते बिलखते उन्हें नजर आते लोग और टॉप ऑफ़ द सीन उन्हें ऐसा लगता है कि उनका पांव उस मलबे में फंसा है, जो उनके बनाए बम की देन है.

एक और कमाल की रचनात्मक काबिलियत दिखाई है नोलन ने जब वे ओपेनहाइमर से पूर्व प्रेमिका जीन के मुत्तालिक पूछे गए सवाल पर उन्हें ज्यूरी के समक्ष उन्हें ठीक वैसे ही न्यूड बैठा दिखा देते हैं जैसे वे सालों पहले अंतरंग पलों में जीन के साथ बैठा करते थे. कुल मिलाकर सिनेमा की हर विधा मुकाम पाती नजर आती है. पूरी फिल्म में संवादों का सिलसिला उत्कृष्ट बन पड़ा है- श्रीभगवत्गीता का ही प्रभाव है कि ओपेनहाइमर कहते हैं, "we imagine a future, and our imaginings horrify us. They won't fear it until they understand it. And they won't understand it until they have used it"...

अंततः गिल्ट भरे ओपनहाइमर की मनःस्थिति उन्हें आर्म्स रेस के खिलाफ खड़ा कर देती है, परिणामस्वरूप ही उन्हें अपमानित किये जाने की तमाम कोशिशें शुरू होती है और जब ये सब चल रहा होता है, तो 'ओपनहाइमर' की पत्नी किटी, हालांकि उनके अफेयर्स की सुनकर बेचैन है , उनसे पूछती हैं, "what did you think, if you let them tar and feather yourself, world would forgive you ?"

अल्बर्ट आइंस्टीन से उनके संवाद का प्रसंग तो लाजवाब क्रिएट हुआ है, एक बानगी है, "Now it's your turn to deal with consequences of your achievement. And, one day when they punished you enough, they will serve you salmon and potato salad. Make speeches. Give you a medal. Pat you on the back, tell you all is forgiven.. Just remember, it won't be for you. It will be for them."

बात करें कलाकारों की तो हर कलाकार खरा उतरा है, किलियन मर्फी लाजवाब है तो लेवी स्ट्रॉस के किरदार में रॉबर्ट डाउनी जूनियर नोलन का तुरुप का पत्ता है. कमाल कर दिया है उन्होंने. अन्य किरदारों में भी चाहे मैट डेमन हों या फ्लोरेंस प्यू या फिर एमिली ब्लंट या गैरी ओल्डमैन, रामी मलेक, केनेथ ब्राना, बेनी सैफडी, टॉम कॉन्टी, किसी के काम में कोई भी चूक ढूंढें नहीं मिलती. कुल मिलाकर 'ओपनहाइमर' एक विलक्षण फिल्म है, असाधारण इस कदर है कि शायद पहले कभी ऐसा कंटेंट नहीं देखा गया.

मोस्ट इंटरेस्टिंग बात ये भी है कि फिल्म में नोलन ने एक भी CGI या VFX सीन का इस्तेमाल नहीं किया है, सबकुछ असल में शूट किया गया है. परमाणु बम परीक्षण के तारतम्य में तो विज़ुअल्स देखकर आँखें फटी की फटी रह जाती है, वो आवाज जिसकी गूंज से कानों के परदे हिल जाने चाहिए थे, बाद में सुनाई जाती है ताकि विज़ुअल्स इफ़ेक्ट कमतर ना हो. सो तकनीकी तौर पर भी 'ओपनहाइमर' एक आला दर्जे की फिल्म है. वाकई ऑस्कर मटेरियल है, सिर्फ देखना है कितने ऑस्कर्स मिलेंगे ?

लेखक

प्रकाश कुमार जैन @prakash.jain.5688

A passionate writer. Writes with difference.

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