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Updated: 11 सितम्बर, 2021 06:11 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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भूत-प्रेत, आत्मा-पिशाच के अस्तित्व को लेकर कोई भी स्थापना सार्वभौमिक नहीं कि उस पर हर कोई भरोसा कर ही ले. बहुतायत, आत्माओं के अनुभव का दावा करते हैं और भरोसा करते हैं. कई ऐसे भी हैं जो सिर्फ इसलिए भरोसा करते हैं कि भूतों के बारे में उन्होंने जो सुना है उसपर यकीन है. यानी प्रेत होते हैं. प्रेत किस तरह होते हैं- लोगों की अपनी परिभाषाएं हैं. वैज्ञानिक कसौटी तो इन बातों को सरासर खारिज करती है. हालांकि कुछ सवालों पर उनके यहां भी जवाब नहीं मिलता और उसे भ्रम या शोध का विषय मानकर खामोशी ओढ़ ली जाती है.

स्वाभाविक रूप से ये एक ऐसा विषय है जिसमें हर किसी की दिलचस्पी दिखती है. पिछले कुछ सालों से बॉलीवुड में सिलसिलेवार काम हो रहा है. पहले शुद्ध हॉरर फ़िल्में बनती थीं, जो भूत प्रेतों के अस्तित्व को सीधे-सीधे मान्यता देते हुए लगभग महिमामंडित करती थीं. अब अस्तित्व तो खारिज नहीं किया जाता, मगर नई-नई कोशिशें दिख रही हैं. डिजनी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही भूत पुलिस उन्हीं कोशिशों का नया ताजा नतीजा है. भूतों को मानने और उन्हें खारिज करने के सिद्धांत को हलके फुल्के कॉमिक अंदाज में दिखाने की कोशिश हुई है. सीधे-सीधे कहें तो भूत पुलिस में यही स्थापना है कि भूतों का अस्तित्व है, मगर इन्हें लेकर गोरखधंधा ज्यादा है और बहुत सारी प्रचलित कहानियों के पीछे झूठ और पाखंड है.

भूत पुलिस दो युवा तांत्रिक भाइयों की कहानी है जो 'उलट एंड संस' के नाम से तंत्र साधना कर जीविकोपार्जन करते हैं. जिप्सी की तरह रहते हैं. तंत्र साधना उन्हें विरासत में मिली है. पिता उलट बाबा भी मशहूर तांत्रिक थे. उन्होंने तांत्रिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए छोटे बेटे को एक किताब दी है जिसकी भाषा रहस्यमयी है. विभूति (सैफ अली खान) बड़ा भाई है और चिरौंजी (अर्जुन कपूर) छोटा भाई. बड़ा भाई पाखंडी है. आडंबर रचता है और लोगों को मूर्ख बनाता है. भूत प्रेतों में बिलकुल भी भरोसा नहीं करता और लोगों के डर की वजह से तंत्र के जरिए पैसा ऐंठता है. विभूति की तरह और भी पाखंडी तांत्रिक दिखते हैं. जबकि छोटा भाई चिरौंजी रहस्यमयी शक्तियों में भरोसा करता है. पिता की किताब में भी. लेकिन उसे किताब की कूट भाषा पढ़ने की कुंजी नहीं मिली है. वो बार-बार पिता की प्रैक्टिस को ईमानदारी से करने की बातें कहता है. पुलिस इंस्फेक्टर छेंदी लाल (जावेद जाफरी) किसी पुराने सिलसिले में दोनों भाइयों को पकड़ने की कोशिश में लगा पीछा कर रहा है.

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इसी बीच विभूति और चिरौंजी की मुलाक़ात माया (यामी गौतम) और कनिका (जैकलीन फर्नांडीज) से होती है, जिनका चाय का कारोबार भूतों की वजह से बुरी तरह प्रभावित है. मजदूर किचकिंडी की वजह से शाम के बाद काम नहीं करते और पूरा कारोबार उससे ठप होता जा रहा है. कनिका सबकुछ समेटकर विदेश शिफ्ट होने की बातें करती है. माया को भरोसा है कि विभूति और चिरौंजी वैसा ही तांत्रिक उपाय कर सकते हैं जैसा उलट बाबा ने कभी माया के पिता के लिए किया था. वो पिता की लिगेसी को छोड़कर नहीं जाना चाहती. उधर, पिता की किताब को पढ़ने की कुंजी चिरौंजी को मिल चुकी है. लेकिन विभूति चाय फैक्ट्री में आने के बाद एक ऐसी गलती कर बैठता है जिसका समाधान कभी उसके पिता ने किया था. क्या चाय बगान पर सच में भूतों का साया है, चिरौंजी समाधान कर पाता है कि नहीं, भूतों को लेकर विभूति का यकीन बदलता है या नहीं, कनक क्यों सबकुछ बेंचकर विदेश जाना चाहती है और छेंदी लाल दोनों भाइयों का पीछा क्यों कर रहा है इसे जानने के लिए फिल्म देखना चाहिए. अब्राहम लिंकन का एक नोट भी है जिसे फिल्म के जरिए ही समझना बेहतर होगा.

भूत पुलिस के बुनावट की बात करें तो यह फिल्म लॉजिक्स के लिए बिल्कुल नहीं है. मनोरंजन के लिए बनी है और इसी लिहाज से अर्थपूर्ण है. हॉरर और कॉमेडी के फ़ॉर्मूले पुराने ही हैं बावजूद भूत पुलिस में एक ताजगी का अनुभव किया जा सकता है. भूत पुलिस के तांत्रिक डरावनी शक्लों वाले नहीं, काफी आधुनिक दिखते हैं. जिंस-जैकेट पहनते हैं, अंग्रेजी बोलते हैं और उनके पास मोडिफाइड ट्रैवल कार भी है. संवादों में भरपूर जोक और पंच हैं. देखने सुनने में अच्छे लगते हैं. भूत पुलिस में खूब चकाचौंध और रोशनी है. जहां हॉरर जरूरी था वहां वह परंपरागत रूप में ही दिखता है. चिल्लम पो और हॉरर के नाम पर बहुत ड्रामेबाजी नहीं है जैसा कि दूसरी फिल्मों में दिखता है. थ्रिल भी अनुपात के मुताबिक़ ठीक है. कुल मिलाकर निर्देशक पवन कृपलानी ने हॉरर और कॉमेडी को संतुलन के साथ अच्छा इस्तेमाल किया है. फिल्म के बारे में अनुमान लगाना आसान है, बावजूद ऐसे क्षण नहीं आते जब फिल्म बोर करे. अंत तक बांधे रखती है. भूत पुलिस का यही पक्ष सबसे ज्यादा ख़ूबसूरत है.

सैफ अली खान, अर्जुन कपूर, यामी गौतम और जैकलीन ने मुख्य भूमिकाओं में हैं और काम भी ठीक किया है. लेकिन ऐसा कहा जाए कि किसी कलाकार ने आउटस्टैंडिंग या फिल्म के लिए कुछ अलग तैयारी की है तो वो नहीं दिखता. खासकर सैफ अली खान. सैफ का अभिनय और कॉमिक टाइमिंग में पुरानी झलक मिलती है. भूत पुलिस में सैफ का कॉमिक अंदाज वैसा ही है जैसे अब तक कई फिल्मों में फ्लर्टबाज और 'निर्दोष पाखंडी' के रूप में वे नजर आ चुके हैं. अच्छी बात यह है कि उनका फनी अंदाज बोर नहीं करता. इसलिए भी कि यहां बहुत लॉजिक खोजने की गुंजाइश ही नहीं है. सपोर्टिंग कास्ट में राजपाल यादव, गिरीश कुलकर्णी, जेमी लीवर, अमित मिस्त्री ने भी छोटी भूमिका में बढ़िया काम किया है. अमित का निधन हो चुका है. संभवत: ये उनकी आख़िरी फिल्म है.

भूत पुलिस में गाने साने हैं नहीं. एक गाना था जो फिल्म एन नहीं दिखा. वैसे भी आजकल फिल्मों में गाने होते ही नहीं या बहुत कम इस्तेमाल किए जा रहे हैं. यह भी कि सिनेमा के बदलाव वाले दौर में अब गानों की बहुत अहमियत भी नहीं दिखती.

मनोरंजन के लिहाज से भूत पुलिस अच्छी च्वाइस हो सकती है. देखना चाहिए.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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