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Updated: 23 जुलाई, 2015 06:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अमिताभ को लेकर एक खबर आई. फिर, अमिताभ का खंडन भी आ गया. लेकिन मामला रफा दफा भी नहीं हो पाया - ऊपर से नई बहस छिड़ गई.

क्या अमिताभ बच्चन सच बोल रहे हैं? क्या अमिताभ वाकई सच बोल रहे हैं? कहीं वो झूठ तो नहीं बोल रहे?

खबर

सियासी आरोप-प्रत्यारोपों के बीच खबर आई कि किसान चैनल (डीडी किसान) को प्रमोट करने के लिए अमिताभ को 6.31 करोड़ रुपये दिए गए, जबकि इस चैनल का बजट ही कुल 47 करोड़ रुपये है.

मामले को उछालते हुए कांग्रेस ने सवाल खड़े किए कि प्रचार के लिए अमिताभ को इतनी बड़ी रकम देने का कोई मतलब नहीं है. बात उसी किसान चैनल की है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मई को उद्घाटन किया था.

खंडन

विवादों में अमिताभ बच्चन का नाम उछला तो बिग बी खुद ही कूद पड़े और बड़े ही औपचारिक अंदाज में सफाई दी. मीडिया को उनके ऑफिशियल स्टेटमेंट की कॉपी भिजवाई गई.

"मैंने डीडी किसान के प्रचार के लिए विज्ञापन एजेंसी लोवे लिंटास के साथ काम किया है और उनके साथ भी मैंने कोई करार नहीं किया है और न ही मुझे उसके लिए पैसे मिले हैं. इस प्रचार के लिए कई दिन पहले ही मैंने खुद जरूरी संवाद रिकॉर्ड करके भेज दिए थे. मैं कई मुद्दों पर बिना मेहनताने के कार्य करता हूं और डीडी किसान चैनल भी उनमें से एक है. अगर इस संदर्भ में किसी के पास कोई भी सबूत हो तो कृपया मुझसे इस बात की जांच जरूर कराएं."

एरर ऑफ जजमेंट

'बोल बच्चन' को लेकर फैंस का ये इससे पहले शायद ही कभी दिखा हो. क्या सिर्फ इसलिए कि अमिताभ बच्चन बोल पड़े?

मालूम नहीं अमिताभ को किसने ये सलाह दे डाली? या फिर खुद उन्हीं का ये फैसला था? जो भी हो. कई बार 'एरर ऑफ जजमेंट' भी हो जाता है.

अगर अमिताभ इस मुद्दे पर खामोश रह जाते तो क्या फर्क पड़ता? क्या लोग ये समझते कि अमिताभ काम करने के पैसे भी लेते हैं?

अमिताभ बच्चन पैसे लेते हैं तो लेते हैं. डंके की चोट पर कह सकते हैं कि पैसे लेते हैं. अब इसमें नैतिकता की बात कहां से आ जाती है? लोग ऐसा क्यों सोचते है कि अमिताभ बच्चन 'फोकट' में काम करेंगे! मामला न तो मैगी का है, न ही दो बूंद जिंदगी का या फिर. हां, 'कुछ दिन तो गुजारिए...' और '...क्योंकि जुर्म यहां कम है' को तौलने का वो पैमाना कतई नहीं हो सकता.

फर्ज कीजिए, अमिताभ बगैर शत्रुघ्न सिन्हा की आवाज़ सुने, यूं ही 'खामोश' रह जाते. तो क्या मुसीबत आ जाती?

कुछ नहीं होता. अगर अमिताभ बस 'भारी' बने रहते. कम से कम वैसी फजीहत तो नहीं होती.

अरे भई, जवाब तो उन्हें देने पड़ते जिन्होंने पेमेंट किया या फिर करने की बात की या डील की या डील कराई या बात बढ़ाई या बात पक्की कराई या...

"बड़े बड़े लोगों से भी छोटी छोटी गलतियां हो जाती हैं... डोन्ट माइंड सैनोरिटा, प्लीज."

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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