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Updated: 07 मई, 2023 06:30 PM
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अफवाह बिजली से भी तेज गति से फैलता है. सोशल मीडिया के दौर अफवाहों का बाजार बहुत गरम होता है. फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए बड़ी संख्या में सूचनाएं आदान-प्रदान की जाती हैं, लेकिन उननमें कौन सच हैं और कौन नहीं, ये बिना जाने लोग उन सूचनाओं को आगे प्रेषित करते रहते हैं. यही वजह है कि झूठ तेजी से फैलाता है. यही झूठ अफवाह की शक्ल में हिंसा को जन्म देता है. सुधीर मिश्रा के निर्देशन में बनी फिल्म 'अफवाह' इसी विषय पर आधारित है. सुधीर एक जाने माने फिल्म मेकर हैं. उनको 'सीरियस मेन', 'इंकार', 'चमेली', 'अर्जुन पंडित', 'धारावी', 'खामोश' और 'जाने भी दो यारों' जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. फिल्म के प्रोड्यूसर अनुभव सिन्हा हैं. उनके फिल्मों की च्वाइस जुदा होती है. 'भीड़', 'थप्पड़', 'आर्टिकल 15', 'मुल्क' और 'गुलाब गैंग' जैसी फिल्मों के जरिए उनकी प्रकृति समझी जा सकती है.

फिल्म 'अफवाह' में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, भूमि पेडनेकर, सुमित व्यास, सुमित कौल, शारिब हाशमी, टी जे भानु, रॉकी रैना और ईशा चोपड़ा अहम भूमिका में हैं. इसमें नवाज ने एक एडवरटाइजिंग प्रोफेशनल, भूमि ने एक राजनीतिक दल के बड़े नेता की बेटी, सुमित ने राजनेता और शारिब हाशमी ने पुलिस अफसर का किरदार किया है. इस फिल्म की कहानी सुधीर मिश्र ने लिखी है, जबकि पटकथा और संवाद निसर्ग मेहता, शिव शंकर बाजपेयी और अपूर्वाधर बड़गैयां के हैं. फिल्म 'अफवाह' को सोशल मीडिया पर लोग जमकर तारीफ कर रहे हैं. इसे अच्छी और जरूरी फिल्म बता रहे हैं. लेकिन सुदीप्तो सेन की फिल्म 'द केरल स्टोरी' के शोर में ये फिल्म दब गई है. हर तरह 'द केरल स्टोरी' की चर्चा हो रही है. यही वजह है कि लोग इस फिल्म के बारे में बहुत कम बात कर रहे हैं. हालांकि, दर्शकों और फिल्म समीक्षकों की तरफ इसे देखने योग्य फिल्म करार दिया गया है.

650_050623090305.jpgसुधीर मिश्रा के निर्देशन में बनी फिल्म 'अफवाह' रिलीज हो चुकी है.

सोशल मीडिया पर लोग इस फिल्म के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं. एक यूजर नम्रत जोशी ने ट्विटर पर लिखा है, ''गुड मॉर्निंग, आज शुक्रवार है. जाइए और सिनेमाघरों में सुधीर मिश्रा की फिल्म अफवाह लगी है, उसे देखिए. इसे देखने के दौरान आप अच्छे इंसान की परिभाषा के बारे में जरूर सोचेंगे.'' प्रतीक ने लिखा है, ''सुधीर मिश्रा जी को इस फिल्म के बहुत बहुत धन्यवाद. फिल्म के आखिरी 20 मिनट बहुत ही रोमांचक हैं. यदि आपने अभी-अभी मैनीक्योर करवाया है तो कृपया यह फिल्म न देखें. बाकी सभी के लिए, बहुत जरूरी फिल्म. बहुत बढिया फिल्म है.'' राधिका लिखती हैं, ''फिल्म अफवाह को जरूर देखें. यह हमारे समय के जटिल आतंक को बिना उपदेशात्मक हुए बहुत सहजता से व्यक्त करता है. यही इसकी खूबी है. मनोरंजक कथानक, महान लेखन और अभिनय. निर्देशक सुधीर मिश्रा में भारतीय राजनीति की वास्तविकता को पकड़ने की क्षमता बेजोड़ है.''

फिल्म समीक्षक रेखा खान ने लिखा है, ''फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा सुस्त है, लेकिन सेकंड हाफ में कहानी सरपट दौड़ती है. घटनाक्रम को थ्रिलर अंदाज में दर्शाना सुधीर मिश्रा की खासियत रही है. फेक न्यूज के साथ फिल्म पितृसत्ताक सोच, यौन शोषण, सांप्रदायिकता जैसे मुद्दों को भी मुखर करती है. फिल्म का क्लाइमैक्स प्रिडिक्टेबल लगता है, लेकिन राहत देता है. सिनेमेटोग्राफर मोरसियो विडाल ने रात की भयावहता और राजस्थान को बखूबी दर्शाया है. परफॉर्मेंस के मामले में फिल्म के सारे कलाकार उत्कृष्ट हैं. नवाज अपनी खूबसूरत अदाकारी से दिल जीत लेते हैं, तो वहीं निवी के रूप में भूमि का किरदार काफी परतदार है. चंदन के रूप में शारिब हाशमी कमाल करते नजर आते हैं. वे लगातार पायदान चढ़ते जा रहे हैं. सुमित व्यास को अब तक स्वीट और जेंटलमैन भूमिकाओं में देखने के आदी दर्शक उन्हें एक क्रूर, सत्ता के भूखे और मर्दवादी सोच रखने वाले किरदार में देख पाएंगे. यौन शोषण की शिकार पुलिसवाली के किरदार को टी भानु ने यादगार अंदाज में जिया है. फेक न्यूज की असल सच्चाई को जानने के लिए ये फिल्म जरूर देखें.''

वरिष्ठ फिल्म पत्रकार पंकज शुक्ला अपनी समीक्षा में लिखते हैं, ''अफवाह मोबाइल के खतरनाक इस्तेमाल पर केंद्रित फिल्म है. सुधीर मिश्रा की फिल्म इस रात की सुबह नहीं की ही तरह इसकी कहानी भी अधिकतर एक रात में ही घटती है. कहानी का मूल आधार भी कुछ कुछ वैसा ही है कि कॉरपोरेट दुनिया का एक शख्स अनजाने में हुई एक हरकत के चलते अपराध की दुनिया के लोगों के निशाने पर आ जाता है. फिल्म के हीरो नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं. उनका किरदार एक मनगढंत कहानी अपनी मंचीय प्रस्तुतियों में सुनाता रहता है. लेकिन, यह किरदार असल में क्या है, उसकी बातों में सच्चाई कितनी है और भीतर से वह कितना मजबूत है, ये सब सुधीर मिश्रा फिल्म के आधे हिस्से में गढ़ने की कोशिश करते हैं. तकनीकी रूप से फिल्म बहुत कमाल की नहीं है. मॉरीसियो विदल ने राजस्थान को बहुत ही औसत तरीके से पेश कर दिया है. अतानु मुखर्जी का संपादन फिल्म की गति बनाए रखने की कोशिश में कामयाब है. लेकिन, समीर टंडन और डॉ. सागर ने मिलकर फिल्म में जो कुछ मर्मस्पर्शी रचने की कोशिश की है उसका असर उभरकर सामने नहीं आता है.''

फिल्म पत्ररकार मुबारक ने लिखा है, ''फिल्म शुरू-शुरू में काफी धीमी है. एकदम से कनेक्ट नहीं कर पाते. आशंका होती है कि कहीं एक और हार्टलेस सोशल कमेंट्री न बनकर रह जाए. लेकिन इंटरवल आते-आते चीज़ें पटरी पर लौटने लगती हैं. अपनी सेंट्रल थीम पर चलते हुए फिल्म और भी ज़रूरी मुद्दों पर बात करती रहती है. पैट्रियार्की, सांप्रदायिकता, वर्क प्लेस में यौन शोषण, फेक न्यूज़. फेक न्यूज़ फैलाने का तंत्र कितने ऑर्गनाइज्ड ढंग से काम करता है ये देखकर दहशत होती है. आप चाहकर भी इसके शिकंजे से बच नहीं सकते. फिल्म में लव जिहाद से लेकर गोतस्करी जैसे तमाम मुद्दों पर बेबाक टिप्पणियां हैं. फिल्म ये तो बताती है ही कि जनता को ट्रिगर करना कितना आसान है. साथ ही ये भी बताती है कि ऐसे ट्रिगर की गई जनता को कंट्रोल करना अक्सर काबू से बाहर की चीज़ हो जाती है. भड़काया गया समूह कभी भी उस भस्मासुर में तब्दील हो सकता है, जो खुद आपको लील जाए. जिनकी आंखों पर नफरत की पट्टी बंधी हो, वो अपने रचयिताओं को भी नहीं बख्शते. उन्हें भी मिटाने से पीछे नहीं हटते. इस पॉइंट को ये फिल्म पुरज़ोर ढंग से एस्टैब्लिश करने में सफल होती है. इस फिल्म की ये सबसे बड़ी कामयाबी है. अफवाह महज़ एक थ्रिलर फिल्म नहीं, बल्कि एक वेक अप कॉल भी है. सबको अटेंड करनी चाहिए. देख डालिए.''

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