सियासत | 7-मिनट में पढ़ें
समाज | 4-मिनट में पढ़ें

क्यों समाज महिलाओं को हर समय बेहद खास बनाने पर तुला है?
समाज आज यह बताने में व्यस्त है कि महिलाएं बहुत ख़ास हैं और हमारी लड़ाई ही इसी बात की है कि हमें ख़ास नहीं बनना, सामान्य बनना है. इतना सामान्य कि हम कुछ हासिल कर लें तो मोटिवेशन के नाम पर तालियां न पीटी जाएं. इतना सामान्य कि आप हमारे लिये कुछ करके यह न गाते फिरें कि हमने अपनी बेटी के लिये ऐसा किया. इतना सामान्य कि हम अपने निर्णयों को आख़िरी मानना सीख लें और समाज का मुंह न ताकें जो हमें ट्युटोरियल दे.
सियासत | बड़ा आर्टिकल

भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की अभी और जरुरत है
निश्चय ही राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से महिला एवं पुरुष दोनों के विकास का एक नया दौर शुरू हुआ है. और इसके परिणाम बेहतर ही होंगे किंतु यह तभी संभव होगा जब एक ओर पुरुष वर्ग व्यापक सामाजिक-राजनीतिक हित में महिला सहभागिता पर गंभीर हो तथा दूसरी ओर देश की महिलाएं अपने राजनीतिक अधिकारों की समता के लिए पुरज़ोर संघर्ष करें.
स्पोर्ट्स | 5-मिनट में पढ़ें

आखिर परायापन क्यों झेल रही हैं महिला एथलीट?
भारतीय महिला एथलीट्स को अभी लंबा सफर तय करना है. महिला एथलिटों को देश-दुनिया की लड़कियों के लिए मिसाल ही नहीं बनना है, महिला एथलिटों को लेकर पुरुषवादी मानसिकताओं के द्वन्द को भी तोड़ना है. कुल मिलाकर अपने घर के आंगन से निकलीं और मैदान मार लेने वाली महिला एथलिटों के पक्ष में खड़ा होने की जरूरत है.
सियासत | 2-मिनट में पढ़ें

गणतंत्र दिवस की झांकियां बदलते हुए भारत की फिल्म का ट्रेलर थीं
74वां गणतंत्र दिवस कई मायनों में यादगार रहा. परेड जहां पहली बार राजपथ के बजाए कर्तव्य पथ पर हुई. तो वहीं इस बार परेड में महिलाओं और अग्निवीरों का बोलबाला रहा. इसके अलावा राज्यों की झांकियों में भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत का प्रभाव रहा.
सिनेमा | 6-मिनट में पढ़ें

Doctor G की तरह बॉलीवुड की ये फिल्में भी समाज की धारणा के विपरीत लेकिन मनोरंजक हैं!
हिंदी सिनेमा ने अक्सर सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने का काम किया है. हमारे समाज में कई तरह की गलत अवधारणाएं हैं, जो हमें अंदर से खोखला किए जा रहे हैं. समय समय पर सिनेमा के माध्यम से फिल्मकारों ने इन पर पर प्रकाश डालते हुए लोगों को आगाह किया है. आइए इन फिल्मों के बारे में जानते हैं.
सिनेमा | 5-मिनट में पढ़ें

जहां चार यार की 'पिटाई' से सबक लेकर खुद को 'सोशल मीडिया एक्टर' घोषित कर ही दें स्वरा भास्कर!
जहां चार यार के बॉक्स ऑफिस पर पीटने के बाद कह सकते हैं कि, अब वो वक़्त आ गया है जब स्वरा को खुद को सोशल मीडिया एक्टर घोषित कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां चार यार की असफलता ने साबित कर दिया है कि एक्टिविज्म तक तो ठीक है लेकिन एक्टिंगऔर एक्टिंग के दम पर फिल्म को हिट कराना स्वरा के बस की बात नहीं है.
सिनेमा | 6-मिनट में पढ़ें
