बदला लेने की रेस में पुरुष ही नहीं महिलाएं भी
क्रोध और प्रतिशोध इस हद तक बढ़ गया कि महिला अपने प्रेमी को सिर्फ मारना ही नहीं बल्कि उसे एक दर्दनाक मौत देना चाहती थी.
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एक आंकड़े के अनुसार पूरी दुनिया में हत्या की शिकार हुई महिलाओं में 40% महिलाएं अपने पति या प्रेमी द्वारा मारी जाती हैं, वहीं पुरुषों के संदर्भ में ये आंकड़ा केवल 6% ही है. इस आंकड़े के कारण ही ये खबर अहम हो जाती है...
अब तक आपने सुना होगा कि प्यार करने वाले इश्क में जान दे देते हैं, लेकिन समय के साथ साथ ये कहावत भी बदलती नजर आ रही है क्योंकि आजकल इश्क में जान दी नहीं, ली भी जाने लगी है. फिर भी हैरानी तब होती है जब जान लेने वाली कोई महिला हो. हालिया मामला है पलवल का. यहां एक बेवफा आशिक से बदला लेने के लिए एक महिला ने उसे बम से उड़ाने की साजिश रच डाली. इतना ही नहीं बम का टेस्ट करने के लिए यूपी में इसे फोड़ा भी और लड़के के एक वृद्ध रिश्तेदार की हत्या भी की.
वृद्ध रिश्तेदार की हत्या के आरोप में पकड़ी गई 35 साल की आरती और उसके साथी से जब पूछताछ की जा रही थी तब उसने बताया कि उसने अपने बेवफा प्रेमी को खत्म करने के लिए अपने साथी की मदद से तीन देसी टाइमर बम बनाए हैं और उसे शमशाबाद के एक मकान में छिपाया है. ये सुनते ही पुलिस तुरंत हरकत में आई और बम निरोधक दस्ते की मदद से बम को डिफ्यूज कराया गया.
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बम निरोधक दस्ते की मदद से डिफ्यूज कराए गए तीनों बम |
आरती का प्रेमी राकेश पहले से शादी शुदा था और उसके तीन बच्चे थे. लेकिन 2010 से वो सबको छोड़कर आरती के साथ रहने लगा. 6 साल के बाद राकेश के दूर के रिश्तेदार बाबूलाल(65) के समझाने पर राकेश आरती को छोड़कर अपने बीवी बच्चों के पास चला गया. आरती ने सबसे पहले बाबूलाल से बदला लिया. 2 अक्टूबर को गला रेतकर उसकी हत्या की और फिर राकेश को मारने की साजिश रचने लगी. लेकिन पकड़ी गई और एक बड़ी घटना होने से बच गई.
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इस मामले में क्रोध और प्रतिशोध हद से इतना बढ़ गया कि महिला अपने प्रेमी को सिर्फ मारना ही नहीं बल्कि उसे एक दर्दनाक मौत देना चाहती थी. शायद समय के साथ-साथ प्रेम की परिभाषाएं भी बदल रही हैं, जहां प्रेम में त्याग नहीं बल्कि प्रेमी से बदला लेना महत्वपूर्ण होता जा रहा है. खैर इस मामले में तो ये प्रेम ही अनुचित था, तो फिर इसके परिणाम उचित कैसे होते.
ऐसा कम ही होता है कि महिलाएं अपने पति या प्रेमी की हत्या करें. लेकिन क्या अब ये चिंता वाली बात नहीं है कि ऐसी घटनाएं अब आए-दिन सुनने मिल रही है. क्या ये सही समय नहीं कि समाज इसपर सोेचे. पर समाज इस विषय में सोचेगा इसपर संदेह है, क्योंकि बदला लेने के लिए महिलाओं के पीछे पड़े पुरुषों पर आज तक समाज गंभीर नहीं हुआ, ऐसे मानसिक बीमारों को आज तक एक नाम नहीं दे पाया समाज, तो फिर महिलाओं का प्रतिशत को उनके मुकाबले बहुत थोड़ा है...जरा सोचिए.
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