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Updated: 24 फरवरी, 2018 11:58 AM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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हमारे देश में ट्रांसजेंडर लोगों की क्या हालत है इसके बारे में शायद किसी को बताने की जरूरत नहीं. लोग उन्हें कैसी निगाहों से देखते हैं, कैसे उनसे टोटकों के लिए सिक्का लेना, नजर उतारना आदि के लिए तो ठीक, लेकिन अगर उन्हें समाज में एक सही दर्जा देने की बात कहें तो वो नहीं होता. कोई ये नहीं चाहता कि किन्नर उनके घर के आस-पास रहें, पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करने की बात करें तो वहां भी यही संकीर्ण सोच घेरे रहती है.

ट्रांसजेंडर लोग महिलाओं के टॉयलेट में जाएं या फिर पुरुषों के टॉयलेट में ? ये सवाल सिर्फ आम लोगों को परेशान करता है बल्कि आम लोग ये भी चाहते हैं कि उनके पब्लिक टॉयलेट में ऐसा कोई न ही आए. अगर गलती से कोई ट्रांसजेंडर अपनी सुविधा के हिसाब से आ भी जाता है तो उसे ताने, नफरत, शोषण जैसी चीजों का सामना करना पड़ सकता है. 

ट्रांसजेंडर, किन्नर, टॉयलेट, सोशल मीडिया

किसी ट्रांसजेंडर को इससे कितनी तकलीफ होती होगी इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. जरा सोचिए उनके लिए पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करना कितना मुश्किल होगा. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ही ये आदेश दे दिए थे कि ट्रांसजेंडर के लिए अलग से पब्लिक टॉयलेट बनाया जाए. पहले मैसूर फिर भोपाल में ये बन चुका है जहां साफ तौर पर 'थर्ड जेंडर के लिए' लिखा होता है. अब नागपुर में भी ये बन रहा है. नागपुर में दो अलग-अलग इलाकों में ये बनाया जाएगा और देखा जाएगा कि आखिर वाकई ट्रांसजेंडर को इससे फायदा हुआ या नहीं.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये टॉयलेट आम पब्लिक टॉयलेट से अलग होंगे. इसमें साफ तौर पर तीसरी पंक्ति लिखा होगा. भोपाल में किन्नरों के लिए बने टॉयलेट में वॉशरूम, मेकअप रूम भी होगा.

जेंडर न्यूट्रल नहीं अलग शौचालय क्यों?

दुनिया भर में अब जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट का प्रचलन बढ़ गया है. ओबामा शासन के समय जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट की बात उठी थी जहां राष्ट्रपति ने ये आदेश दिया था कि ट्रांसजेंडर लोग अपने हिसाब से टॉयलेट (लड़कियों या लड़कों) का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इस फैसले को ही 14 राज्यों में कानूनी चुनौती मिली थी.

ट्रांसजेंडर, किन्नर, टॉयलेट, सोशल मीडिया

यकीनन जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट जिसे कोई भी इस्तेमाल कर सके ऐसे शौचालयों का प्रचलन बढ़ा है, लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय अपने लिए अलग टॉयलेट की मांग करता है. कारण? इसका कारण बहुत सीधा सा है.. वही पुराना और घिसापिटा कारण.. ट्रांसजेंडरों को आम शौचालयों में शोषण और नफरत का सामना करना पड़ता है.

यही वजह है कि किन्नरों का अलग से पब्लिक टॉयलेट बनाया जा रहा है. यही वजह है कि बहुत से एनजीओ अब इस मुद्दे को लेकर काम कर रहे हैं. लोग ये समझते ही नहीं या यूं कहें कि समझना चाहते ही नहीं कि ट्रांसजेंडर भी इंसान हैं. आलम ये है कि इसी धरती पर पैदा होने के बावजूद, हमारे देश के नागरिक होने के बावजूद उन्हें ऐसे परेशान होना पड़ रहा है. उन्हें इस कदर परेशान किया जाता है कि जैसे वो इंसान ही न हों, वो कोई बीमारी हों, लेकिन कौन समझाए इस समाज को जो अपने से अलग हर व्यक्ति को किसी बीमारी की तरह ही समझता है. कौन समझाए इस समाज को कि वो भी नैचुरल ही हैं. खैर, कम से कम भारत में कोई पहल तो हो रही है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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