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Updated: 16 अक्टूबर, 2016 05:07 PM
आदर्श तिवारी
आदर्श तिवारी
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सांस्कृतिक नगरी वाराणसी में जय गुरुदेव के उत्तराधिकारी पंकज महाराज द्वारा शाकाहार के समर्थन में आयोजित हुई रैली में भगदड़ होने से लगभग 24 लोग काल के गाल में समा चुके हैं और सौ से अधिक लोग घायल है. यह हादसा तब हुआ जब श्रद्धालु बड़ी संख्या में राजघाट पुल से गुज़र रहे थे. पुल टूटने को लेकर फैली अफवाह से लोग इधर–उधर भागने लगे और यह हादसा हो गया.

दरअसल, इस हादसे के कई पहलू हैं पहला सवाल तो आयोजकों पर खड़ा होता है कि जब अनुमति महज तीन हजार लोगों की शमिल होने की ली गई थी तो लाखों की संख्या में लोग कैसे आ गये? दूसरा सवाल अगर आयोजकों को लगा कि अनुमति से ज्यादा संख्या में श्रध्दालु पहुँच रहें हैं तो इसकी सूचना प्रशासन को क्यों नहीं दी गई?

इस सवाल को केंद्र में रखकर सोचें तो स्थिति साफ स्पष्ट होती है कि इस हादसे में प्रशासन से कहीं ज्यादा आयोजक दोषी हैं. प्रशासन के ऊपर सवाल ये खड़ा होता है कि अनुमति से ज्यादा लोग उपस्थित थे तो प्रशासन मूकदर्शक बना तमाशा क्यों देखता रहा?

हादसे के बाद जो हमारे हुक्मरानों की हर हादसों के बाद रवायत रही है उसे पूरा कर लिया गया है. कमेटी गठित हो गई, केंद्र और राज्य सरकार अपने-अपने अनुसार मृतकों के परिजनों व घायलों को मुआवजा देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर चुकी हैं. सवाल है कि इस त्रासदी का दोषी कौन है ? इस घटना को सुनकर हर शख्स विचलित हो उठा. ये पहला मौका नहीं है, जब इस प्रकार का विभत्स हादसा हुआ हो. देश में हर साल कोई न कोई बड़ा हादसा होता है. लेकिन इसे रोकने की कोई ठोस नीति सरकारों के पास नहीं है.

एक बात तो साफ है कि सरकार तथा प्रशासन ने पिछली घटनाओं से सबक लेना उचित नहीं समझा. अगर सरकार ने कुछ भी सबक लिया होता तो इस प्रकार की दर्दनाक घटना से बचा जा सकता था. गौरतलब है कि इस शोभायात्रा में देश के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी तादाद में श्रद्धालु आये थे. जिसके मद्देनजर प्रशासन तथा आयोजकों को सुरक्षा के व्यापक इंतजाम के साथ भीड़ नियंत्रण को लेकर ठोस योजना बनाने की जरूरत थी. लेकिन इस मसले पर दोनों पूरी तरह विफल रहें हैं.

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 वाराणसी में भगदड़ के बाद की एक तस्वीर

एक के बाद एक हो रहे हादसे सैकड़ों परिवारों को ऐसे घाव दे जाते हैं, जो आजीवन उन्हें दर्द देते रहते हैं. ऐसी घटनाओं में कोई अपना बेटा, कोई अपना पिता, कोई अपनी मां तो कोई अपने पति को खो देता है. किंतु सरकारें और प्रशासन कुछ मुआवजे का मरहम लगाकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाती हैं.

बहरहाल, अगर हम भगदड़ के कारणों की बात करें तो कई बातें सामने आती हैं. प्रथम दृष्टया आयोजकों का प्रशासन के बीच भीड़ नियंत्रण की कोई बड़ी योजना नहीं होती अगर होती भी है तो, उसे अमल नहीं किया जाता. साथ ही आयोजकों और प्रशासन के दरमियान बेहतर तालमेल नहीं होता है और इसका खामियाजा वहां आए लोगों को भुगतना पड़ता है.

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दूसरा सबसे बड़ा कारण ये है कि श्रद्धालु बहुत ज्यादा उतावले हो जाते हैं और अपना आपा खो देते हैं. श्रद्धालुओं की इस लापरवाही को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है. खैर, इस प्रकार के हादसों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र तथा राज्य सरकारों को कई मर्तबा फटकार लगाई है कि ऐसे हादसों से निपटने के लिए देशव्यापी समान नीति बनाई जाएं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फटकार के बाद भी सरकारें मूकदर्शक बनकर अगले हादसे का इंतजार करती हैं.

इसके अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के दिशानिर्देशों पर गौर करें तो प्रबंधन ने भी भीड़ नियंत्रण के लिए कई बातों का व्यापक स्तर पर जिक्र किया है. मसलन, आपात निकासी निर्बाध हो लेकिन आपात स्थिति में काम आएं, पर्याप्त अग्निशामक की व्यवस्था हो तथा आपात स्थिति में चिकित्सा की सुविधाओं के पर्याप्त इंतजाम हों. इस तरह आपात प्रबंधन के सुझावों को भी ध्यान में रखकर प्रशासन काम करें तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है. लेकिन सरकार तथा प्रशासन इन सब हिदायतों को नजरअंदाज करते हैं और नतीजा सामने है.

ऐसे हादसों से न केवल लोगों के मन में खौफ पैदा हो जाता है, उनकी आस्था पर चोट पहुंचती है. इस खौफ को दूर करने का जिम्मा भी प्रशासन और शासन का है ताकि जनता में भीड़ का भय समाप्त हो सके और उनकी आस्था भी बनी रहे.

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लेखक

आदर्श तिवारी आदर्श तिवारी @adarsh.tiwari.1023

राजनीतिक विश्लेषक, पॉलिटिकल कंसल्टेंट. देश के विभिन्न अख़बारों में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर नियमित लेखन

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