New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 15 सितम्बर, 2018 11:35 AM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

उत्तर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर यानी योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर से कई विवाद जुड़े हुए हैं. अगर बीआरडी मेडिकल कॉलेज वाले विवाद को छोड़ भी दिया जाए तो भी 2007 गोरखपुर हिंसा के दाग अभी भी योगी आदित्यनाथ पर लगे ही हुए हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ केस की सुनवाई फिर शुरू करने का आदेश दिया है. ये सब हुआ है सिर्फ एक बुजुर्ग के कारण. वो बुजुर्ग हैं राशिद खान. 90 साल के राशिद खान ही हैं जो सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट और अब योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए हैं.

एक दशक से लड़ रहे हैं लड़ाई..

राशिद खान योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपनी अपील लेकर पहले जिला अदालत में गए थे. वहां राशिद खान की अपील खारिज हो गई थी. फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस अपील के खिलाफ ही फैसला सुनाया गया था. अलाहबाद हाईकोर्ट ने राशिद खान की याचिका खारिज की थी और योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत दी थी.

योगी आदित्यनाथ, गोरखपुर, हिंसा, राशिद खान90 साल के राशिद सेशन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक योगी आदित्यनाथ के खिलाफ याचिका दायर कर चुके हैं

पर राशिद खान के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि शायद उन्हें इंसाफ मिलेगा. दरअसल, राशिद खान को इस बात से आपत्ती है कि योगी आदित्यनाथ ने 27 जनवरी 2007 को भड़काऊ भाषण दिया था. यही कारण है कि हिंदू भीड़ ने सैयद मिर हसन कादरी दरगाह पर हमला कर दिया था. राशिद खान उसी दरगाह के केयरटेकर हैं और अब आंशिक रूप से उन्हें लकवा लग चुका है.

क्यों योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार मानते हैं राशिद?

कथित तौर पर योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर हिंसा से नाता है. और योगी आदित्यनाथ पर इल्जाम है कि वो उस दौर में लगे कर्फ्यू को न मानते हुए भाषण दे रहे थे और उन्हें गिरफ्तार किया गया था. उस दौरान वो गोरखनाथ मंदिर के महंत के रूप में थे. भीड़ ने इसी का विरोध किया था और हिंसा भड़की थी. उस हिंसा में मुसल्मानों का बहुत नुकसान हुआ था. कई दुकाने लूटी गईं थीं, कई जलाई गईं थीं और ये सब पुलिस स्टेशन के सामने से शुरू हुआ था. राशिद का मानना है कि इस सबके लिए योगी आदित्यनाथ जिम्मेदार हैं. उस दौर में कुरान जलाई गई थी और इसीलिए राशिद खान अपने धर्म के लिए इस लंबी कानूनी लड़ाई को लड़ रहे हैं. 12 साल की उम्र से जिस राशिद ने दरगाह की रखवाली की थी उसी के भीतर एक पीपल के पेड़ के पीछे उन्हें छुपना पड़ा था. बड़ा दुखद रहा होगा वो दृश्य जब उनके सामने कुरान को आग लगाई गई थी. दरगाह की चादरों को भी जला दिया गया था.

2007 की उस जनवरी में हिंसा दो दिन तक चली थी और कई लोगों के साथ योगी आदित्यनाथ पर भीड़ को उकसाने, धार्मिक जगह पर हिंसा फैलाने और दो गुटों के बीच नफरत फैलाने का आरोप था.

फरवरी में अलाहबाद कोर्ट के फैसले ने राशिद खान का दिल जरूर तोड़ दिया था, लेकिन उनका हौसला नहीं तोड़ा था. यही तो होता है भारत के कानून पर भरोसा रखने वालों का हाल. चाहें लड़ाई जितनी भी लंबी हो हौसले हमेशा बुलंद रहते हैं. गोरखपुर में रहते हुए, एक मुस्लिम होते हुए भी राशिद खान अपने फैसले पर डटे हुए हैं और अपनी जिंदगी का एक लक्ष्य निर्धारित कर चुके हैं. मरते दम तक इंसाफ के लिए लड़ने की कामना करने वाले राशिद खान को लगता है कि उनके जीवित रहने तक दोषी को सज़ा जरूर मिल जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक सवाल भी किया है. सवाल है कि योगी आदित्यनाथ सरकार को क्यों लगता है कि चीफ मिनिस्टर को धार्मिक हिंसा के लिए दोषी नहीं माना जा सकता और क्यों उनके खिलाफ कोई केस नहीं चल सकता.

जब से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है कई जगह की धार्मिक हिंसा के मुकदमें वापस लिए गए हैं. पिछले दिनों खबर आई थी कि 2013 मुजफ्फरनगर दंगों के खिलाफ किए केस भी वापस लिए गए हैं.

पर भारतीय कानून क्या इतना कमजोर है कि कभी किसी ताकतवर इंसान को सज़ा नहीं हो सकती? 2013 में आप की अदालत प्रोग्राम में योगी आदित्यनाथ ने भड़काऊ भाषण देने की बात मान भी ली थी. आधे लोग तो इस कारण से भी अपने केस वापस ले रहे हैं क्योंकि योगी आदित्यनाथ अब पहले से और भी ज्यादा ताकतवर हो गए हैं. लेकिन आखिर 90 साल के इस बुजुर्ग की जिद को कैसे तोड़ा जाए जो इस बात से भी नहीं डरता कि उसे कोई इस कारण नुकसान पहुंचा सकता है.

ये भी पढ़ें-

बंदरों से बचने के लिए हनुमान चालीसा पढ़ने का 'ज्ञान' अपनी नाकामी छुपाने जैसा है !

गौ 'माता' को बहन बनाने वाले मुस्लिम नेता से मिलिए

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय