पतीले में बैठकर और जान हथेली पर लेकर कैसे पढ़ेगा इंडिया?
इन स्कूली बच्चों के कंधों पर न सिर्फ कॉपी-किताबों का बैग होता है, बल्कि एल्युमिनियम के पतीले का बोझ भी होता है. चाहे वो लड़का हो या लड़की, हर किसी को अपनी जान हथेली पर रखकर स्कूल पहुंचना होता है.
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हमारे-आपके लिए पतीलों में सिर्फ खाना पकता होगा, लेकिन इन बच्चों के लिए नदी पार करने का जरिया भी है. इन स्कूली बच्चों के कंधों पर न सिर्फ कॉपी-किताबों का बैग होता है, बल्कि एल्युमिनियम के पतीले का बोझ भी होता है. चाहे वो लड़का हो या लड़की, हर किसी को अपनी जान हथेली पर रखकर स्कूल पहुंचना होता है. कुछ ऐसी ही तस्वीर है असम के बिश्वनाथ जिले के सूतिया गांव की, जो देश की शिक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करने के लिए काफी है. यहां स्कूल जाने के लिए करीब 40 बच्चों को रोजाना एल्युमिनियम के बर्तन में बैठकर नदी पार करनी होती है. नदी पर पुल तो बहुत दूर की बात है, इन बच्चों के पास तो नाव तक नहीं है. पहले आप देखिए ये वीडियो.
#WATCH Students of a primary govt school in Assam's Biswanath district cross the river using aluminium pots to reach their school. pic.twitter.com/qeH5npjaBJ
— ANI (@ANI) September 27, 2018
स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक
इस प्राइमरी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक शिक्षक जे दास हैं, जो बच्चों को नदी पार कराने में उनकी पूरी मदद करते हैं. वह कहते हैं कि बच्चों को इस तरह नदी पार करते देखकर उन्हें भी बच्चों जान की चिंता होती है. उन्होंने बताया कि यहां कोई पुल नहीं है और पहले तो बच्चे केले के पेड़ से बनी नाव के जरिए स्कूल आते थे. शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत को पूरा करने के लिए इतनी जद्दोजहद देखकर ये साफ होता है कि सरकारें आती-जाती रही हैं, लेकिन इस गांव की ओर किसी का ध्यान नहीं गया है. इस गांव को किस कदर नजरअंदाज किया गया है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब तक ये वीडियो वायरल नहीं हुआ था, तब तक यहां के विधायक प्रमोद बोर्थकुर को भी कोई चिंता नहीं थी, लेकिन अब वह शर्मिंदा हैं.
पतीले में बैठकर बच्चों का नदी पार करने का ये वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया है.
वीडियो हुआ वायरल तो विधायक जी को हुई चिंता
पतीले में बैठकर बच्चों का नदी पार करने का ये वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया है. अब इस इलाके के भाजपा विधायक प्रमोद बोर्थकुर का कहना है कि वह ये सब देखकर शर्मिंदा हैं. उन्होंने कहा कि इलाके में पीडब्ल्यूडी की एक भी सड़क नहीं है, मुझे पता नहीं कि सरकार ने इस टापू पर कैसे स्कूल बना दिया है. उन्होंने कहा कि वह जल्द ही बच्चों के लिए नाव की व्यवस्था करेंगे और जिलाधिकारी से बात कर के स्कूल को दूसरी जगह पर शिफ्ट किया जाएगा. विधायक जी ने चिंता भी जता दी और शर्मिंदा भी हो लिए, लेकिन सवाल ये उठता है कि इतने दिनों से वह कहां थे? जब तक ये मामला मीडिया में नहीं आया, वीडियो वायरल नहीं हुई, तब तक उन्होंने स्कूल के बच्चों के लिए नाव देने की क्यों नहीं सोची? मान लेते हैं कि पिछली सरकार नाकारा थी, लेकिन आपने मासूम बच्चों के लिए क्या किया?
शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है और वह उसे मिलनी ही चाहिए, लेकिन किस कीमत पर? क्या शिक्षा पाने के लिए जान गंवा देने के कोई मायने होंगे? सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. जरूरत ये भी सोचने की है कि आखिर ऐसे मामलों पर कार्रवाई तभी क्यों होती है, जब वह मामले मीडिया में आते हैं? इससे तो ये बात साफ होती है कि विधायक अपने ही इलाके में नहीं घूमते. जब विधायक को जनता के बीच आना ही नहीं है, तो उन्होंने किस जनता की सेवा के नाम पर विधायकी का चुनाव लड़ लिया. लोगों ने तो भरोसा कर के जिता दिया, लेकिन जनता की सेवा न कर के विधायक अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हैं. अगर इस तरह से पढ़ेगा इंडिया, तो फिर कैसे बढ़ेगा इंडिया?
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