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Updated: 17 अप्रिल, 2018 08:19 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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अपराधियों को पकड़ने के लिए फॉरेन्सिक डिपार्टमेंट तकनीक का इस्तेमाल किस-किस तरह से कर सकता है, इसका शायद आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. ब्रिटेन में साउथ वेल्स पुलिस ने वाट्सऐप का इस्तेमाल करते हुए एक ड्रग डीलर को पकड़ लिया. लेकिन आपको सुनने में ये जितना आसान लग रहा है, उनता ही अधिक चौंकाने वाला भी है. दरअसल, पुलिस ने वाट्सऐप से इस ड्रग डीलर के फिंगर प्रिंट उठा लिए, जिससे उस ड्रग डीलर की पहचान हो गई और फिर पुलिस ने उसे धर दबोचा. ये सब सुनने में भले ही 'मिशन इमपॉसिबल' फिल्म के किसी सीन जैसा लगता है, लेकिन ये सच है. आखिर तकनीक का इससे अच्छा इस्तेमाल क्या हो सकता है? चलिए जानते हैं पुलिस ने ये सब किया कैसे.

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यूं मिले फिंगरप्रिंट

एक घर से ड्रग बेचे जाने की सूचना मिलने पर जब पुलिस ने छापा मारा तो वहां से सभी लोग तो फरार हो चुके थे, लेकिन एक फोन पुलिस के हत्थे चढ़ गया. बस इसी फोन से मानो पुलिस को उस ड्रग डीलर की कुंडली ही मिल गई हो. फोन में वाट्सऐप को पुलिस ने खंगाला तो उनके हाथ एक ऐसी तस्वीर लगी, जिसने केस को हल करने में मदद कर दी. उस तस्वीर में एक शख्स ने किसी को अपने हाथ में लिए ड्रग्स की तस्वीर भेजी थी. इस तस्वीर से पुलिस को अपराधी की उंगली के बीच के हिस्से और निचले हिस्से के फिंगर प्रिंट मिले.

चूंकि उंगली के सबसे ऊपरी हिस्से के फिंगरप्रिंट ही दर्ज किए जाते हैं, इसलिए पुलिस को मिले वह फिंगर प्रिंट किसी से मैच नहीं हो पाए, लेकिन पुलिस को एक अहम सुराग मिल चुका था, जिसके दम पर वह असल अपराधी तक पहुंच सकती थी. पुलिस को भले ही उनके डेटाबेस से यह पता नहीं चल सका कि अपराधी कौन है, लेकिन शक के बिनाह पर पुलिस जिन लोगों को पकड़ती, उन फिंगर प्रिंट को सभी से मैच कराया जाता. और इसी तरह वो ड्रग डीलर Elliott Morris पुलिस की गिरफ्त में आ गया. Elliott Morris अपने पिता Darren और माता Dominique के साथ मिलकर cannabis नाम के ड्रग्स की सप्लाई किया करता था.

पुलिस, वाट्सऐप, तकनीक, अपराधीElliott Morris अपने पिता Darren और माता Dominique के साथ मिलकर ड्रग्स का कारोबार करता था.

पुलिस को इन सबसे मिली मदद

ब्रिटेन की साउथ वेल्स पुलिस को ड्रग्स तस्कर को पकड़ने में ही कामयाबी नहीं मिली, बल्कि उसके साथ 10 अन्य लोगों को पुलिस ने पकड़ा. ड्रग्स से जुड़ा इतना बड़ा खुलासा होने के पीछे मुख्य कारण थी वो तस्वीर. यूं तो तस्वीर में फिंगरप्रिंट साफ नहीं दिखाई दिया करते हैं, लेकिन जैसे-जैसे तकनीक बढ़ रही है, मोबाइल के कैमरे भी अच्छी क्वालिटी के होते जा रहे हैं. इस केस में भी अच्छी क्वालिटी के मोबाइल के कैमरे से तस्वीर खींचे जाने की वजह से फिंगर प्रिंट साफ-साफ दिख गए. इस केस में जिस तरह से मोबाइल पर मिली एक तस्वीर से ड्रग डीलर पकड़ा गया, उसे देखते हुए अब पुलिस को जिस भी अपराधी का मोबाइल फोन बरामद होता है, उसकी अच्छे से छानबीन की जाती है.

भारत की पुलिस को इनसे सीखना चाहिए

2008 का आरुषि हत्याकांड किसे याद नहीं होगा. पुलिस ने इस मामले में कितनी लापरवाही बरती, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उनके हाथ सारे सबूत ही नहीं लगे. फॉरेन्सिक जांच में भी लापरवाही बरती गई. अभी ताजा मामला हैदराबाद की मक्का मस्जिद धमाके का है, जिसके 5 आरोपियों को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है. जहां एक ओर ब्रिटेन की पुलिस वाट्सऐप से मिली एक तस्वीर से फिंगर प्रिंट निकाल सकती है और अपराधी को दबोच सकती है, वहीं भारत की पुलिस 11 सालों में भी मक्का मस्जिद धमाके के दोषियों का पता नहीं लगा सकी, ना ही आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश कर सकी. ये तो सिर्फ दो बड़े उदाहरण थे, आए दिन होने वाली वारदातों में पुलिस की ओर से ऐसी लापरवाही देखने को मिल जाती है, जिसकी वजह से कई सबूत नष्ट हो जाते हैं. हमारी पुलिस को ब्रिटेन की पुलिस से सीखने की जरूरत है और यह समझने की जरूरत है कि एक छोटे से सबूत से भी बड़ी सफलता मिल सकती है.

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