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Updated: 07 जनवरी, 2020 05:23 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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निर्भया (Nirbhaya case) के दोषियों को फांसी की सजा (Capital Punishment) तो निर्भया की मौत के साल भर के अंदर ही मिल गई थी, लेकिन अभी तक उसके दोषी जिंदा हैं और तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे हैं. खैर, अब वह ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेंगे, क्योंकि पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वारंट (Death Warrant) जारी कर दिया है और फांसी की तारीख 22 जनवरी मुकर्रर कर दी है. बता दें कि पूरा देश उन्हें फांसी (Execution) के फंदे पर लटकता हुआ देखने को बेताब है. पिछले दिनों हैदराबाद में महिला डॉक्टर दिशा के साथ हुए रेप (Disha Rape) और हत्या के बाद जब पुलिस ने दोषियों को एनकाउंटर (Hyderabad Police Encounter) किया, तो निर्भया के दोषियों को भी सजा-ए-मौत देने की मांग तेज हो गई. पहले कहा जाने लगा कि इन्हें 16 दिसंबर को फांसी दी जा सकती है, जिस दिन निर्भया के साथ हैवानियत हुई थी. फिर ये बात सामने आने लगी कि 29 दिसंबर को कोर्ट फांसी दे सकती है, जिस दिन निर्भया की मौत हुई थी, लेकिन तब भी ऐसा नहीं हुआ. आपको बता दें कि तमाम कानूनी दावपेंचों का इस्तेमाल कर के उनके वकील उन्हें सालों से बचाते आ रहे हैं, लेकिन अब उनकी मौत का रास्ता साफ हो चुका है. अब उम्मीद जताई जा रही है कि निर्भया के दोषी राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की जाएगी. यानी कुछ भी कर के दोषियों का वकील उनके लिए कुछ और सांसें जुटा रहा है. बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अक्षय ठाकुर की ओर से डाली गई रिव्यू पिटिशन (Review Petition) को खारिज किया था. खैर, एक बात तो तय है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इन दोषियों की याचिका खारिज ही करेंगे. इसकी मंशा तो वह पहले ही एक दूसरे तरीके से जाहिर कर चुके हैं.

Nirbhaya Case Mercy Plea Ramnath Kovindनिर्भया के दोषियों ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की है, जिसे वह खारिज की करेंगे.

राष्ट्रपति तो दया याचिका ही खत्म करने की बात कर रहे हैं !

ये बात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) ने राजस्थान के सिरोही में चल रहे एक कार्यक्रम में कही थी. इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि महिला सुरक्षा एक गंभीर मामला है और POCSO एक्ट के तहत बलात्कार (Rape) के दोषियों को दया याचिका तक दायर करने का अधिकार नहीं होना चाहिए. यानी एक बात तो तय है कि बलात्कार जैसे मामलों पर राष्ट्रपति बेहद सख्ती से बात कर रहे हैं. ऐसे में वह निर्भया के दोषियों की दया याचिका को हरगिज स्वीकार नहीं करेंगे. हालांकि, उन्होंने सिर्फ POCSO का जिक्र किया, लेकिन उनका मतलब बच्चों से रेप जैसे दुर्लभ मामलों (Rarest of Rare) से ही था.

दया याचिका से कितनी सांसें मिलेंगी दोषियों को?

दया याचिका में वैसे कोई निर्धारित समय नहीं होता है. ये राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि वह अपने समय के हिसाब से कितने दिन में फैसला सुनाता है. हालांकि, इससे पहले विनय शर्मा की दया याचिका एक टेबल से दूसरी टेबल तक करीब महीने भर घूमी थी. हो सकता है इस बार भी महीने भर और निर्भया के दोषी जिंदगी जी लें. बता दें कि 8 नवंबर 2019 को विनय शर्मा ने दिल्ली सरकार के पास दया याचिका दायर की, जिसे 29 नवंबर को दिल्ली गृह मंत्रालय ने चीफ सेक्रेटरी को भेजा. वहां से चीफ सेक्रेटरी ने 30 नवंबर को इसे गृह मंत्री सत्येंद्र जैन के पास स्पेलिंग चेक करने के लिए भेजा. जैन ने 1 दिसंबर को इसे एलजी ऑफिस भेज दिया. 2 दिसंबर को एलजी ने विनय की दया याचिका खारिज करने के प्रस्ताव को आगे गृह मंत्रालय को भेज दिया. गृह मंत्रालय ने 6 दिसंबर को इस याचिका को राष्ट्रपति के पास भेज दिया और वहां भी विनय की याचिका को खारिज करने पर मुहर लग गई. तो एक दया याचिका इस तरह खारिज होने में महीने भर लग गए.

पवन को अचानक याद आया वो तो वारदात के वक्त नाबालिग था !

सुप्रीम कोर्ट ने अक्षय की याचिका खारिज करने के साथ ही दोषियों को दया याचिका दायर करने का आखिरी मौका देते हुए कुछ दिनों की मोहलत दी थी. इसी बीच पवन गुप्ता (Pawan Kumar Gupta Nirbhaya Case) के वकील ने सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की है कि वह निर्भया रेप की घटना के वक्त नाबालिग था, इसलिए उसे भी नाबालिग (Nirbhaya Juvenile) की तरह ही सजा मिलनी चाहिए और सबूत के तौर पर दस्तावेज जमा करने के लिए उसने महीने भर का वक्त मांगा है. यानी कम से कम फांसी से तो बचा लिया जाए और वो भी नाबालिग बनाकर. इस मामले में एक नाबालिग तो पहले ही बचकर निकल चुका है, जिसने निर्भया के साथ सबसे अधिक हैवानियत की थी, लेकिन ये नहीं बचेगा. इसकी वजह ये है कि अब जुवेनाइल एक्ट भी बदल दिया गया है. यानी आज नहीं तो कल सही, निर्भया के चारों दोषी (मुकेश सिंह, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और अक्षय ठाकुर) फांसी के फंदे पर झूलते नजर आएंगे, लेकिन इनका वकील बस कुछ-कुछ दिन केस को टालता जा रहा है. सामने दिख रही मौत निर्भया के दोषियों को जितना डरा रही है, फांसी टालने वाला हर दिन उन्हें थोड़ी सी खुशी देने का काम कर रहा है.

फांसी से बचने के लिए क्या-क्या हथकंडे आजमा रहे हैं रेपिस्ट !

जैसे-जैसे निर्भया के दोषियों को फांसी का फंदा और मौत दिखाई दे रही है, उनके वकील या खुद दोषी ही कोई न कोई बहाना बना रहे हैं, जिससे उनकी जान बच सके. आइए जानते हैं उन्होंने कैसे-कैसे बहाने बनाए हैं.

- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी अक्षय की रिव्यू याचिका को खारिज किया था. बता दें कि अपनी याचिका में अक्षय ने तमाम तर्कों के साथ ये भी कहा था कि 'दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है और यह गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है. ऐसे में उसे मृत्यु दंड अलग से देने की क्या जरूरत है?'

- अक्षय ने वेद पुराण और उपनिषद का भी जिक्र किया. अक्षय ने कहा कि वेद पुराण और उपनिषद में लोगों के हजारों साल तक जीने का उल्लेख मिलता है. धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक सतयुग में लोग हजारों साल तक जीते थे. त्रेता युग में एक आदमी हजार साल तक जीता था. लेकिन अब कलयुग में आदमी की उम्र 50 से 60 साल तक सीमित रह गई है. तो फिर ऐसे में फांसी की सजा देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तब तक तो वह खुद मर जाता है.

- क्यूरेटिव पिटिशन का जिक्र भी निर्भया के दोषियों के वकील ने पहले ही की थी. उसने कहा था कि ऐसे 17 केस के उदाहरण हैं, जिनमें फांसी को उम्रकैद में बदला गया है. खैर, वह ये बताना भूल गए कि उनमें से कोई भी मामला निर्भया जैसा नहीं होगा.

- अक्षय की रिव्यू याचिका में ये भी दलील दी कि गई थी कि सजा-ए-मौत का मतलब न्याय के नाम पर एक व्यक्ति को साजिश के तहत मार डालना. सरकार बड़ी समस्याओं का समाधान इस तरह पेश करना चाहती है, उन्हें समस्या की जड़ तक जाना चाहिए.

- निर्भया केस में ये भी दलील दी गई कि गंभीर अपराध के दोषियों को बिना सजा दिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए. सजा के तरीके पर विचार करना जरूरी है, ना कि सख्त व संगीन सजा पर. मौत की सजा मानवाधिकारों का उल्लंघन है. यह जीने के अधिकार और अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ है. यह सजा हिंसा की संस्कृति है, ना कि उसका समाधान. यानी बातें तो बहुत ज्ञान की हो रही हैं, बिल्कुन दर्शनशास्त्र जैसी, लेकिन ये ध्यान रहने चाहिए कि ये सब सिर्फ मौत का डर बुलवा रहा है.

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