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Updated: 10 मई, 2021 02:10 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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नवनीत कालरा संकटकाल में कालाबाजारी का बड़ा नाम है. कहने को तो दिल्ली का प्रसिद्व व्यवसायी है, पर इसके रूप दो हैं और दोनों ही एक दूसरे से जुदा. व्यवसाय के अलावा दूसरा धंधा कालाबाजारी का है जिसे कोरोना संकट में उसने और विस्तार दे दिया है. राजधानी में बीते कुछ दिनों से ऑक्सीजन की भारी किल्लत है जिसका वह जमकर फायदा उठा रहा है. मोटे दामों पर ऑक्सीजन को ब्लैक करता था. लेकिन अब पुलिस ने उसके काले साम्राज्य को फिलहाल उजाड़ दिया है. दिल्ली के पाॅश इलाके खान मार्केट में इनका ‘खान चाचा’ नाम से रेस्टोरेंट है जहां से पुलिस ने तकरीबन दो करोड़ के कंसंट्रेटर बरामद किए हैं. जब छापेमारी हो रही थी, तो कालरा पीछे दरबाजे से फरार हो गया. फरार खुद हुआ या करवाया गया फिलहाल इसकी चर्चा जोरों पर है. मौत के इस खेल में वह इकलौता नहीं था, कई और भी सहयोगी हैं. अगर उनका भी नाम उजागर हो जाए जो दिल्ली की सियासत में भूचाल आ जाएगा.

Coronavirus, Covid 19, Epidemic, Navneet Kalra, Delhi, Blackmarketing, Oxygenएक ऐसे समय में जब कोविड से मर रहे हों नवनीत कालरा जैसे पापी भी हैं जो आपदा में अवसर तलाश रहे हैं

मौत का सौदागर कालरा 15-20 हजार का ऑक्सीजन कंसंट्रेटर 50 से 70 हजार में बेचता था. एक दिन पहले ही पुलिस ने दिल्ली के शास्त्रीनगर में भी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी करने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया था. वहां भी तकरीबन करोड़ों के कंसंट्रेटर बरामद हुए थे. लेकिन कालरा का मामला कुछ अलग है. पुलिस ने कालरा के रेस्टोरेंट से भारी मात्रा में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बरामद किए हैं.

कालरा के काले कारनामों की जब परतें खुली तो पता चला उसे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है. वह हमेशा पेज थ्री पार्टियों में दिखता है. दिल्ली के कई बड़े राजनेताओं से उसके मधुर संबंध हैं सबके यहां उठना बैठना है. बिना समय लिए धडल्ले से किसी मंत्री या नेता के घर या कार्यालय में पहुंच जाता है. भला ऐसे लोगों का कोई क्या बिगाड़ लेगा?

सवाल सीधा है, कालरा जैसे लोग आपदा के वक्त अवसर तलाशने के लिए भूखे जानवर की तरह मैदान में उतरते हैं जिनके पीछे गुप्त रूप से सियासी संरक्षण शामिल होता है. ऐसे लोग बेधड़क खुलेआम अपने मंसूबों को अंजाम देते हैं. ऐसे लोगों पर ही प्रचलित वह कहावत सच साबित होती है कि ‘जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का’! पर शायद ऐसे लोग ये भूल जाते हैं कि आपदाएं इंसानों को पुण्य कमाने का मौका देती हैं.

मुसीबत के वक्त एक दूसरे के काम आना, संकट में भागीदारी निभाकर दुखों को बांटना. संकट में कमाया यह एक ऐसा पुण्य होता है जिसका लेखा जोखा सीधे भगवान के दरबार में दर्ज होता है. लेकिन शायद अब ऐसे मौकों से इंसानों का कोई लेना देना नहीं? पुण्य कमाने के जगह लोग आपदा में अवसर खोजते हैं.वक्त ऐसा है जब जिंदगी सस्ती और मौत महंगी हो गई है. ऐसा ही कुछ कोरोना संकट में चारों ओर दिखाई भी पड़ता है.

अंतिम संस्कार के लिए कतारों में लगी शवों की लाइनों को कम करने के लिए भी लोग दलाली खा रहे हैं. दिल्ली के तकरीबन श्मशान घाटों में मृत्कों के परिजनों को टोकन देकर घंटों को इंतजार कराया जा रहा है. ऐसे में शव तस्कर मृतकों के परिजनों से जल्दी संस्कार कराने के नाम पर अवैध धन वसूल रहे हैं. इसके अलावा अस्पतालों में कोरोना मरीजों को भर्ती कराने की जो किल्लतें हैं वह भी किसी से छिपी नहीं है.

वहां भी दलाल सक्रिय हैं, अस्पतालों में बेड दिलवाने के नाम पर मोटा पैसा वसूल रहे हैं. इस खेल में अस्पताल और दलाल दोनों की संयुक्त भूमिकाएं हंै. दलाल एक मरीज को भर्ती कराने के लिए 25 हजार से लेकर एक लाख तक ले रहे हैं. अपने मरीजों की जान बचाने के लिए परिजन भी मुंह मांगी कीमत दलालों को दे रहे हैं. इस क्रूकाल के भुक्तभेगी हम सभी हैं.

दरअसल, मरीजों की चुनौतियां यहीं खत्म नहीं होती, आगे और बढ़ती हैं. भर्ती के बाद ऑक्सीजन को भी अरेंज स्वयं मरीजों को ही करना होता है. उसकी भरपाई के लिए भी दलाल मौजूद होते हैं. ऑक्सीजन दिलवाने के लिए भी दलालों की फौज खड़ी होती है, बस आपको पैसा बरसाना होता है. ऑक्सीजन के लिए भी बोली लगती है. ऑक्सीजन के लिए दलाल मरीजों को खुलेआम ब्लैकमेल करते हैं और उनसे लाखों रुपए लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर चंद मिनटों में मुहैया करा देते हैं.

इसके बाद भूमिका शुरू होती है डॉक्टरों की, जो डरावनी ही नहीं, बल्कि अस्वीकार्य भी होती है. मरीजों के लिए रेमडेसिवीर इंजेक्शन की डिमांड करते हैं जिसे कुछ ही घंटों में उपलब्ध कराने की शर्त रखते हैं, वरना कुछ भी हो सकता है. इंजेक्शन के लिए परिजन भागते हैं तब भी उनका टकराव दलालों से ही होता है. चिकित्सक छह इंजेक्शनों की मांग करते हैं.

दलाल इंजेक्शनों के लिए एक से लेकर पांच लाख तक वसूल रहे हैं और ये भी जरूरी नहीं कि वह इंजेक्शन असली हैं या नकली? क्योंकि इस समय नकली रेमडेसिवीर इंजेक्शन बेचने वाले भी खूब सक्रिय हैं. रोजाना कोई न कोई पुलिस प्रशासन के हत्थे चढ रहा है. आपदा को अवसर में बदलने वाले ऐसे दलालों को शायद ही भगवान कभी माफ करे, लेकिन इतना जरूर है ये दलाल सिस्टम के रखवालों से तो अच्छे ही हैं, कम से कम पैसे लेकर कुछ भला तो कर रहे हैं.

जबकि, सिस्टम संकट से हारकर पहले से घुटने टेक चुका है. सिस्टम ने कोरोना मरीजों अपने हाल पर छोड़ा हुआ है. अस्पतालों के बाहर दलालों का तांड़व है, पुलिस-प्रशासन की आंखों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. कोई भी उन्हें रोकने-टोकने वाला नहीं? दलालों की कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार सिस्टम पूरी तरह से फेल है. ये तस्वीरें दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी देख रहे हैं.

खैर, बुरा वक्त एक न एक दिन बीतेगा, लेकिन इस बुरे समय का जवाब हुकूमत के रखवालों को आज नहीं तो कल जरूर देना पड़ेगा.

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