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Updated: 13 अक्टूबर, 2019 05:46 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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अभी कल सुबह की ही तो बात है. पीएम मोदी की भतीजी दिल्ली के वीआईपी इलाके सिविल लाइंस में थीं, तभी स्कूटी से आए दो किशोरों ने उनका पर्स छीना और देखते ही देखते फरार हो गए. उनके पर्स में नकदी, मोबाइल, दस्तावेज, एयर टिकट और पासपोर्ट भी था. जैसे ही ये मामला मीडिया में आया, मानो दिल्ली पुलिस के पैरों तले जमीन ही खिसक गई हो. पुलिस ने भी एड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया और 24 घंटे के अंदर-अंदर अपराधियों को पकड़ लिया. ये हमारी पुलिस इतनी काबिल कब से हो गई? यकीनन आपके मन में भी यही सवाल उठता होगा, क्योंकि जिन भी लोगों का पाला पुलिस से पड़ा होगा, वह जानते होंगे कि पुलिस जनता की मित्र नहीं होती. झपटमारी की रिपोर्ट भी लिखाने जाओ तो पहले एक थाने से दूसरे थाने भेजते हैं फिर जाकर रिपोर्ट लिखते भी हैं तो सामान खोने की रिपोर्ट लिखते हैं ना कि झपटमारी की. और वो सामान कभी नहीं मिलता, लेकिन अगर पीड़िता देश के प्रधानमंत्री पीएम मोदी की भतीजी हो तो यही पुलिस 24 घंटे में मामला सुलझा देती है. यहां तक कि सारा सामान नकदी समेत बरामद कर लिया जाता है.

दिल्ली, पुलिस, अपराधपीएम मोदी की भतीजी से झपटमारी करने वालों के साथ-साथ पुलिसवालों की हेराफेरी भी पकड़ी गई.

शनिवार सुबह हुई थी ये झपटमारी

कल यानी शनिवार की सुबह करीब 7 बजे उत्तरी दिल्ली के वीवीआईपी इलाके सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में दो बदमाशों ने पीएम मोदी की भतीजी दमयंती बेन से झपटमारी की. वह उनका पर्स ले भागे, जिसमें दो मोबाइल, करीब 56000 रुपए, अहमदाबाद जाने का हवाई टिकट, पासपोर्ट और पूरे परिवार के आधार-पैन कार्ड मौजूद थे. जिस समय यह घटना हुई वह ऑटो में सवार थीं. जैसे ही वह गुजराती समाज भवन के पास परिवार के साथ ऑटो से उतरने लगीं, दो स्कूटी सवारों ने उन पर झपट्टा मार दिया और पर्स ले उड़े. दमयंती बेन बताती हैं कि ये सब चंद सेकेंडों में ही हो गया.

नाक बचाने के चक्कर में पुलिस की हकीकत सामने आ गई है !

पीएम मोदी की भतीजी से साथ हुई घटना को तो पुलिस को सुलझाना ही था. एक तो मामला सीधे देश के प्रधानमंत्री के परिवार से जुड़ा था. ऊपर से वीवीआई इलाके में ऐसी घटना हुई. और भी हैरान करने वाली बात ये है कि जिस इलाके में ये वारदात हुई है, वहीं पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी घर है और दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल का आवास भी वहीं है. तो ये मामले तो पुलिस की नाक से जुड़ा था. वैसे इस मामले को पुलिस ने 24 घंटे में सुलझा तो दिया, लेकिन इसके लिए उनकी वाहवाही नहीं करनी चाहिए, क्यों इस घटना ने दिल्ली पुलिस की हेरा-फेरी सामने ला दी है. वैसे सिर्फ दिल्ली पुलिस कहना भी ठीक नहीं होगा, क्योंकि हर जगह की पुलिस लगभग एक जैसी ही होती है.

दिल्ली पुलिस ऐसे करती है हेराफेरी

कुछ समय पहले दिल्ली पुलिस ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार झपटमारी के मामलों में गिरावट देखी गई. 2016 में 9,571 मामले सामने आए थे, जो 2018 तक घटकर 6,932 पर आ गए. हाल ही में हिंदुस्तान टाइम्स ने 1 जनवरी 2019 से 20 सितंबर 2019 तक दिल्ली में हुई घटनाओं पर एक रिपोर्ट तैयार की. का ब्योरा जारी किया था. रिपोर्ट से ये पता चला कि झपटमारी की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन गलियों की हकीकत कुछ और ही है. हिंदुस्तान टाइम्स ने दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट को लेकर पड़ताल की तो एक ऐसा सच सामने आया, जिसने पुलिस की हेराफेरी को जनता के सामने उजागर कर दिया. इस दौरान करीब 100 एफआईआर को हिंदुस्तान टाइम्स ने रिव्यू. लोगों ने शिकायत की थी कि बाइक से आए बदमाशों ने उनके झपटमारी की है, जिसमें पर्स, मोबाइल, चेन या अन्य सामान छीना गया. लेकिन पुलिस ने एफआईआर झपटमारी की नहीं, बल्कि चोरी की लिखी. आम जनता को यही लगता है कि चोरी, लूट, झपटमारी सब एक ही है, लेकिन हकीकत इससे कहीं दूर है, जिसे पुलिस वाले अच्छे से समझते हैं और एक ऐसा खेल खेल जाते हैं, जिससे उनका और अपराधियों दोनों का फायदा हो जाता है.

दिल्ली पुलिस तो अपराधियों की सजा भी कम कराती है !

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिसवाले झपटमारी कि शिकायतों की एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 379 (चोरी) के तहत लिख देते हैं. जबकि पुलिस को इन मामलों को धारा 356 (हाथापाई और जबरदस्ती सामान चुराना का अपराध) और धारा 392 (लूट) के तहत लिखना चाहिए. धारा 379 के तहत दोषी पाए जाने पर अपराधी को अधिकतम 3 साल की सजा होगी. वहीं दूसरी ओर धारा 356 के तहत 2 साल और धारा 392 के तहत 10 साल की सजा हो सकती है.

तो इससे पुलिस का क्या फायदा?

दरअसल, किसी भी इलाके में झपटमारी जैसी घटनाओं का साफ मतलब है कि अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं. वह बैखोफ खुले बाजार में घूम रहे हैं. न उन्हें पुलिस का डर है, ना ही कानून का. यानी सीधा सवाल पुलिस पर उठता है कि आखिर वह कर क्या रहे हैं. अगर झपटमारी के मामले चोरी के तहत दर्ज होंगे तो अपराध बढ़ने की बात भले ही हो, लेकिन अपराधियों के बैखौफ घूमने की बातें नहीं होंगी. यही वजह है कि एफआईआर में झपटमारी लिखने के बजाय पुलिसवाले चोरी की धारा के तहत मामला दर्ज कर देते हैं. दरअसल, वह चोरों को नहीं, बल्कि खुद को बचाने कोशिश करते हैं. कई जगह तो आपको ऐसे भी पुलिसवाले मिलेंग, जो एफआईआर लिखते ही नहीं, सिर्फ शिकायत दर्ज कर लेते हैं, क्योंकि एफआईआर लिखी जाएगी, तो उस पर कार्रवाई भी करनी पड़ेगी, जबकि शिकायत को तो कहीं भी कोने में डाला जा सकता है.

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#दिल्ली, #पुलिस, #अपराध, स्नैचिंग वाले अपराध पुलिस की कार्यशैली और शहर के लॉ एंड ऑर्डर पर बट्टा लगाते हैं, इसलिए ऐसे अपराधों को पॉकेटमारी और चोरी के रूप में दर्ज किया जा रहा है. इसमें पुलिस और चोर दोनों का मजा है. पुलिस की नाक बच जाती है, और चोर यदि पकड़ा गया तो उसकी सजा भी कम है.

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