New

होम -> समाज

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 जून, 2016 06:00 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
  @RKSinha.Official
  • Total Shares

संभव है कि नई पीढ़ी ने 1953 में आई विमल राय निर्देशित कालजयी फिल्म 'दो बीघा जमीन' नहीं देखी हो. दो बाघा जमीन में नायक के रूप में बलराज साहनी की अभिनय कला उच्चतम शिखर तक पहुंची थी. इसमें उन्होंने कोलकाता में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा चालक के चरित्र का अति मार्मिक और यथार्थ चित्रण किया था.

जब भी देश में रिक्शा चालकों के जीवन को बेहतर बनाने को लेकर कोई पहल शुरू होती है तो बलराज साहनी का दो बीघा जमीन में निभाया गया उसका सम्वेदनात्मक रोल याद आ जाता है. गांधी जी ने कहा था कि जब तक हमारे देश में मानव को मानव ढोता रहेगा, हम यह कैसे कहेंगे कि स्वराज आ गया. पिछले 65 वर्षों में तो गांधी जी के नाम पर वोट बटोरकर सत्ता की गद्दी पर बैठने बालों को रिक्शेवालों की सुध नहीं आयी.

अब लगता है कि देश के लाखों रिक्शा चालकों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव की बयार बहने वाली है. अब उन्हें तपती दोपहरी, कड़ाके की सर्दी या फिर बारिश में दम लगाकर रिक्शा खींचने से मुक्ति मिलने वाली है. वे अब रिक्शा के स्थान पर ई-रिक्शा चलाने लगेंगे. ई-रिक्शा चलाने से उनकी आय भी बढ़ेगी और उन्हें कष्टकारी कार्य से राहत भी मिल जाएगी.

e-rickshaw_061716052854.jpg
 बदलेगी रिक्शा चालकों की जिंदगी..

सरकार इस लिहाज से वास्तव में बहुत गंभीर है. मेरी पिछले दिनों केन्द्रीय भूतल परिवहन और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात हुई थी. वे बता रहे थे कि भारत में लगभग एक करोड़ लोग मानव होते हुए भी मानव को ढोने का कार्य करते हैं, यानी की रिक्शा या ठेला खींचते हैं. पचास वर्ष पूर्व पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने यह सपना देखा था कि वह दिन भारत का स्वर्णिम दिन होगा जब कि भारत में मानव द्वारा मानव का बोझ उठाना बंद हो जायेगा. इलेक्ट्रिक रिक्शा द्वारा आज़ादी के लगभग 70 वर्ष बाद यह सपना साकार होता दिख रहा है.

इंसान द्वारा इंसान को उठाना!

सरकार की चाहत है कि अगले 4-5 वर्षो में देश में मानव द्वारा मानव या सिमेंट, अनाज या आलू-प्याज की बोरी का बोझ उठाना इतिहास की बात हो जाये. सरकार की योजना सही तरीके से चली और इसमें कोई अवरोध नहीं आया, तो इस योजना से लगभग एक करोड़ लोग लाभान्वित होंगे. यह कोई छोटी बात नहीं है. जब कोई रिक्शा चलाता है तो कभी उसके चेहरे के भाव को देखा कीजिए. तब समझ आता है कि वो शख्स कितना कठिन कार्य कर रहा है, सिर्फ अपनी और अपने परिवार की दो जून की रोटी का जुगाड़ करने के लिए.

ठीक वैस, जैसा दो बीघा जमीन में दिखाया गया था. बलराज साहनी, जो उस फिल्म में शंभू महतो नाम के रिक्शा चालक का किरदार निभा रहे थे, दिन-रात मेहनत इसलिए कर रहे थे ताकि वो अपने गांव में गिरवी रखी अपनी दो बीघा जमीन को पैसे वापस कर जमींदार से छुड़वा लें. उस जमीन को उन्होंने कई साल पहले गिरवी पर रखा था. उस जमीन को जमींदार से छुड़ाने के लिए वह कोलकता में दिन-रात रिक्शा चलाते थे और उनका शरीर समाप्त हो रहा था.

मैं बिहार से आता हूं. मुझे मालूम है कि बिहार में अब भी हजारों रिक्शा चलाने वाले अपनी छोटी-मोटी जमीन को जमींदारों या साहूकारों से छुड़ाने के लिए देश के तमाम शहरों में 'शम्भू महतो' बनकर रिक्शा चला रहे हैं. अब महतो जैसे असहाय और निरीह रिक्शा चालकों की दारुण-कथा गुजरे जमाने की बातें होने जा रही है. केन्द्र सरकार इन सबकी जिंदगी को सुधारने जा रही है राज्य सरकारों के सहयोग से.

मिलेगा भरपूर लोन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ हफ्तों पहले नव-उधमियों को बढ़ावा देने के लिए 'स्टैंड अप इंडिया' स्कीम लॉन्च की. नोएडा में इस स्‍कीम की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने 5100 ई रिक्‍शा बांटने का एलान भी किया. ये ई रिक्‍शा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत भारतीय माइक्रो क्रेडिट की ओर से प्रदान किए जाएंगे. जिन लोगों को ई रिक्‍शा मिलेगा वे प्रधानमंत्री जनधन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्‍योति योजना और अटल पेंशन योजना के तहत कवर भी किए जाएंगे. यानी, ई-रिक्शा लेने वालों को भरपूर लोन भी मिलेगा. अन्य बीमा कवर भी.

modi-e-rickshaw-650_061716052614.jpg
 सरकार दे रही है ई रिक्शा को बढ़ावा

साथ ही अन्य ईंधन वाहनों की अपेक्षा यह काफी किफायती भी है. इसका एक फायदा ये भी है की जहां परंपरागत रिक्शाओं में इंसान ही इंसान को ढोता है, उस से भी छुटकारा मिल जाएगा. इसके अलावा, परंपरागत रिक्शाओं में सिर्फ दो लोगों के बैठने की जगह रहती है, जबकि ई-रिक्शा में एक बार में पांच-छह सवारियां बैठ जाती हैं.

केन्द्र सरकार ई-रिक्शा चलाने के नियमों को पहले ही अधिसूचित कर चुकी है. इसमें 'ड्राइविंग लाइसेंस' को अनिवार्य बनाया गया है और इसकी अधिकतम सीमा 25 किमी प्रति घंटे की तय की गई है. सरकार ने केन्द्रीय मोटर वाहन (16वें संशोधन) कानून, 2014 को अधिसूचित किया है जो 'विशेष उद्देशीय बैटरी परिचालित वाहनों' को चलाने के मार्ग को प्रशस्त करता है. नए कानून में व्यवस्था है कि ई-रिक्शा पर चार यात्रियों को बिठाने के अतिरिक्त 40 किलोग्राम के सामान ले जाया जा सकेगा.

अच्छी बात ये है कि अब दिल्ली-एनसीआर, इंदौर, जमशेदपुर समेत देश के तमाम शहरों में ई-रिक्शा तेजी से अपनी दस्तक दे रही है. इसे चलाने वाले एक मोटे अनुमान के मुताबिक, सारे खर्चे निकालने के बाद हर महीने 30 हजार से अधिक कमा रहे हैं. अब बड़ी संख्या में लोग इन्हें खरीद रहे हैं और फिर इसे चलाने के लिए दूसरे लोगों को भी दे रहे हैं. रिक्शा और तिपहिया स्कूटरों के मामले में भी यही होता है. हालांकि, इस पर रोक लगाया जाना जरुरी है नहीं तो साहूकारों की चांदी हो जाएगी और बेचारे ई-रिक्शा चालक दिहाड़ी कमाने वाले मजदूर भर बनकर रह जायेंगे.

चूंकि भविष्य ई-रिक्शा का होगा तो इसे देखते हुए कई आटो कंपनियों ने भी बाजार में अपने ई-रिक्शा उतराने चालू भी कर दिए हैं. हीरो इलेक्ट्रिक ने अपना ई-रिक्शा 'राही' की है. 1000 वाट की मोटर पर चलने वाले इस ई-रिक्शा की कीमत एक लाख रुपये से कुछ अधिक है. इस कीमत में इंश्योरेंस, आरटीओ और रजिस्ट्रेशन चार्ज सबकुछ शामिल है. इस ई-रिक्शा में 12 वॉल्ट की 100 एएच पावर वाली बैटरी दी गई है. राही का वजन 190 किलो है.

मुझे मालूम चला कि देश में सबसे पहले 2011 में ई-रिक्शा को देश के सामने पेश किया था नितिन कपूर ने. दिल्ली निवासी नितिन कपूर ने पुणे स्थित सिम्बोयसिस संस्थान से एमबीए किया है. उन्होंने ई-रिक्शा को ईजाद किया शहरों में जहरीली आबोहवा से घुटती जिंदगी का मुकाबला करने के लिए. उनकी ई-रिक्शा के ब्रांड का नाम है ''मयूरी'. सच में नितिन ने देश पर बहुत बड़ा उपकार किया है ई-रिक्शा का डिजाइन तैयार करके.

प्रदूषण से परे

चूंकि ई-रिक्शा बैटरी से चलती है तो इसकी वजह से किसी तरह का प्रदूषण भी नहीं होता. यानी ई-रिक्शा प्रदूषण रोकने का अच्छा जरिया है. हमारे बड़े और मेट्रो शहरों में जिस तरह से वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण जनता को बीमार कर रहा है, उसे देखते हुए ई-रिक्शा वास्तव में समय की मांग है।

दिल्ली-एनसीआर में ई- रिक्शा का किराया 5 रुपए प्रति किमी है। जाहिर है ये कोई बहुत अधिक नहीं माना जा सकता. जब ऑटो चालक लोगों से मनमाना किराया वसूल रहे हैं तब ई-रिक्शा लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है. एक बात की और जानकारी मुझे प्राप्त हुई है कि मध्य प्रदेश के कई शहरों में ई-रिक्शा को महिलाएं भी चला रही हैं. कहने की जरूरत नहीं कि इससे वे स्वावलंबी होंगी. इनमें बहुत सी मुस्लिम महिलाएं भी हैं. इंदौर जैसे अहम शहर में ई-रिक्शा बहुत बड़े स्तर पर लोगों का सस्ता सफर मुहैया करा रहे हैं. मध्य प्रदेश में ई-रिक्शा लेने पर मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत चालक को 45 हजार रुपए की सब्सिडी भी मिलती है.

संक्षेप में कहा जा सकता है कि अब ई- रिक्शा का वक्त आ गया है. इसे चलाना अपने आप में सामान्य कार्य है. यह अब परम्परागत रिक्शा का स्थान लेने जा रहा है. मतलब, अब आपको-हमको आने वाले दौर में शंभू महतो जैसे किरदार अपने आसपास नहीं मिलेंगे.

लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय