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Updated: 11 अगस्त, 2018 03:25 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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श्राद्ध में श्रद्धा है या फिर श्रद्धा में श्राद्ध है. सवाल टेढ़ा है और अटपटा भी जिसे समझने के लिए हमें खबर जाननी होगी. खबर के अनुसार, बंगाल का एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी दिवंगत हिन्दू पत्नी का श्राद्ध करना चाहता था, मगर दिल्ली की एक मंदिर सोसाइटी ने उन्हें ऐसा करने की परमीशन नहीं दी. मंदिर सोसाइटी का तर्क हैरत में डालने वाला है. मंदिर सोसाइटी ने कहा है कि मुस्लिम व्यक्ति से शादी करने के बाद महिला हिन्दू नहीं रही. मंदिर सोसाइटी को इस बात से भी कोई मतलब नहीं है कि हिन्दू महिला ने शादी के बाद अपना धर्म बदला या नहीं बदला.

श्राद्ध, दिल्ली, हिन्दू, मुस्लिम, कोलकाता, श्रद्धा  श्राद्ध को लेकर मंदिर कमेटी के तर्क किसी भी समझदार इंसान को हैरत में डाल सकते हैं

बिना धर्म बदले इंटर रिलिजन मैरिज की इजाजत देने वाले स्पेशल मैरिजिज़ एक्ट के तहत 20 साल पहले शादी करने वाले और पश्चिम बंगाल के कोलकाता निवासी इम्तियाज़ुर रहमान की पत्नी निवेदिता घटक की मृत्यु पिछले हफ्ते दिल्ली में मल्टी-ऑर्गन फेल्योर की वजह से हुआ था. पत्नी की मौत के बाद पति ने निवेदिता घटक का अंतिम संस्कार दिल्ली के ही निगम बोध घाट पर पूरे हिन्दू रीति-रिवाज़ से किया था. लेकिन चितरंजन पार्क इलाके की मंदिर सोसायटी ने परिवार को श्राद्ध करने की अनुमति नहीं दी.

ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल सरकार में सहायक आयुक्त (वाणिज्यिक कर) के पद पर कार्यरत इम्तियाज़ुर रहमान ने 6 अगस्त को काली मंदिर सोसायटी में 12 अगस्त की बुकिंग की थी जिसके लिए उन्होंने 1,300 रुपये का भुगतान भी किया था. बाद में मंदिर सोसायटी ने उन्हें बताया कि 'कुछ कारणों' से उनकी बुकिंग रद्द कर दी गई है.

बात विचलित करने वाली थी. इम्तियाज़ुर को भी धक्का लगा उन्होंने जब मामले की पड़ताल की तो जो कारण निकल कर आए वो हैरान करने वाले थे. मंदिर सोसायटी के प्रमुख अशिताव भौमिक के अनुसार इम्तियाज़ुर रहमान का अनुरोध 'एक से अधिक कारणों' के चलते स्वीकार नहीं किया जा सका. भौमिक ने आरोप लगाया कि इम्तियाज़ुर रहमान ने 'अपनी पहचान छिपाई', और बुकिंग अपनी बेटी इहिनी अम्बरीन के नाम से करवाई थी, 'जो न तो अरबी नाम जैसा मालूम देता है और न ही ये मुस्लिम नाम जैसा दिखता है.

श्राद्ध, दिल्ली, हिन्दू, मुस्लिम, कोलकाता, श्रद्धा  मंदिर कमेटी की बात ने एक बिल्कुल नई डिबेट को जन्म दे दिया है

मुद्दे को डिटेल में समझाते हुए भौमिक ने तर्क यह भी दिया कि, 'हमें उनकी धार्मिक वास्तविकता का पता तब चला, जब एक पुजारी को उसपर संदेह हुआ, और पुजारी ने इम्तियाज़ुर रहमान से उनका गोत्र पूछा. भौमिक के अनुसार रहमान का चुप रहना लाजमी था और उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. ऐसा इसलिए भी क्योंकि मुस्लिम समुदाय गोत्र व्यवस्था को नहीं मानता. इन सारी बातों के बाद भौमिक ने एक और अजीब बात कही. भौमिक ने कहा कि उनकी पत्नी को एक मुस्लिम व्यक्ति से विवाह करने के कारण हिन्दू नहीं माना जा सकता, क्योंकि विवाह के बाद महिला अपने ससुराल का उपनाम तथा मान्यताओं का पालन करती है, और उसी समाज का हिस्सा बन जाती है.

अपने द्वारा कही गई इस दकियानूसी बात पर काली मंदिर सोसायटी के प्रमुख को कोई शर्मिंदगी नहीं है. उन्होंने बड़े ही मुखर ढंग से इस बात को स्वीकारा कि हमने ऐसा सिर्फ हिन्दू परम्पराओं एवं रीति-रिवाज़ों का सम्मान करने के लिए किया है. जब मंदिर सोसाइटी के प्रमुख से यह पूछा गया कि दिवंगत महिला की अंतिम इच्छा भी यही थी कि उसका श्राद्ध दिल्ली में पूरे हिन्दू रीति रिवाजों के साथ हो क्योंकि वो हिन्दू मान्यताओं का पालन करती थी तो इसपर भौमिक का तर्क और भी विचलित करने वाला था.

भौमिक के अनुसार, क्या पता, उस व्यक्ति के इरादे नेक नहीं हों, और वह अपने 50-100 रिश्तेदारों को लेकर मंदिर में घुस जाता, और वहीं नमाज़ पढ़ने लगता. तब हम क्या करते? क्या हमें वैसा होने देना चाहिए था? भौमिक को लगता है कि यदि इम्तियाज़ुर रहमान अपनी पत्नी का श्राद्ध करना ही चाहते हैं तो वो उसे दिल्ली में नहीं बल्कि कोलकाता में करें. यहां उन्हें इस काम की परमीशन हरगिज नहीं दी जाएगी.

श्राद्ध, दिल्ली, हिन्दू, मुस्लिम, कोलकाता, श्रद्धा  हिन्दू धर्म में मान्यता है कि जब तक श्राद्ध न हो मरने वाले को मुक्ति नहीं मिलती

बहरहाल मामला मीडिया में है और चर्चा का दौर लगातार चल ही रहा है. लोग मुद्दे पर तरह-तरह के तर्क दे रहे हैं. कुछ लोग जहां मंदिर कमेटी के साथ हैं तो ऐसे लोगों की भी अधिकता है जो इम्तियाज़ुर रहमान के साथ हैं. इस पूरे मामले को देखकर हमारे लिए यह कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि मंदिर कमेटी एक साधारण से अनुरोध को व्यर्थ का मुद्दा बनाकर तूल दे रही है और  ऐसी बातें कर रही है जो केवल और केवल उसकी जग हंसाई कराएगी.

बात साफ है. हम एक ऐसे देश में हैं जहां जब बात आस्था की होती है तब उसे सभी चीजों से ऊपर माना जाता है. यहां हम कई ऐसे हिन्दुओं को देख चुके हैओं जो मजारों,मस्जिदों और दरगाहों पर जाते हैं. साथ ही हम ऐसे भी कई मुसलमानों को देख चुके हैं जो मजार मस्जिद दरगाहों पर तो जाते ही हैं इसके साथ साथ वो मंदिरों गुरुद्वारों और गिरजों तक पर सिर झुकाते हैं. ऐसा क्यों होता है वजह बस विश्वास और हमारी आस्था है.

अब इस बात को अगर हम इम्तियाज़ुर रहमान और उनकी पत्नी के सम्बन्ध में रखकर देखें. तो मिल रहा है कि, उन्होंने भी जो किया वो अपनी आस्था के चलते कर रहा है. कहना गलत नहीं है कि मंदिर कमेटी को तो खुश होना चाहिए था कि एक मुसलमान का विश्वास इतना मजबूत है कि वो मंदिर के पास अपनी पत्नी का श्राद्ध कराने आ रहा है. खैर पूरा मामला देखकर बात खुद शीशे की तरह साफ हो गई है कि ये और कुछ नहीं बस आस्था और विश्वास के नाम पर श्रद्धा की अभिव्यक्ति का मामला है. मुस्लिम ने श्रद्धा को अपनी तरह से देखा मंदिर कमेटी के प्रमुख ने अपनी नजर से देखा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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