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Updated: 27 अप्रिल, 2021 06:36 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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विशेषज्ञ कोरोना की सुनामी को लेकर जिस तरह के अनुमान लगा रहे हैं उसे देखकर अब लगने लगा है कि ईश्वरीय चमत्कार ही देश को महासंकट से बचा सकता है. मौजूदा आपदा से निजात पाना लचर हेल्थ केयर सिस्टम और कमजोर सरकारों के बस की बात नहीं. यहां सबसे बड़ी जरूरत जनभागीदारी की भी है जो दूसरी लहर में काफी हद तक बेपरवाह है. डेटा साइंस, महामारी विशेषज्ञ और मिशिगन यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर भ्रमर मुखर्जी चेताया है कि मौजूदा हालत दूसरी लहर की झलक भर हैं. आने वाले कुछ ही दिनों में देश के अबतक के सबसे डरावने अनुमानों की ओर बढ़ रहा है. ऐसा हुआ तो ज्यादातर घर अस्पतालों में बदल जाएंगे और श्मशानों में लाशें जलाने के लिए लंबी लाइनें लग सकती हैं.

7 अप्रैल तक देश में कोरोना संक्रमण के एक लाख से कुछ ही ज्यादा मामले थे जो मात्र ढाई हफ़्तों में बेतहाशा बढ़कर 3 लाख 50 हजार का आंकड़ा पार कर चुके हैं. अगले चार हफ़्तों में नए संक्रमण के मामले रोजाना 8 लाख के पार चले जाएंगे. पिछले एक साल से कोरोना के डेटा विश्लेषण के आधार भ्रमर मुखर्जी के हवाले से 'द हिंदू' ने लिखा- कोरोना महामारी का चरम मई के मध्य में आने वाला है. अगले चार हफ्ते तक (मध्य मई और उसके बाद) रोजाना 8 से 10 लाख के बीच नए मामले सामने आएंगे. बड़े पैमाने पर हॉस्पिटलाइजेशन होगा और मौतों का आंकड़ा रोजाना करीब 4500 के पार पहुंच जाएगा. जबकि अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में मौतों का प्रोजेक्शन और भी ज्यादा है. हाल ही में आई स्टडी के मुताबिक़ मई के मध्य में भारत की महामारी पीक पर होगी. रोजाना 5,600 मौतें होंगी. भ्रमर के पिछले आंकड़े सटीक साबित हुए हैं.

एक हफ्ते पहले भी एक ओपिनियन पीस में उन्होंने जो अनुमान लगाए थे आंकड़े लगभग उसके पास जा चुके हैं. उन्होंने रोजाना 5 लाख नए केसेस और करीब तीन हजार मौतों का प्रोजेक्शन दिया था. हालांकि पिछले दिन के मुकाबले ताजा संक्रमण के मामलों में थोड़ी गिरावट है मगर 2771 मौतें लगभग प्रोजेक्शन के अनुसार ही हैं.

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यानी अभी देश को कोरोना का सबसे भयावह दौर का सामना करना है. जबकि उस दौर के आने से बहुत पहले ही देश में हाहाकार मच चुका है. अस्पतालों में बिस्तर नहीं है, दवाएं नहीं हैं, लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा और टेस्टिंग लोड इतना ज्यादा है कि रिजल्ट में भी देरी हो रही है. मौतों का आंकड़ा हर रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है. मई में महामारी के पीक पर जाने के बाद के हालात कितने भयावह हो सकते हैं इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती. एक्सपर्ट इन्हीं चीजों को लेकर आगाह कर रहे हैं.

देश में कोरोना महामारी का संकट चुनाव आयोग की वजह से?

इस बीच आज मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग पर तीखी नाराजगी जाहिर की है. चुनावी प्रक्रिया में सोशल डिस्टेन्शिंग फॉलो नहीं किए जाने को लेकर हाईकोर्ट ने आयोग पर महामारी फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि अगर कोविड प्रोटोकॉल नहीं बने तो मई में होने वाली काउंटिंग का शेड्यूल रोक दिया जाएगा. उधर, पश्चिम बंगाल और केरल में संक्रमण के प्रोजेक्शन को लेकर भ्रमर मुखर्जी ने ट्विटर पर जो प्रोजेक्शन साझा किया है वे संकट का इशारा करने के लिए काफी है.

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...तो कोरोना से बहुत खराब होने वाली है पश्चिम बंगाल और केरल की हालत

प्रोजेक्शन के मुताबिक़ केरल में एक हफ्ते के अंदर हर रोज 40 हजार और पश्चिम बंगाल में 26 हजार नए मामले सामने आएंगे. केरल और बंगाल दोनों जगहों में रिप्रोडक्टिव रेट (R रेट) बढ़ जाने की आशंका है. रिप्रोडक्टिव रेट वो तरीका है जिसकी मदद से यह डेटा निकाला जाता है कि किसी संक्रमित व्यक्ति ने कितने लोगों में संक्रमण फैलाया. भविष्य के खतरे के मद्देनजर उन्होंने बंगाल और केरल के लोगों को घर में रहने और सभी प्रोटोकाल फॉलो करने की सलाह दी है.

सितंबर से कमजोर होने लगा था कोरोना, मगर...

भ्रमर करीब एक साल से ज्यादा वक्त से कोरोना संक्रमण के आंकड़ों पर नजर बनाए हुए हैं. उन्होंने पाया कि वायरस सितम्बर 2020 से कमजोर होने लगा था जो अगले पांच महीने तक जारी रहा. लेकिन जब इस साल फरवरी में उन्होंने आंकड़ों पर गौर किया तो देखा कि R रेट दोबारा वापिस आता दिखने लगा. उनके साथ काम कर रही टीम ने भी भविष्य के खतरे को भांप लिया था. 18 फरवरी को भ्रमर ने एक ट्वीट में टीकाकरण की प्रक्रिया को ज्यादा तेज करने की बात कही थी.

दुर्भाग्य से उनका ट्वीट ध्यानाकर्षण में नाकाम रहा. दरअसल, ये वो वक्त है जब देश पूरी तरह से महामारी के अंत का जश्न मना रहा था. लोग घरों से बाहर निकल चुके थे. जिंदगी बिल्कुल पुराने दौर में वापस आ गई थी. सबसे खराब बात ये रही कि जरूरी प्रोटोकॉल ध्वस्त हो गए थे.

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जब कोरोना खात्मे का जश्न मनाया जा रहा था संक्रमण को ऐसे मिली रफ़्तार

फरवरी में देश पूरी तरह से रीओपन की प्रक्रिया में आ चुका था. विदेशों से आवाजाही बढ़ गई थी, पब्लिक मेट्रो खोल दिए गए, बड़ी संख्या में लोगों को कार्यालयों में बुलाया जाने लगा था. ट्रेनों की ऑपरेशन कैपसिटी को बढ़ा दिया गया, स्कूल खुल गए, थियेटर, मॉल और इनडोर एक्टिविटी बढ़ गई. धार्मिक आयोजन भी बड़े पैमाने पर शुरू हो चुके थे. आगामी चुनावों को लेकर रैलियां होने लगी, मास्क सोशल डिस्टेंशिंग के नियमों का उल्लंघन होने लगा.

भ्रमर के मुताबिक- भारत में ऐसे हालात में नए वेरियंट और अन्य वजहों से वायरस को ज्यादा पनपने और फ़ैलने का मौका मिला. कोरोना का नया वेरियंट (भारत और यूके) बहुत खतरनाक, शक्तिशाली और प्रसार क्षमता वाला है जो मार्च और अप्रैल तक देशभर में फैला गया.

पुरानी गलतियों पर पछताने की बजाए आगे की योजना पर काम जरूरी

अभी भी संभलने के संभावित रास्ते बताते हुए मुखर्जी कहती है- बीते दिनों हुई गलतियों को सुधारा नहीं जा सकता. मगर मौजूदा वक्त विज्ञान, मानवता और डेटा के आधार पर आगे काम का है. संक्रमण की मौजूदा रफ़्तार कम नहीं हो तो देशव्यापी लॉकडाउन कारगर विकल्प है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अप्रूव सभी वैक्सीन को देश में मंजूरी देने और समूची आबादी का टीकाकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद लेने का भी सुझाव देती हैं. उन्होंने कहा- लॉकडाउन नहीं करने की स्थिति में कोविड के अनुकूल सख्त नियम बनाने चाहिए. टेस्टिंग और कोविड केयर की क्षमता को बढ़ाने और हालात खराब होने पर राज्यों को लॉकडाउन लगाना ही चाहिए. इनडोर गतिविधियों को पूरी तरह बंद करते हुए यात्रा के नियम को सख्त बनाने की जरूरत है.

मौजूदा हालात और भविष्य के खतरें के मुखर्जी यह सुझाव देती हैं कि कोविड केयर सप्लाई के लिए फिलहाल भारत को दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पार्टनर और गठबंधनों की जरूरत है.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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