Matrimonial meet: शादी तय करने के लिए इससे क्रूर पैमाना नहीं हो सकता
क्या ट्विटर पर मैट्रिमोनियल विज्ञापन का विरोध करने से सच्चाई झूठ में बदल जाएगी? हिपोक्रिसी यही है कि पहले लोग शक्ल देखते हैं और फिर गुणों की सोचते हैं.
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एक लड़का शादी के लिए क्या चाहता है? उसकी पत्नी स्मार्ट हो, नौकरी करती हो या अच्छी खासी पढ़ी लिखी हो, और खूबसूरत हो. जी हां, खूबसूरत हो, उसके बाकी कई गुण भी होते हैं, लेकिन उन्हें कोई ध्यान नहीं देता. बस खूबसूरती एक जरूरी पैमाना बन जाता है. इसी पैमाने का एक और उदाहरण बेंगलुरु के मैट्रिमोनियल एड में देखा गया. ये 25 जुलाई को वायरल हुआ है.
ये बेंगलुरु की मैट्रिमोनियल मीट का विज्ञापन है. इस विज्ञापन में कई ऐसी चीज़ें हैं जिनपर लोग आपत्ति कर रहे हैं. सबसे पहले तो ये एलीट क्लास वाले लोगों के लिए है. दूसरी बात महिलाओं के लिए एक खास पैमाना है कि वो खूबसूरत होनी चाहिए. IAS, IIM और खूबसूरती, ये पैमाना एक ही कैटेगरी में रखा गया है.
इसमें कोई शक नहीं कि भारत एक ऐसा देश है जहां शादी एक बहुत बड़ी सनक के तौर पर देखी जाती है. लोग बस अपने घर वालों या रिश्तेदारों, दोस्तों की शादी करवाना चाहते हैं. कई मेट्रिमोनियल वेबसाइट्स, कई मैरिज ब्यूरो, कई रिश्तेदार सब इसी काम में लगे रहते हैं. सभी आपको अपने समाज में शादी के लिए मदद करना चाहते हैं. सभी अपने-अपने कुछ तय पैमाने सेट करते हैं. इनमें लड़कों के लिए उम्र, जाति, क्लास, परिवार, सैलरी आदि जरूरी है. लड़कियों के लिए उम्र, जाति, क्लास, परिवार, सैलरी के साथ-साथ खूबसूरती जरूरी है.
बेंगलुरु के इस मैट्रोमोनियल मीट वाले विज्ञापन पर इसीलिए लोग हंस रहे हैं. क्योंकि इसने लड़कियों की खूबसूरती को एक पैमाना बना दिया है. सोशल मीडिया पर लोग इसपर गुस्सा भी दिखा रहे हैं.
Is this #matrimonial meet really in today’s paper? Which one? And please see the criteria for the genders. pic.twitter.com/5fJtBWoNUD
— Aparna Jain (@Aparna) July 25, 2018
@Leelahotels@Thehindu@YoungachieversmatrimonymeetWhat started as a joke on Whatsapp groups brought so many insights as to why the front page ad of the matrimonial meet was so wrong. Ultra rich, beautiful girls, the descriptions have been hilarious and cringe worthy.
— Reshma Krishnamurthy (@reshmakris) July 25, 2018
Baseless prediction: Arranged marriages and matrimonial services are going to boom in India as the internet diminishes any chance young people may have had to meet new people in real life and expand social circles. https://t.co/jWheVteCiz
— Mostly Offline Send Email Instead (@sidin) July 25, 2018
अब इस विज्ञापन पर ऑर्गेनाइजेशन ने माफी भी मांग ली है. श्रीराम एन. जो इस यंग अचीवर्स मैट्रिमोनी के पीछे का दिमाग थे वो कहते हैं कि उन्हें ये इवेंट कैंसिल करना पड़ेगा और इतना ही नहीं हो सकता है कि कंपनी भी बंद करनी पड़े.
उन्होंने कहा कि उन लोगों से गलती हो गई है और यंग अचीवर्स कैटेगरी में खूबसूरती का पैमाना रखना रही नहीं था. अब पूरे देश उन्हें गलत कह रहा है. अब इवेंट में कोई क्या आएगा? यंग अचीवर्स मैट्रिमोनी 5 महीने पहले ही शुरू हुई है और बेंगलुरु में एक जुलाई को एक इवेंट हो भी चुका है. उस इवेंट को 300 डॉक्टरों ने अटेंड किया और वो बहुत बेहतरीन रहा.
क्यों लिखा ऐसा..
श्रीराम ने कहा कि एक ENT स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने पिछले इवेंट में पूछा था कि क्या वो अपनी बेटी जो इंजीनियर है उसे ला सकते हैं. पर कंपनी ने जवाब दिया कि ये सिर्फ डॉक्टरों के लिए इवेंट है. उसी समय उस ENT स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने कहा था कि श्रीराम को 'खूबसूरत लड़कियां' भी एक क्राइटेरिया रखना चाहिए क्योंकि उनकी बेटी एक ब्यूटी कांटेस्ट विनर है. श्रीराम का कहना है कि उसी कारण गलती हो गई.
लोग इस मैट्रिमोनियल एड पर अपना गुस्सा दिखा रहे हैं. लोगों को लग रहा है कि इससे उनकी भावनाएं आहत हुई हैं, ये गलत है, सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ लिखा जा रहा है, कई वेबसाइट्स पर भी ऐसे ही हालात हैं, लेकिन अब मुझे बस एक सवाल का जवाब दीजिए.
जो इस विज्ञापन में दिख रहा है क्या वो असल जिंदगी में नहीं होता है? रिश्तेदार भी तो हमारे लिए यही सब देखते हैं. ट्विटर पर अपना गुस्सा दिखाना तो बहुत आसान है, लेकिन क्या असल जिंदगी में भी यही पैमाने नहीं होते हैं? क्यों हम सिर्फ इस विज्ञापन को लेकर ही गुस्सा दिखा रहे हैं. ये एलीट क्लास का विज्ञापन है इसलिए? किसी भी अखबार का कोई भी मैट्रिमोनियल पेज उठाकर देख लीजिए. क्या मिलेगा जानते हैं? जहां भी वधु चाहिए लिखा होगा वहां सुशील से पहले सुंदर लिखा होगा.
सुंदरता यकीनन आईएएस बनने से ज्यादा जरूरी नहीं तो उसके बराबर तो मानी ही जाती है. लड़की सुंदर हो तो समाज में हमारा रुतबा बढ़ता है, दोस्त याद शाबाशी देते हैं, कुल मिलाकर इसे एक अचीवमेंट यानि उपलब्धि ही समझा जाता है. फिर आखिर ये कैसे उपलब्धि वाले सेक्शन में न लिखा जाए. सुंदर बीवी किसी ट्रॉफी की तरह ही तो लगती है. फिर असल ट्रॉफी और सर्टिफिकेट और किसी सुंदर लड़की में फर्क क्या रहा.
बात सोचने वाली है कि हम अपना विरोध किस हद तक सीमित रख रहे हैं. क्या ट्विटर पर इस विज्ञापन का विरोध करने से सच्चाई झूठ में बदल जाएगी? हिपोक्रिसी यही है कि पहले लोग शक्ल देखते हैं और फिर गुणों की सोचते हैं. बस यही कारण है कि जो भी लोग इस समय इस विज्ञापन का ऐतराज़ कर रहे हैं वो हकीकत से मुंह मोड़ते दिख रहे हैं.
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