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Updated: 27 अप्रिल, 2019 03:52 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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हाल ही में एक अमेरिकी स्कूल चर्चा का विषय बन गया. वो इसलिए क्योंकि उन्होंने 5 साल की एक लड़की की फ्रॉक को आपत्तीजनक बताते हुए उसे अपने कंधे ढंकने के लिए कह दिया. यहां तक कि स्कूल में लड़की के कपड़े भी बदल दिए गए और जब लड़की की मां ने उसे देख तो एक फेसबुक पोस्ट के जरिए अपना गुस्सा जाहिर किया. लड़की की मां ने लड़की से पूछा कि उसने अपनी ड्रेस की जगह टीशर्ट क्यों पहन रखा है तो जवाब सुनकर वो आवक रह गईं. 5 साल की लड़की से स्कूल प्रशासन ने कहा था कि उसे प्राइवेसी की जरूरत है और इसलिए उसे ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए. ये हाल किसी और देश का नहीं बल्कि अमेरिका का है और इस लड़की का परिवार मिनिसोटा में रहता है.

लड़की की मां ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए इस बात को बहस का विषय बना दिया और आखिरकार स्कूल वालों को अपनी गलती माननी पड़ी. एक पांच साल की बच्ची को सेक्शुअलाइज करने के लिए सोशल मीडिया पर अच्छा-खासा गुस्सा दिखाई पड़ रहा है. उस लड़की को भी काफी दुख पहुंचा और वो बच्ची रोने लगी. उसे भरी क्लास में नर्स के यहां जाने को कहा गया था ताकि उसका असर अन्य बच्चों पर न पड़े.

सोशल मीडिया पर जैसे ही ये पोस्ट शेयर हुई वैसे ही वायरल हो गई और अभी तक इसके 27 हज़ार से ज्यादा शेयर हो चुके हैं और 11 हज़ार से ज्यादा कमेंट इसपर आ चुके हैं. अधिकतर लोगों का ये कहना है कि इतनी छोटी बच्ची को ये बता दिया गया कि उसका शरीर उसकी शिक्षा से ज्यादा जरूरी है.

सोशल मीडिया पर लोगों का सपोर्ट इस लड़की के लिए जारी है.सोशल मीडिया पर लोगों का सपोर्ट इस लड़की के लिए जारी है.

यहां बहस का विषय तो है क्योंकि वो स्कूल जिसे शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए उसके लिए 5 साल की लड़की के साथ ऐसा व्यवहार करना बेहद निंदनीय है. किसी किंडरगार्डन के स्टूडेंट को इस तरह से जबरदस्ती कपड़ों के लिए टोकना और उसके कपड़े बदलवाना भी तो उसकी प्राइवेसी को खतरा है, लेकिन यहां एक दूसरी बात भी बहस का विषय है कि आखिर इस सबकी जरूरत ही क्यों पड़ी.

नहीं मैं यहां पर लड़के अपनी नजर सुधारें और लड़कियों को सेक्शुअलाइज करना बंद करें वाला लेक्चर नहीं देने वाली हूं. वो तो जरूरी है ही, लेकिन किंडरगार्डन के बच्चों के लिए नहीं. उनके लिए तो शायद ये समझना भी बहुत नया है और उन्हें समझाने के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं. यहां बात हो रही है माता-पिता और स्कूल के लोगों की मानसिकता की.

साइकोलॉजी कहती है कि माता-पिता भी कई तरह के हो सकते हैं. ये तीन तरह के होते हैं. Permissive (सब कुछ चलता है), Authoritarian (कुछ मस्ती नहीं और घर में मिलिट्री शासन), Authoritative (कुछ मस्ती, कुछ कानून). पर इसके अलावा, साइकोलॉजी एक और तरह की पेरेंटिंग के बारे में बताती है जो कहीं न कहीं तीनों तरह के माता-पिता में मिल जाता है और वो है प्रोटेक्टिव पेरेंटिंग. यानी अपने बच्चों के लिए जरूरत से ज्यादा प्रोटेक्टिव होना.

अब यहां फर्क ये आता है कि इसी मामले को अलग-अलग तरह के लोग अलग तरह से डील करते जैसे ऊपर दिए किस्से में परमिसिव पेरेंट थी, लेकिन यहीं अगर बात किसी और की होती तो शायद पहले ही लड़की को जैकेट पहना कर भेजा जाता. यहां बात छोटी मानसिकता की नहीं हो रही बल्कि अपने बच्चे के लिए प्रोटेक्शन की हो रही है. ऐसा नहीं है कि ऊपर वाले किस्से में मां अपने बच्चे के प्रोटेक्शन के बारे में नहीं सोच रही थी, लेकिन व्यक्ति विशेष की साइकॉलिजी बदल जाती है.

उदाहरण के तौर पर जैसे कुछ लोगों को स्लीवलेस कपड़ों से आपत्ती होती है, मैं यहां पुरुषों की नहीं महिलाओं की ही बात कर रही हूं जिन्हें स्लीवलेस पहनना पसंद नहीं उन्हें ये असहज कर देता है. यही हाल स्कूल वालों का भी होता है कि बच्चों को नहीं बल्कि स्कूल के किसी शिक्षक को शायद ऐसी ही असहजता महसूस होती है.

इसका बच्चों पर क्या असर हो सकता है?

जिस लड़की के साथ ये हरकत हुई अब वो कभी भी शायद इतनी आसानी से ड्रेस पहन कर स्कूल नहीं जा सकेगी. हो सकता है कि वहां मौजूद छोटे बच्चे उसे चिढ़ाएं भी. किसी भी तरह से स्कूल ने जैसे इस समस्या के साथ डील किया वो गलत था. इस तरह की हरकत से बच्चों के मन में हमेशा के लिए वही बात घर कर जाती है.

यही हाल होता है जरूरत से ज्यादा चिंता करने वाले माता-पिता के साथ भी. बच्चों के लिए ओवरप्रोटेक्टिव महसूस करने वाले माता-पिता के साथ यही होता है और इन बच्चों के मन में भी कई तरह की भावनाएं आ जाती हैं जैसे इन्हें आसानी से किसी अलग माहौल में एडजस्ट करने में दिक्कत होती है, इन्हें अपने ऊपर भरोसा कम होता है और कोई फैसला लेने के लिए किसी और के सहारे की जरूरत पड़ती है.

स्कूल प्रशासन अगर चाहता तो वो किसी और तरह से भी इस समस्या का हल निकाल सकता था.

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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