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Updated: 15 अगस्त, 2017 09:27 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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"मैं अपनी शादी के रिसेप्शन में बिना किसी मेकअप और गहनों के, अपनी दादी की सफेद कॉटन की साड़ी पहनकर गई. बहुतों ने मुझसे इसकी वजह जाननी चाही, तो ये है वो वजह-

हमारे समाज में एक दुल्हन की बनी हुई उस इकलौती छवि को लेकर मैं उलझन में थी- खूब सारा मेकअप, भारी भरकम कपड़े, और ढ़ेर सारे गहने. बेवकूफ न बनो, एक दुल्हन की ऐसी शानदार छवि उसके परिवार में उसकी हैसियत नहीं दिखाती. समाज ने फैसला कर लिया कि वास्तव में महिलाओं पर पैसा खर्च करना है, तो वो पैसे उनकी इच्छा के विरुद्ध ही खर्च किए जाते हैं, और ऐसे कारणों के लिए किए जाते हैं जो उनके किसी काम नहीं आते.

मैं शायद ही ऐसी किसी शादी में गई होंगी जहां मैंने लोगों को बातें करते हुए न सुना होगा कि- दुल्हन सुंदर तो है न? कितना सोना पहना है? शादी का जोड़ा कितने का है? ऐसे सवालों को सुनते सुनते लड़की दबाव में आ जाती है और अपने लिए शहर का सबसे अच्छा मेकअप आर्टिस्ट ढूंढती है, वहां अच्छा खासा समय देती है, पैसा देती है और पूरी ऊर्जा झोंक देती है, और आखिर में वो खुद जैसी दिखती ही नहीं, क्योंकि समाज हमेशा उसे ये याद दिलाता रहता है कि उसकी त्वचा का असल रंग ही उसकी शादी के लिए अच्छा नहीं है.

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उसने अपनी चाची-मामी और साथी-संगियों से सीखा है कि दुल्हन गहनों के बिना 'अधूरी' होती है, और उसके व उसके परिवार की हैसियत सिर्फ इसी बात पर निर्भर करती है कि उस दिन उसने कितना सोना पहना हुआ है. और तो और, वो खुद ये सवाल भी नहीं कर सकती कि क्या सच में उसके गहने ही उसकी और उसके परिवार की गरिमा हैं. क्योंकि समाज हमेशा यही बोलता रहता है कि-''तुम एक लड़की हो, तुम अपनी शादी पर सोना क्यों नहीं पहनोगी?''

फिर दुल्हन की तरह लगने के लिए उसे अच्छी खासी महंगी ड्रेस पहननी होती है, जिसकी वजह से उसके लिए चलना भी मुश्किल पड़ता है(वो भारी ही इतनी होती है) और शादी के बाद वो कभी काम भी नहीं आती. लेकिन समाज इसके इतर कुछ भी स्वीकार नहीं करता.

मुझे गलत मत समझो, अगर एक लड़की मेकअप करना चाहती है, अपने लिए गहने और कीमती कपड़े लेना चाहती है, तो मुझे कोई परेशानी ही नहीं है. लेकिन परेशानी तब होती है जब वो लड़की ये तय करने में खुद को ही परेशान कर लेती है कि उसे उपनी शादी के दिन क्या पहनना है. जब समाज उसे बाध्य करता है कि वो गुडिया जैसी दिखे, बिलकुल अलग नजर आए, इससे ये संदेश जाता है कि लड़की की अपनी आभा ही उसकी शादी के लिए पर्याप्त नहीं है.

निजी तौर पर तो मुझे ये लगता है कि हमें इस तरह की मानसिकता को बदलना चाहिए. लड़की को एक दुल्हन के रूप में स्वीकारने या उसका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उसे गोरा बनाने वाली क्रीम, सोने का हार या फिर महंगी साड़ी नहीं चाहिए. इसलिए अपनी शादी में मैं अपनी दादी की साड़ी पहनकर गई, बिना मेकअप किए और बिना किसी गहने के. लोग इसे साधारण कह सकते हैं, लेकिन मेरे लिए ये बेहद खास था, क्योंकि ये मेरे अपने विचार थे, जो मेरे लिए काफी मायने रखते हैं.

इस फैसले के बाद घर पर मुझे प्रतिरोध झेलना पड़ा. मेरे परिवार के कई लोगों ने तो यहां तक कहा कि वो मेरे साथ एक भी तस्वीर नहीं खिंचवाएंगे, क्योंकि मैं दुल्हन की तरह नहीं सजी हूं. परिवार के उन कुछ लोगों की शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मेरा साथ दिया और खास शुक्रिया इस शख्स का जो मेरे बराबर बैठा है 'खलीद', जिन्होंने न सिर्फ खुलकर मेरा समर्थन किया, बल्कि इस रूढ़िवाद के खिलाफ कदम उठाने के लिए गर्व और चेहरे पर मुस्कान लिए मेरा साथ दिया.''

bangladesh, bride

ये कहानी है बांग्लादेश की रहने वाली तस्नीम जारा की, जिन्होंने अपनी ही शादी के दिन वो कर दिया जो शायद आज तक किसी भी दुल्हन ने नहीं किया होगा. भला अपनी शादी पर कॉटन की साड़ी कौन पहनता है, कौन है जो बिना मेकअप या फिर गहनों के दुल्हन बनता है. लेकिन अपनी जिंदगी के उस बेहद खास दिन भी जारा ने अपनी सादगी को कायम रखा, और दुनिया के सामने वो मिसाल पेश की, जो ये बताती है कि महंगे कपड़े, गहने और शानदार मेकअप किसी भी महिला के वास्तविक रूप को एक मुखौटे के पीछे ही छिपाए रखते हैं.

फिलहाल तो तस्नीम जारा की ये फेसबुक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसपर उन्हें लोगों का खुलकर समर्थन मिल रहा है. साथ ही इस पोस्ट मे समाज के सामने सवाल भी रख छोड़ा है कि समाज के ही बनाए इस नियम- कि दुल्हन को अपनी शादी में सबसे अलग लगना ही चाहिए, इसके पीछे की सोच पर क्या एक बार फिर सोचने की जरूरत नहीं है?

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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