महिला टीचर को डांटने वाले सीएम रावत समझ लें, वो सेवक हैं बादशाह जहांगीर नहीं!
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने जिस लहजे में एक महिला से बात की है और जिस तरह से घटना के वीडियो बने हैं कहना गलत नहीं है ये बात उनका राजनीतिक भविष्य खत्म करने की सामर्थ्य रखती है.
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एक अच्छे शासक के लिए जरूरी है कि उसके राज्य में न्याय की व्यवस्था ऐसी हो कि उसके आलोचक भी उसके द्वारा गए न्याय के कारण उसकी तारीफ करें. जब बात न्याय की हो तो हम बादशाह जहांगीर को नहीं भूल सकते. लोगों को समय रहते न्याय मिल सके इसके लिए बादशाह जहांगीर ने अपने दरबार में घंटी लगवाई थी. फरयादी आता, घंटी बजाता, तुरंत सभा लगती और न्याय होता. जहांगीर की उस पहल की तर्ज पर न्याय का दरबार तो आज भी सज रहा है मगर अब फरयादी को न्याय नहीं मिलता बल्कि उसे डराया, धमकाया जाता है और उसके साथ जम के बदसलूकी की जाती है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने जो किया वो कई मायनों में निंदनीय है
इस बात को उत्तराखंड में घटित एक घटना से समझिये. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जनता दरबार सजाए बैठे थे. लोग आते अपनी बात रखते मुख्यमंत्री "देख लेने" की बात करते और वो चले जाते. शायद इस बार इंसाफ मिल ही जाए, कुछ ऐसा सोचकर उत्तरा बहुगुणा पंत अपने मुख्यमंत्री के पास आई थीं. दरबार में आने से पहले तक उत्तर को इस बात का पूरा विश्वास था कि भाजपा के मुख्यमंत्री उनकी पूरी मदद करेंगे और उन्हें उनका हक दिलाएंगे.
मगर मामला तब बिगड़ गया जब महिला ने अपनी बातें रखीं और उसे सुनकर मुख्यमंत्री ने अपना आपा खो दिया. उत्तारा की नौकरी छीन ली गई. उन्हें गिरफ्तार किया गया. धक्के मार के बाहर निकाला गया.
#WATCH Uttarakhand Chief Minister Trivendra Singh Rawat directs police to take a teacher into custody after she protested at ‘Janata Darbar’ over issue of her transfer. CM Rawat suspended the teacher and asked her to leave. (28.06.18) pic.twitter.com/alAdCY74QK
— ANI (@ANI) June 29, 2018
जी हां, किसी फिल्म सरीखी ये कहानी बिल्कुल सही है. पेशे से टीचर उत्तरा बहुगुणा पंत अपने तबादले के लिए पिछले 20 सालों से दौड़ रही थी जहां अब तक उसके हाथ निराशा ही आई थी. ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री के जनता दरबार जाने और अपनी बात रखने की सोची मगर महिला की शिकयत मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को नागवार गुजरी और वो उससे उलझ पड़े. महिला भी आवेश में आ गई और उसने मुख्यमंत्री को जम कर खरी खोटी सुनाई.
महिला की बात से मुख्यमंत्री इतना भड़क गए कि उन्होंने अपने पद की गरिमा को ताख पर रखकर महिला को निलंबित करने और हिरासत में लेने का आदेश दे दिया. बाद में महिला को छोड़ दिया गया, लेकिन नौकरी से निलंबित कर दिया गया है. अपने साथ हुए इस दुर्व्यवहार पर शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा पंत ने कहा है कि, वह पिछले 25 साल से दुर्गम क्षेत्र में अपनी सेवायें दे रही है और अब अपने बच्चों के साथ रहना चाहती हैं.
महिला के अनुसार उनके पति की मृत्यु हो चुकी है और अब वह देहरादून में अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ना चाहतीं. उत्तरा ने कहा, ''मेरी स्थिति ऐसी है कि न मैं बच्चों को अकेला छोड़ सकती हूं और न ही नौकरी छोड़ सकती हूं'.
बेहतर होता कि मुख्यमंत्री महिला की बात सुनते और उसे इंसाफ दिलाते
मुख्यमंत्री द्वारा यह पूछे जाने पर कि नौकरी लेते वक्त उन्होंने क्या लिख कर दिया था? उत्तरा ने गुस्से में जवाब दिया कि उन्होंने यह लिखकर नहीं दिया था कि जीवन भर वनवास में रहेंगी. उत्तारा का जवाब सुनकर मुख्यमंत्री आग बबूला हो गए और उन्होंने शिक्षिका को सभ्यता से अपनी बात रखने को कहा, लेकिन जब उत्तरा नहीं मानीं तो उन्होंने संबंधित अधिकारियों को उन्हें तुरंत निलंबित करने और हिरासत में लेने के निर्देश दे दिये.
कोई दिक्कत न हो इसलिए मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए इस एक्शन के बाद तत्काल प्रभाव में सरकारी विज्ञप्ति भी जारी कर दी गई है. विज्ञप्ति में इस घटना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि अपने स्थानांतरण के लिए आई उत्तरकाशी की एक प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका ने अभद्रता दिखाई और अपशब्दों का प्रयोग किया. शिक्षिका से अपनी बात मर्यादित ढंग से रखने का अनुरोध किए जाने पर भी जब शिक्षिका ने लगातार अभद्रता किया तो उक्त शिक्षिका को निलंबित करने के निर्देश दिए गए.
मामले पर अपने को घिरता देख मुख्यमंत्री ने अपना पल्ला झाड़ लिया है. अपने बयान में मुख्यमंत्री रावत ने कहा है यह कार्यक्रम ऐसी बातों को उठाने के लिए उचित मंच नहीं है. मुख्यमंत्री ने कहा कि,''जनसमस्याओं की सुनवाई के दौरान स्थानान्तरण संबंधी अनुरोध बिल्कुल न लाए जाएं. राज्य में तबादला कानून लागू होने से राजकीय सेवाओं के सभी स्थानान्तरण नियामानुसार किए जाएगे. स्थानांतरण के लिए जनता दरबार कार्यक्रम उचित मंच नहीं है.
अब मुख्यमंत्री की भलाई इसी में है कि वो महिला को इंसाफ दिलाएं
घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है और अब समाज दो वर्गों में विभाजित हो गया है. एक वर्ग महिला के पक्ष में है दूसरा उसके विरोध में. जो लोग महिला के पक्ष में हैं उनका तर्क है कि मुख्यमंत्री को महिला की बात सुननी थी जबकि जो लोग महिला के विरोध में हैं उन्होंने साफ कर दिया है कि महिला ने मुख्यमंत्री के साथ बदतमीजी की थी जिसके मद्देनजर मुख्यमंत्री ने बिल्कुल ठीक फैसला लिया है.
इस मामले पर @SIANG16 ने भाजपा की आलोचना करते हुए लिखा है कि, 'ये (भाजपा) अपने गुरुओं के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं. वो गुरु जो राष्ट्र का निर्माण करता है. ऐसे लोगों को कोई अधिकार नहीं कि ये शिक्षक दिवस मनाएं. ये लोग एक दिन शिक्षकों को आदर देते हैं फिर उन्हें कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं.
This is how they treat Gurus....the teachers who build the nation!This government should do away with Teachers Day celebrations! Treating teachers with respect on one day and treating them like garbage the rest of the year is unacceptable.
— Tinat (@SIANG16) June 29, 2018
@panwar_1802का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री ठंडे दिमाग से फैसला लेते तो वो न सिर्फ महिला का बल्कि कई लोगों का दिल जीत लेते. साथ ही उन्होंने महिला के बारे में भी कहा कि उसे भी अपना आपा नहीं खोना था.
Sir, you could have won heart of old teacher with politeness too , don't forget we the common people have elected you and yes she should have not lost her temper but frustration and disappointment made her to take such steps and you have suspended her... Disappointed
— Pradeep Panwar (@panwar_1802) June 29, 2018
@beardobaba ने ट्विटर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ये बहुत गलत तरीका है और त्रिवेन्द्र सिंह रावत जैसे लोग ही लोग आम जनता के सामने भाजपा की छवि धूमिल कर रहे हैं.
Very wrong attitude @tsrawatbjp ji. People like you spoil the image of @BJP4India and @narendramodi ji. Atleast have the decency to talk to a women even if she is at fault.
— Abhishek Chaudhary (@beardobaba) June 29, 2018
पत्रकार @vinodkapriभी इस मुद्दे पर काफी गंभीर दिख रहे हैं और उन्होंने अपने एक ट्वीट में महिला का पूरा किस्सा बता दिया है.
- पति की मृत्यु के बाद भी कोई उत्तरकाशी में तैनात रहा हो- बच्चे देहरादून में रहते हों - घर का ख़र्च कोई अकेले ही चलाता हो - पहले भी कोई CM से मिल चुकी हो- तंग आ कर अगस्त 2017 से घर में ही हो- वो भी बिना सैलरी केतथ्य जानने के बाद महिला टीचर के व्यवहार पर सवाल उठें तो बेहतर https://t.co/0zBoZbvnRT
— Vinod Kapri (@vinodkapri) June 29, 2018
@SamitLive ने सारा दोष महिला पर मढ़ा है और कहा है कि महिला के साथ जो भी हुआ वो पूर्णतः सही है.
प्रिय @vinodkapri जी, समस्या कुछ भी हो, सरकारी कर्मचारी की एक मर्यादा होती है और अनुशासन होता है। आप अपनी समस्या बताने आये थे ना कि अराजकता फैलाने। इतने में सेवा बर्खास्तगी होनी चाहिए। काश आप पत्रकार के साथ समझदार भी होते https://t.co/48iCGcAQpI
— चौधरी जी (@SamitLive) June 29, 2018
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने अपने ट्वीट से आग में खर डाल दिया है. अब देखने वाली बात ये होगी कि उनकी कही बात को लोग किस नजर से देखेंगे.
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय,बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय। -सन्त कबीरदास जी
जिस समय मोदी जी कबीर को श्रद्धा सुमन अर्पित कर फ़ोटो खिंचा रहे थे, उसी समय उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री गुरु(र)- वंदना कर रहे थे, देखिए और सोचिए! https://t.co/Eu9iCK28Q4
— Manish Sisodia (@msisodia) June 29, 2018
इस पूरे मामले को देखकर हम इतना ही कहेंगे कि, आज लोग भले ही बंद एसी कमरों में महिला की आलोचना कर रहे हों और मुख्यमंत्री का समर्थन करते हुए कह रहे हों कि उसे आपनी भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए था मगर जब वो खुद अपने आपको महिला की जगह रखेंगे तो पाएंगे कि महिला ने बहुत धैर्य का परिचय दिया है अगर हम और आप उस जगह पर होते तो शायद ऐसा नहीं कर पाते.
बहरहाल, अब जबकि मामले पर चर्चा का दौर अपने चरम पर है. कहना गलत न होगा कि इस पूरे मामले में महिला का दोष मुख्यमंत्री की तुलना में काफी कम है. मुख्यमंत्री से एक भारी गलती हुई है. अब वक्त आ गया है कि मुख्यमंत्री अपना बड़प्पन दिखाएं और महिला को अपने पास बुलाएं, उसकी बातें सुनें और उसको न्याय दें. यदि मुख्यमंत्री ऐसा कर ले गए तो इसे एक अच्छी और समझदारी भरी पहल कहा जाएगा अन्यथा इस घटना के वीडियो बन चुके हैं जो अगले 4 वर्षों में कदम-कदम पर उन्हें न सिर्फ मुसीबत में डालेंगे बल्कि डराएंगे जिससे उनका राजनीतिक जीवन बर्बाद होने की पूरी सम्भावना है.
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