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Updated: 10 अप्रिल, 2019 01:42 PM
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वरुण गांधी बीजेपी में हाशिये पर कर दिये जाने के बावजूद अपने स्टैंड पर डटे हुए थे. गांधी परिवार के प्रति उनकी खामोशी से कोई डिगा नहीं पा रहा था. अपने नाम के पहले चौकीदार भी वरुण गांधी उम्मीदवारों की लिस्ट में अपना नाम आने से कुछ ही दिन पहले जोड़ा था. हालांकि, मेनका गांधी ने बहुत पहले ही अपने नाम से पहले चौकीदार जोड़ लिया था.

माना जाता है कि वरुण गांधी न कभी कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ बोलने को राजी होते थे, न उनके चुनाव क्षेत्रों में बीजेपी के प्रचार के लिए. लेकिन ऐसा कब तक चल पाता? आखिरकार बीजेपी नेतृत्व के दबाव में वरुण गांधी को हथियार डालने ही पड़े. जिन बातों को लेकर वो डटे हुए थे, पीछे हटना ही पड़ा है.

अब तो वरुण गांधी भी वही स्क्रिप्ट पढ़ने लगे हैं जो दूसरे दलों से बीजेपी ज्वाइन करने वाले नेताओं को प्रेस कांफ्रेंस में बोलने के लिए दी जाती है.

बीजेपी की स्क्रिप्ट वरुण को भी पढ़नी पड़ी?

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के अजय राय के अलावा बीएसपी के टिकट पर विजय प्रकाश जायसवाल ने भी चुनाव लड़ा था - और चौथे स्थान पर पाये गये थे. चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से कुछ ही दिन पहले एक दिन लखनऊ में विजय प्रकाश ने भी बीजेपी का दामन थाम ही लिया - देश पहले पार्टी बाद में. बनारस में पूरे साल अपनी चाय पर चर्चा में अंधभक्तों की खिल्ली उड़ाने वाले कांग्रेस नेता अरविंद मिश्रा भी राष्ट्रवाद के नाम पर कांग्रेस छोड़ चुके हैं. अरविंद मिश्रा अभी किसी पार्टी में शामिल तो नहीं हुए हैं लेकिन देश पहले पार्टी बाद में वाले तेवर में ही नजर आ रहे हैं - संकेत समझना हो तो बीजेपी के संकल्प पत्र पर उनकी टिप्पणी से समझा जा सकता है जिसका वो खुले दिल से तारीफ करने लगे हैं. देश पहले और पार्टी बाद में की थ्योरी को ही आगे बढ़ाते हुए वरुण गांधी ने पार्टी पहले और परिवार बाद में का सिद्धांत स्वीकार कर लिया है. वरुण गांधी भी अब वही बोलने लगे हैं जो आलाकमान का हुक्म होता है.

हाल का वरुण गांधी का एक बयान हर किसी को हैरान करने वाला रहा. वरुण गांधी ने कहा, 'मेरे परिवार में भी कुछ लोग प्रधानमंत्री रहे हैं लेकिन जो सम्मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को दिलाया है, वो बहुत लंबे समय से किसी ने देश को नहीं दिलाया. वो आदमी केवल जी रहा है देश के लिए - और वो मरेगा देश के लिए, उसको केवल देश की चिंता है.'

मालूम नहीं कलेजे पर कौन सा पत्थर रख कर वरुण गांधी ने ये बयान दिया होगा. वैसे वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी को नेहरू-गांधी परिवार से ऐसे नाजुक दौर में बेदखल किया गया जब शायद उन्हें बहुत जरूरत रही. पशु अधिकारों के लिए हमेशा सक्रिय रहीं मेनका गांधी ने बड़ी मुश्किल से अपनी जगह बनायी और बीजेपी में खुद को स्थापित किया.

तमाम चीजों के बावजूद बीजेपी नेतृत्व को एक ही बात का मलाल रहा. मेनका गांधी को कांग्रेस के खिलाफ खुल कर बोलती रहीं, लेकिन वरुण गांधी कभी राजी नहीं हुए. मध्य प्रदेश में उपचुनाव के दौरान बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया को चुनाव प्रचार में उतारा था. यशोधरा राजे ने पूरी निष्ठा से कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार किया भी. वैसे बुआ और भतीजे के बीच वैसा रिश्ता तो कतई नहीं है जैसा वरुण गांधी और प्रियंका वाड्रा आपस में निभाते आये हैं.

varun gandhiवरुण गांधी को भी पीछे हटना ही पड़ा...

मालूम नहीं प्रियंका गांधी वाड्रा वरुण गांधी की ये मजबूरी समझ रही होंगी या नहीं. प्रियंका वाड्रा के कांग्रेस महासचिव बनने के बाद वरुण गांधी के भी कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा शुरू हुई थी. लेकिन कुछ ठोस निकल कर नहीं आया. अनिश्चितताओं की राजनीति में अभी से कोई एक धारणा बना लेना ठीक नहीं होगा. वैसे भी प्रियंका वाड्रा 2022 के यूपी विधानसभा की तैयारियों में जुटी हैं. कांग्रेस को मजबूत कर रही हैं. हो सकता है वरुण गांधी को लेकर उससे पहले दोनों पक्ष कोई फैसला लें.

जब वरुण गांधी और मेनका गांधी के चुनाव क्षेत्रों की अदला बदली हुई तो यही समझा गया कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ कड़े रूख के लिए मेनका गांधी को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सुल्तानपुर भेजा है. वरुण के भी हमलावर तेवर से साफ है कि अमेठी और रायबरेली में गांधी बनाम गांधी की जंग तेज होने वाली है. वैसे भी पैकेज डील का मतलब तो यही होता है.

कल्याण सिंह, उमा भारती और अब वरुण गांधी

वरुण गांधी का मामला भी कल्याण सिंह और उमा भारती से ही मिलता जुलता है. कल्याण सिंह और उमा भारती दोनों ही अलग अलग समय में बीजेपी नेतृत्व पर सवाल उठाने के चलते हटाये गये. वरुण गांधी भी नेतृत्व को लेकर टिप्पणियों के चलते ही निशाने पर आये थे. पश्चिम बंगाल के प्रभारी रहते हुए वरुण गांधी ने नरेंद्र मोदी की रैली में भीड़ को लेकर टिप्पणी कर दी थी. बीजेपी नेतृत्व वही लेकर बैठ गया और तभी से वरुण गांधी हाशिये पर भेज दिये गये.

ये संभव था कि वरुण गांधी अगर मेनका गांधी के बेटे नहीं होते तो उनका भी हाल कल्याण सिंह और उमा भारती जैसा हुआ होता. मेनका गांधी भी वरुण गांधी को प्रोटेक्शन शायद ही दे पातीं अगर संघ में उनके मजबूत कनेक्शन नहीं होते.

बीजेपी नेतृत्व के मुंह मोड़े होने के सवाल पर वरुण गांधी कहते जरूर रहे कि 34 साल की उम्र में उन्हें चुनाव प्रभारी बनाया गया. मगर नेतृत्व इतने भर से मानने वाला नहीं था.

मुख्यधारा में अपनी वापसी को लेकर वरुण गांधी ने मेहनत भी कोई कम नहीं की. बीजेपी की प्रयागराज कार्यकारिणी के दौरान वरुण गांधी ने जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया था. तब वरुण गांधी के काफिले की जोरदार चर्चा रही. बीजेपी नेतृत्व ये समझ गया कि वरुण गांधी यूपी की कमान सौंपे जाने को लेकर दावेदारी जता रहे हैं. तब स्मृति ईरानी से लेकर तमाम नाम चर्चा में रहे लेकिन आखिरी मुहर योगी आदित्यनाथ ने लगवा ली.

बीच बीच में वरुण गांधी की कांग्रेस में जाने की भी चर्चाएं होती रहीं - और मोदी सरकार को मुश्किम में डालने वाले वरुण के बयान ऐसी चर्चाओं को गंभीर बना देते रहे. बीते दिनों में ऐसे कई मौके आये जब वरुण गांधी के बयान केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ करते देखे गये. ये बातें कई बार तो साफ साफ लेकिन कई बार इशारों में हुआ करती रहीं.

1. ये जानते समझते हुए कि नरेंद्र मोदी मनरेगा योजना को लेकर कांग्रेस पर हमलावर रहे वरुण गांधी ने आईआईएम के छात्रों से बातचीत में कहा था, 'वास्तव में मैं मनरेगा का समर्थन करता हूं. मुझे लगता है कि यह एक अच्छी योजना है. ये कहना गलत है कि यह योजना असफल है.'

2. रोहिंग्या मामले में भी वरुण गांधी का स्टैंड केंद्र की बीजेपी सरकार से अलग रहा. एक अखबार में अपने लेख के जरिये वरुण गांधी मोदी सरकार को भारतीय संस्कृति और 'अतिथि देवो भव:' परंपरा की याद दिलाई और कहा कि भारत को रोहिंग्या लोगों की मदद करनी चाहिये.

वरुण गांधी के बयान पर हंसराज अहीर ने सख्त टिप्पणी की थी, 'जो देश के हित में सोचेगा वो इस तरह का बयान नहीं देगा.'

3. हाल ही में इंडिया डायलॉग कार्यक्रम में वरुण गांधी ने समझाया था कि 70 फीसदी आबादी को बीते 67 सालों में जितनी आर्थिक मदद राज्य और केंद्र सरकारों ने मिलकर दी है, उससे कई गुना ज्यादा पैसा केवल 100 धनी परिवारों को दे दिया गया. वरुण ने कहा कि देश में जब भी किसानों को आर्थिक सहायता देने की बात आती है तो हाहाकार मच जाता है.

4. गांवों को गोद लेने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल को लेकर भी वरुण गांधी का बयान था, 'हमें सोचना होगा की देश के आखिरी आदमी तक लाभ कैसे पहुंचाएं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा गांव गोद लीजिए. हमने भी गांव गोद लिया, लेकिन हमने देखा कि आप सड़क बनाएं, पुलिया बनाएं, सोलर पैनल लगाएं फिर भी लोगों की आर्थिक स्थिति नहीं बदलती. यहां तक कि स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में भी कोई बदलाव नहीं आता.'

5. अक्टूबर, 2018 में तो वरुण गांधी ने ऐसा खुलासा किया जो काफी चौंकाने वाला रहा. वरुण गांधी ने बताया कि जब उन्होंने सांसदों के वेतन पर आपत्ति जतायी तो उनके पास प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया. बकौल वरुण फोन पर सवाल था, 'आप हमारी मुश्किलें को बढ़ा रहे हैं?'

वरुण हाशिये पर जरूर थे लेकिन न तो बीजेपी ने कल्याण सिंह की तरह बाहर किया और न ही उमा भारती की तरह निलंबित. हाल फिलहाल ये सुनने में जरूर आया था कि बीजेपी नेतृत्व वरुण गांधी या मेनका गांधी में से किसी एक को ही टिकट देने के मूड में था. अगर कोई पैकेज डील नहीं हुई होती तो कुछ और ही नजारे देखने को मिल सकते थे. या तो वरुण गांधी बगावत पर उतरते या फिर गिरिराज सिंह की तरह न्याय के आश्वासन पर चुप हो जाते.

बहरहाल, अब तो वरुण गांधी ने नरेंद्र मोदी का झंडा बुलंद करने के लिए अपने परिवार के प्रधानमंत्रियों की दक्षता पर सवाल उठा ही दिये हैं. सवाल ये है कि गांधी परिवार पर हमले के एवज में वरुण गांधी को सिर्फ लोक सभा के टिकट से ही संतोष करना पड़ेगा या फिर से मोदी सरकार बनने की स्थिति में कैबिनेट में भी जगह मिल सकेगी? मूल प्रश्न तो तब भी प्रभावी रहेगा ही - टिकट भले ही दोनों को मिले लेकिन मंत्री तो दोनों में से कोई एक ही बनेगा!

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