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Updated: 07 अक्टूबर, 2016 09:38 PM
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तमाम सवालात के बावजूद सीबीआई देश की सबसे भरोसेमंद जांच एजेंसी मानी जाती है. शायद ही किसी को इस बात में कोई शक हो. ऐसा भी नहीं है कि पहली बार किसी अफसर पर उंगली उठी हो. या फिर खुद सीबीआई पहली बार अपने ही अफसर के खिलाफ जांच कर रही हो. मगर, बंसल खुदकुशी केस में सीबीआई अफसर पर जो आरोप लगे हैं वो अलग है.

सीबीआई के एक बड़े अफसर पर सवाल उठा है जो किसी आरोपी को इस अंदाज में हड़काये जैसे कोई लोकल गुंडा हो - तुम्हे मालूम नहीं, मैं फलाने का आदमी हूं!

जिम्मेदार कौन

बीके बंसल की खुदकुशी भी जांच के दायरे में आये आरोपियों की मौत की सूची का हिस्सा बन कर रह जाती. बंसल की मौत पर शायद इतना भी बवाल नहीं होता जितना दादरी में मचा हुआ है - एखलाक को पीट पीट कर मारे जाने के एक आरोपी की लाश को तिरंगे में लपेट कर फ्रीजर पर रखी हुई है - और वहां के लोग अपनी मांगे पूरी होने तक अंतिम संस्कार करने को राजी नहीं हैं.

लेकिन बीके बंसल की खुदकुशी का मामला बिलकुल अलग है. एक छोटे से अंतराल के दौरान एक पूरा परिवार मौत को गले लगा कर खत्म हो गया. बंसल भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी थे. सीबीआई ने उन्हें रिश्वत लेते गिरफ्तार किया था. ट्रायल के बाद जो अदालत उन्हें जो भी सजा देती लेकिन वो सजा फांसी तो नहीं ही होती जो उन्होंने खुद को दे डाली.

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आखिरी कदम उठाने से पहले बंसल की ओर से सूइसाइड नोट में अपने परिवार के टॉर्चर के जो आरोप लगाये गये - और उनके बेटे ने नोट में जिस तरह से सीबीआई अफसरों के नाम दिये - वो बातें इस केस को बाकियों से बिलकुल अलग कर देती हैं.

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सीबीआई की जांच के तरीके पर बड़ा सवाल...

बंसल की ओर से लगे आरोपों में एक इल्जाम ये भी है कि किसी तरह एक सीबीआई अफसर ने उन्हें धमकाया. सूइसाइड नोट में अफसर के साथ साथ उसके 'साहेब' का भी नाम लिया गया है. सूइसाइड नोट के अनुसार उस अफसर ने सत्ताधारी पार्टी के एक ताकतवर नेता का नाम लेकर बोला कि वो बंसल के परिवार को तबाह कर देगा और कोई उसे छू भी नहीं पाएगा.

वैसे भी रिश्वत लेने के आरोपी कार्पोरेट मामलों के पूर्व महानिदेशक बीके बंसल थे - उनकी पत्नी, उनकी बेटी या उनका बेटा नहीं. लेकिन एक एक करके सभी मौत को गले लगा लिया. पहले मां-बेटी ने और फिर बाप-बेटे ने. पूरा परिवार खत्म.

बड़ा सवाल ये है कि बंसल परिवार की तबाही के लिए असली जिम्मेदार कौन है - और जो जिम्मेदार है क्या उसे सजा मिल पाएगी? वहां तो मामले की पैरवी करने वाला भी कोई नहीं बचा.

केस की जांच

मामला खुदकुशी का होने के चलते मौके पर पुलिस को पहुंचना पड़ा. पुलिस ने औपचारिकताओं को पूरा करने के साथ ही सूइसाइड नोट भी रिकवर किया और जानकारी देने लायक बातें मीडिया से शेयर की. रहा सवाल सूइसाइड में जिन लोगों के नाम हैं उनके खिलाफ एफआईआर का तो मामला वहीं जाकर अटक गया.

अब तो इस बाबत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और दिल्ली महिला आयोग नोटिस भी भेज चुके हैं. नोटिस में, जाहिर है, पुलिस से केस के बारे में जानकारी और एफआईआर को लेकर सवाल पूछे गये हैं.

सूइसाइड लेटर से एक खास बात सामने आई है वो ये कि सीबीआई अपनी जांच प्रक्रिया में अब नये तरीके भी अपनाने लगी है. सीबीआई को पूछताछ में तमाम तौर तरीके अपनाने पड़ते होंगे. साथ ही उसे इस बात का भी ख्याल रखना पड़ता होगा कि मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो. निश्चित रूप से सीबीआई के सामने ऐसे केस आते होंगे जिसमें आरोपी ऐसे लोगों के नाम लेते हों जिन पर हाथ डालना सीबीआई के लिए मुश्किल होता हो. संभव है आरोपी जिसका नाम ले रहा हो वो उसमें शुमार तो हो लेकिन उसके खिलाफ कोई सबूत न मिल पाये. ये भी हो सकता है कि बंसल पर भी सीबीआई अफसरों की धौंस बेअसर रही हो - और इसके लिए उसे एक ताकतवर नेता का नाम लेना पड़ा हो.

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जो भी हो इससे ये तो पता चल गया कि सीबीआर्ई को जांच के दौरान भी ताकतवर नेताओं के नाम लेने पड़ते हैं. वैसे भी सुप्रीम कोर्ट की ओर से तो उसे पिंजरे का तोता बताया ही जा चुका है.

अब सवाल ये उठता है कि क्या सूइसाइड नोट में जिन अफसरों के नाम हैं उनके खिलाफ केस बनता है या नहीं? वैसे तो ये मामला कानूनी समझ का है लेकिन सामान्य तौर पर लगता है कि इसे भी मृत्युपूर्व बयान के तौर पर माना जाएगा - जो अदालत में बतौर साक्ष्य पेश किया जा सकता है.

अपने अफसर पर उंगली उठने के बाद सीबीआई ने ज्वाइंट डायरेक्टर स्तर के अधिकारी पर मामले की जांच की जिम्मेदारी दी है.

नाउम्मीद नहीं होना चाहिए कि सीबीआई जब अपने ही अफसर के खिलाफ इल्जाम की जांच करेगी तो पूरी जिम्मेदारी के साथ करेगी - लेकिन कोई और नहीं है क्या? क्या कोई दूसरी एजेंसी से इस अति संवेदनशील मामले की जांच नहीं करायी जा सकती? क्या इसके लिए कोई ज्यूडिशियल इन्क्वायरी नहीं हो सकती?

वैसे तो कहा जाता है कि कोई आरोपी खुद अपने खिलाफ आरोपों की जांच कैसे कर सकता है? लेकिन पिंजरे के तोता वाली छवि से इतर सीबीआई की जो क्रेडिबिलिटी है इससे वो उस दायरे से बाहर हो जाती है. सीबीआई के प्रति उसी भरोसे को बनाये रखने के लिए जरूरी है कि बंसल केस की जांच किसी अन्य एजेंसी से करायी जाये वरना, अभी तो ये केस किसी फेक एनकाउंटर जैसा ही लग रहा है.

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