Loksabha election 2019 कौन जीत रहा है? पर्दे के पीछे का खेल इशारा कर रहा है
Lok sabha election 2019 का सबसे चर्चित सवाल यही है- Who will win 2019 election? इसके जवाब में अचानक तेज होती सियासी गतिविधियां कुछ इशारे कर रही हैं. जब बहुमत का आंकड़ा न पूरा हो रहा हो तो पर्दे के पीछे का खेल जोर पकड़ने लगता है.
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आप मानें या न मानें लेकिन जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों की तारीख 23 मई नजदीक आ रही है अगली सरकार की तस्वीर भी उलझने लगी है. जहां एक तरफ ये तस्वीर उलझ रही है वहीं साफ भी हो रही है. इतना ही नहीं जैसे-जैसे वक्त आगे बढ़ रहा है. पर्दे के पीछे के खेल भी तेज हो गए हैं. आगे बढ़ने से पहले वास्तविकता पर बात करते हैं. और चारों ओर एक ही सवाल किया जा रहा है- Who will win 2019 election?
आज की तारीख में जो वास्तविकता सामने आ रही है उसमें कुछ चीज़ें निर्विवाद हैं.
1. बीजेपी को बहुमत नहीं मिल रहा. खुद राम माधव और संजय राऊत ये बात कह चुके हैं.
2. कांग्रेस को भी बहुमत नहीं मिल रहा, भले ही उसकी स्थिति बेहतर हो रही हो.
3. राहुल गांधी और मोदी दोनों के प्रधानमंत्री बनने का मामला उलझता जा रहा है. अब के हालात में दोनों का बहुमत बहुत मुश्किल है.
जाहिर बात है जब बहुमत का आंकड़ा न पूरा हो रहा हो तो पर्दे के पीछे की गतिविधियां जोर पकड़ने लगती हैं. नतीजों में भले ही देरी हो लेकिन जोड़ तोड़ के चैंपियन अभी से गणित के खेल में लग गए हैं.
बीजेपी और कांग्रेस दोनों को बहुमत मिलने के आसार कम
एनडीए के संयोजक रहे चंद्रबाबू नायडू लगातर विपक्षी नेताओं से बातचीत कर रहे हैं. और तालमेल पुख्ता करने में जुटे हैं. लेकिन इस बार वो एनडीए से बाहर हैं तो जाहिर बात है उनसे बीजेपी को कुछ नहीं मिलने वाला. चंद्रबाबू नायडू ने 8 मई को राहुल गांधी से दिल्ली में बैठक भी की. राहुल गांधी से बातचीत में जिस तरह की राय बनी उसे लेकर चंद्रबाबू कोलकाता गए और ममता बैनर्जी से मिले. कोलकाता में चंद्रबाबू ने ममता के साथ रैली को भी संबोधित किया. यानी बीजेपी से नाता जुड़ता नहीं दिख रहा.
उधर चंद्रबाबू नायडू दिल्ली के सीएम केजरीवाल से भी संपर्क में रहे हैं. यहां तक कि ममता बैनर्जी भी केजरीवाल के साथ संपर्क में हैं. ये अलग बात है कि दिल्ली में केजरीवाल को कितनी सीटें मिलेंगी ये कोई नहीं जानता.
आपको बता दें कि चंद्रबाबू नायडू पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि वो पीएम की होड़ में नहीं हैं. मुश्किल भी है क्योंकि उनके पास मुश्किल से 15-16 सीटें ही आनी हैं. 15 सीट के साथ चंद्रबाबू नायडू भले ही पीएम की रेस से बाहर हैं लेकिन साउथ का एक और नेता है जो इतनी ही सीटें लाने वाला है लेकिन ये नेता पीएम बनने की उम्मीद दिल में रखे हुए हैं. नेता का नाम है केसीआर यानी के चंद्रशेखर राव. सीएसआर ने नारा दिया है कि इस बार पीएम साऊथ यानी दक्षिण भारत से बनना चाहिए.
दक्षिण भारत के नेता चंद्रशेखर राव पीएम बनने की उम्मीद दिल में रखे हुए हैं
अपने इस खेल को मजबूत करने के लिए हाल में 6 मई को केसीआर केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन से मिले. इसी दिन यानी सोमवार को केसीआर ने एचडी कुमारस्वामी से मुलाकात की. इतना ही नहीं दिल्ली में केसीआर राहुल गांधी के भी संपर्क में हैं. हिंदुस्तान टाइम्स ने रिपोर्ट किया है कि 11 अप्रेल को केसीआर ने कांग्रेस से मुलाकात की. टीआरएस ने संकेत दिए कि वो कांग्रेस के साथ गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं.
आपको बता दें कि केसीआर भी बीजेपी की तीसरी उम्मीद थे जिनके पास थोड़ी बहुत सीटें आनी थीं और ये समझा जा रहा था कि हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी को जो नुकसान हो रहा है उसमें केसीआर या चंद्रबाबू नायडू से बीजेपी के नुकसान की भरपाई हो जाएगी. लेकिन दोनों ही नेता कांग्रेस से नज़दीकी बढ़ाने में लगे हैं.
एक और नेता है बीजेपी को जिससे सहयोग की उम्मीद थी, वो नेता हैं ममता बैनर्जी. लेकिन चुनाव के दौरान जिस तरह की तल्खी बढ़ी है और जिस तरह ममता बीजेपी विरोधी लामबंदी का हिस्सा दिख रही हैं उससे वहां से भी कोई सहयोग मुश्किल ही लगता है. चंद्रबाबू नायडू और ममता की मुलाकात में एक महत्वाकांक्षा ममता बैनर्जी की भी दिखाई देती है. हालांकि ममता ने अपनी राय जाहिर नहीं की है लेकिन 15 सीट के साथ केसीआर सपना देख सकते हैं तो ममता को तो 20 सीटें मिलने की उम्मीद है.
चंद्रबाबू नायडू और ममता की मुलाकात में एक महत्वाकांक्षा ममता बैनर्जी की भी दिखाई देती है
इन सारी गतिविधियों के बीच खबर है कि 21 मई को यानी नतीजों से दो दिन पहले दिल्ली में 21 पार्टियां बैठक कर रही हैं. ये पार्टियां नतीजे आते ही राष्ट्रपति के पास जाकर दावा करने की तैयारी में हैं. इसकी एक वजह भी है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बीजेपी से चुने गए हैं. सभी पार्टियों को डर है कि कोविंद ने अगर सिंगल लार्जेस्ट पार्टी या सबसे बडे दल के तौर पर बीजेपी को सरकार बनाने का आमंत्रण दे दिया तो मुश्किल खड़ी हो सकती है. विपक्ष को आशंका है कि मोदी शाह की जोड़ी. अगर 20 से तीस सीटों की ज़रूरत पड़ती है तो वो खरीद फरोख्त के ज़रिए आसानी से जुटा लेगी.
अब सवाल उठता है कि एसीआर और चंद्रबाबू समेत सभी नेता बीजेपी से दूर क्यों भाग रहे हैं. इसके पीछे एक राजनीतिक गणित है. आम धारणा है कि बीजेपी जिस पार्टी से गठबंधन करती है उसी की ज़मीन खोद देती है. महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना के सहारे घुसी और उसकी आधे से ज्यादा ज़मीन खा गई. पीडीपी का सहारा लेकर कश्मीर में बीजेपी अपनी जगह बनाने में कामयाब रही और बिहार में नितीश की दशा किसी से छिपी नहीं है.
एक और चीज अहम है और वो ये कि गठबंधन किसी का भी बने लेकिन कांग्रेस या बीजेपी मे से एक को लिए बगैर किसी का भी काम नहीं बनने वाला. जाहिर बात है अखिलेश और मायावती की जोड़ी उत्तर प्रदेश में भले ही 40 सीटें भी ले आए लेकिन सरकार बनाने के लिए उसे भी इन दोनों पार्टियों के साथ ही जाना होगा. बड़ा झगड़ा ये है कि अगर दोनों पार्टियों के पास यूपी में बीस बीस सीटें भी आती हैं तो भी उस हालत में ममता बैनर्जी से लेकर केसीआर समेत कई दावेदार होंगे. अगर इससे ज्यादा सीटें आती हैं जिसकी उम्मीद जानकार नहीं बता रहे, तो भी बीजेपी बेहद कमज़ोर हालत में होगी. ऐसे में बुआ और बबुआ की जोड़ी के नाम से मशहूर हुए इन नेताओं को कांग्रेस के पास जाना हो होगा.
जो भी हो हालात रोचक हैं. नतीजों के लिए अभी दो चरण के मतदान का इंतज़ार करना होगा. हालात ऐसे हैं कि सरकार जो भी बने बे लगाम नहीं होगी और किसी के हिटलर बनने या मनमानी करने की गुंजाइश इस बार के जनादेश में नहीं दिखती.
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